April 20, 2024

जुबली कुमार

अभिनेता
फ़िल्म निर्माता
फ़िल्म निर्देशक

एक ऐसा अभिनेता जिसने ६० के दशक में काफ़ी नाम कमाया और कई दफ़ा ऐसा भी हुआ कि जिनकी ६-७ फ़िल्में एक साथ सिल्वर जुबली हफ्ते में होती थीं। इसी कारण से उनका नाम ‘जुबली कुमार’ पड़ गया।

राजेन्द्र कुमार

राजेन्द्र कुमार ने बॉलीवुज में अपने दम पर एक से एक बेहतरीन फिल्में दी हैं। लेकिन शुरुआती दिनों में उनको कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। बचपन से राजेंद्र कुमार अभिनेता बनना चाहते थे। जब वह मुंबई आए तो उनके पास मात्र पचास रूपए थे,जो उन्होंने अपने पिता से मिली घडी बेचकर हासिल किए थे। घडी बेचने से उन्हें ६३ रूपए मिले थे। जिसमें से १३ रूपये से उन्होंने फ्रंटियर मेल का टिकट खरीदा था ।

गीतकार राजेन्द्र कृष्ण की मदद से राजेन्द्र कुमार को १५० रूपए मासिक वेतन पर निर्माता-निर्देशक एच.एस. रवेल के सहायक निर्देशक के तौर पर काम करने का मौका मिला। उन्होंने अपने फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत १९५० की फ़िल्म जोगन से की जिसमें उनको दिलीप कुमार और नर्गिस के साथ अभिनय करने का अवसर मिला। उनको १९५७ में बनी मदर इंडिया से ख्याति प्राप्त हुयी जिसमें उन्होंने नर्गिस के बेटे की भूमिका अदा की। १९५९ की फ़िल्म गूँज उठी शहनाई की सफलता के बाद उन्होंने बतौर मुख्य अभिनेता नाम कमाया।

अपने फ़िल्मी जीवन में राजेन्द्र कुमार ने कई सफल फ़िल्में दीं। धूल का फूल (१९५९), दिल एक मंदिर (१९६३), मेरे महबूब (१९६३), संगम (१९६४), आरज़ू (१९६५), प्यार का सागर, गहरा दाग़, सूरज (१९६६) और तलाश।

राजेन्द्र कुमार के फिल्मी योगदान को देखते हुए १९६९ में उन्हें पदमश्री से सम्मानित किया गया था।

आज ही के दिन अर्थात १२ जुलाई १९९९ को यह महानायक इस दुनिया को अलविदा कह गया । राजेन्द्र कुमार ने अपने करियर में लगभग ८५ फिल्मों में काम किया।

१२ जुलाई एक काला पन्ना फिल्म के इतिहास में जुड़ गया, सर्वदा के लिये ।

लोग चले जाते हैं ,
बस यादें रह जाती हैं ।

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