April 19, 2024

पापी का महिमामंडन

फेसबुक और वाट्सएप पर एक नया ट्रेंड चला है, गलत से गलत की तुलना। और आश्चर्य यह की यह तुलना ना होकर एक अध्ययन बनता जा रहा है, जैसे यह चित्र पर लिखा ज्ञान और उसपर से तुलनात्मक अध्ययन

क्या भाई साब आप लगे रावण की महिमा गाने…

कोई उपमा अथवा उदाहरण बनाने से पूर्व आप समय, काल, परिस्थिति, पृष्टभूमि और प्रकृति को ध्यान रखा करें तत्पश्चात तनिक विचारधारा को साकारात्म्कता की ओर घूमावे जिससे नेटवर्क सही पकड़ सके।

रावण का सम्बन्ध त्रेतायुग से है, ‘जहाँ धर्म द्वितीय अवस्था मे था। मनुष्य की बुद्धि समस्त विद्युत शक्तियों के मूल स्रोत अर्थात ईश्वरीय चुम्बकीय शक्ति को समझने में सर्वथा समर्थ थी। उस समय स्त्री हरण पाप की पराकाष्ठा थी।

और आज का समय कलियुगी है…जहाँ धर्म अपनी अंतिम अवस्था मे है। मनुष्य की बुद्धि नित्य परिवर्तनशील है, उसमें स्थाईत्व का सर्वदा अभाव है। वह वाह्य जगत से अधिक कुछ भी समझने में असमर्थ है। जहाँ पाप पुण्य पर भारी है और निरन्तर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है।

महोदय अंतर को समझें, ऐसे ही नहीं, रावण युगों से पाप का पर्यायवाची बना है और ऐसे ही नहीं युगों से महान ऋषियों एवं महापुरुषों ने रावण को व्याभिचारी और पापी की उपमा दी थी। ऐसे ही नहीं सदियों से रावण को पाप के प्रतीक के रूप में जलाया जा रहा है। कुछ तो बात रही होगी….

धन्यवाद !

अश्विनी राय ‘अरूण’

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