April 25, 2024

३१ जनवरी, १९२३ को दध, कांगड़ा में जन्में मेजर सोमनाथ शर्मा जी परमवीर चक्र पाने वाले देश के प्रथम व्यक्ति थे। भारतीय सेना की कुमाऊँ रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी-कमांडर थे जिन्होने अक्टूबर-नवम्बर, १९४७ के भारत-पाक संघर्ष में हिस्सा लिया था। उन्हें भारत सरकार ने मरणोपरान्त परमवीर चक्र से सम्मानित किया था।

उनके पिता अमर नाथ शर्मा एक सैन्य अधिकारी थे। उनके कई भाई-बहनों ने भारतीय सेना में अपनी सेवा दी। शर्मा जी ने देहरादून के प्रिन्स ऑफ़ वेल्स रॉयल मिलिट्री कॉलेज में दाखिला लेने से पहले, शेरवुड कॉलेज, नैनीताल में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। बाद में उन्होंने रॉयल मिलिट्री कॉलेज, सैंडहर्स्ट में अध्ययन किया। २२ फरवरी १९४२ को रॉयल मिलिट्री कॉलेज से स्नातक होने पर, शर्मा की नियुक्ति ब्रिटिश भारतीय सेना की उन्नीसवीं हैदराबाद रेजिमेन्ट की आठवीं बटालियन में हुई (जो कि बाद में भारतीय सेना के चौथी बटालियन, कुमाऊं रेजिमेंट के नाम से जानी जाने लगी)। उन्होंने बर्मा में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अराकन अभियान में जापानी सेनाओं के विरुद्ध लड़े। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने अराकन अभियान बर्मा में जापानी लोगों के खिलाफ कारवाई की। उस समय उन्होंने कर्नल के एस थिमैया की कमान के तहत काम किया, जो बाद में जनरल के पद तक पहुंचे और १९५७ से १९६१ तक सेना में रहे। शर्मा को अराकन अभियान की लड़ाई के दौरान भी भेजा गया था। अराकन अभियान में उनके योगदान के कारण उन्हें मेन्शंड इन डिस्पैचैस में स्थान मिला। अपने सैन्य कैरियर के दौरान, शर्मा जी अपने कैप्टन के॰ डी॰ वासुदेव की वीरता से काफी प्रभावित थे। वासुदेव ने आठवीं बटालियन के साथ भी काम किया, जिसमें उन्होंने मलय अभियान में हिस्सा लिया था, जिसके दौरान उन्होंने जापानी आक्रमण से सैकड़ों सैनिकों की जान बचाई एवं उनका नेतृत्व किया।

२१ जून १९४७ को, श्रीनगर हवाई अड्डे के बचाव में, ३ नवम्बर १९४७ को उनके कार्यों के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। यह पहली बार था जब इस पुरस्कार की स्थापना के बाद किसी व्यक्ति को सम्मानित किया गया था, और संयोग देखिए, शर्मा जी के भाई की पत्नी सावित्री बाई खानोलकर परमवीर चक्र की डिजाइनर थी।

अश्विनी राय ‘अरुण’ ऐसे परम वीर के जन्मदिवस पर उन्हें उनके बहादुरी के लिए सलाम करता है।

धन्यवाद !

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