March 28, 2024

आज भी सबसे बड़ी चिन्ताजनक बात यह है की रामायण कब लिखा गया ? यह रामचरित है या सिर्फ कोई काल्पनिक ग्रंथ, वगैरह वगैरह। और इसमें कुछ भारतीय विद्वान समय सीमा तय करने में इस तरह उलझ जाते हैं की वे अपने धर्मग्रंथों द्वारा दिए कालखंड को दरकिनार कर अपनी विद्वता का परचम फहराते फिर रहे हैं। यह तो वही बात हुई की बेटा बाप से उनके कुल की मर्यादा पूछे। विद्वान यह कहते हैं कि यह ६०० ईपू से पहले लिखा गया है और उसके पीछे युक्ति भी यह देते हैं कि महाभारत जो इसके पश्चात आया बौद्ध धर्म के बारे में मौन है यद्यपि उसमें जैन, शैव, पाशुपत आदि अन्य परम्पराओं का वर्णन है। अतः रामायण गौतम बुद्ध के पूर्वकाल का होना चाहिये। भाषा विद्वानों के अनुसार इसकी भाषा-शैली पाणिनि के समय से पहले की होनी चाहिये। मगर यह बात हुई विद्वानों की विद्वता की, हम यहाँ उनके तर्कों में बिना पड़े सीधे सीधे इतना ही कह सकते हैं राम हमारे राजा हैं, भगवान हैं जिन पर कोई बहस की नहीं जा सकती और इसका सीधा साधा प्रमाण यह है की विश्वभर के तकरीबन सभी भाषाओं एवं बोलियों में रामकथा मिल जाएगी और इसी प्रमाण के साथ हम यहाँ प्रस्तुत हैं। 
भगवान श्री रामचन्द्र जी के जैसा  व्यक्तित्व, मर्यादा, नैतिकता, विनम्रता, करुणा, क्षमा, धैर्य, त्याग एवं पराक्रम का सर्वोत्तम उदाहरण पूरे संसार अथवा यूँ कहें चारों युगों और तीनों लोकों में किसी और को नहीं माना जा सकता है। श्रीराम का जीवनचरित्र एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में वर्णित है। रामायण भारतीय संस्कृति एवं स्मृति का वह अंग है जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा युगों युगों से गाई जाती रही हैं। वाल्मीकि जी द्वारा संस्कृत में रचित एक अनुपम महाकाव्य है, जीसमें २४,००० श्लोक हैं। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि कहा जाता है। रामायण में सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी उनके जीवन पर केन्द्रित भक्ति भाव से पूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य रामचरितमानस की रचना की है। वाल्मीकि रामायण एवं रामचरितमानस के अतिरिक्त कई  अन्य लेखकों ने भी कई अन्य भारतीय भाषाओं में रामायण की रचनाएं की हैं, जो काफी प्रसिद्ध रही हैं।
भिन्न-भिन्न प्रकार से गिनने पर रामायण तीन सौ से लेकर एक हजार तक की संख्या में विविध रूपों में मिलती हैं। इनमें से संस्कृत में वाल्मीकि रचित रामायण या आर्ष रामायण सबसे प्राचीन एवं मूल मानी जाती है। जिस प्रकार महर्षि वाल्मीकि जी के रामायण से प्रेरित एवं श्रीराम की भक्ति से वशीभूत होकर गोस्वामी जी ने रामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचना कर डाली और जो कि वाल्मीकि जी  के द्वारा संस्कृत में लिखे गये रामायण का हिंदी संस्करण भी है। रामचरितमानस मानवीय  आदर्शों का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसीलिये यह सनातन धर्म का प्रमुख ग्रंथ है। उसी प्रकार रामायण से ही प्रेरित होकर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने पंचवटी तथा साकेत नामक खंडकाव्यों की रचना की है।  रामायण में जहाँ सीता के समक्ष लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला को  शायद भूलवश अनदेखा कर दिया गया है और इस भूल को साकेत खंडकाव्य में मैथिलीशरण गुप्त जी ने सुधार किया है।साहित्यिक अथवा ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाए तो शोध एवं अन्वेषण के क्षेत्र में आज भी भगवान श्रीराम के चरित्र, त्रेतायुग का भूगोल, रहन सहन, सभ्यता, संस्कृति आदि जैसे बिषयों के बारे में आधिकारिक रूप से जानने का मूल स्रोत महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण ही है। और रही बात श्रीराम-कथा की तो यह केवल वाल्मीकीय रामायण तक सीमित नहीं है, यह कथा तुलसीकृत रामचरितमानस के साथ ही साथ महर्षि वेदव्यास रचित महाभारत में भी ‘रामोपाख्यान’ के रूप में आरण्यकपर्व (वन पर्व) में यह कथा वर्णित हुई है। इसके अतिरिक्त यह कथा ‘द्रोण पर्व’ तथा ‘शांतिपर्व’ में रामकथा के सन्दर्भ उपलब्ध हैं।
बौद्ध परंपरा में भी यह कथा श्रीराम से संबंधित दशरथ जातक, अनामक जातक तथा दशरथ कथानक नामक तीन जातक कथाओं में उपलब्ध है। जैन साहित्य में भी राम कथा से संबंधी कई ग्रंथ लिखे गये हैं, विमलसूरि द्वारा रचित पउमचरियं, आचार्य रविषेण द्वारा रचित पद्मपुराण (संस्कृत), स्वयंभू कृत पउमचरिउ, रामचंद्र चरित्रपुराण तथा गुणभद्र कृत उत्तर पुराण। जैन मतानुसार भगवान श्रीराम को ‘पद्म’ कहा गया है। 
श्रीराम कथानक से प्रेरित होकर श्री भागवतानंद गुरु ने संस्कृत महाकाव्य श्रीराघवेंद्रचरितम् की रचना की जो अद्भुत है एवं गुप्त प्रसंग कथाओं से परिपूर्ण है। इस ग्रंथ में २० से भी अधिक प्रकार के रामायणों की कथाओ का समावेश किया गया है। कविवर श्री राधेश्याम जी, जो कभी नेपाल के राजदरबार से सम्मानित हुए थे उनकी राधेश्याम रामायण, प्रेमभूषण की प्रेम रामायण, महर्षि कम्बन की कम्ब रामायण के अलावा और भी अनेक साहित्यकारों ने वाल्मीकि एवं तुलसी रामायण से प्रेरणा ले कर अनन्य कृतियों की रचना कर डाली है। उनमें से कुछ के नाम हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। 
प्रथमतः हम भारतीय भाषाओं में लिखी गई रामकथा पर चर्चा करेंगे, हिन्दी में ही कम से कम ११, मराठी में ५, बाङ्ला में २५, तमिल में १२, तेलुगु में १२ तथा उड़िया में ६ रामायण मिलती हैं। इनमें से गोस्वामी जी द्वारा रचित मानस ने पूरे उत्तर भारत में अपना विशेष स्थान बनाया है। 
इसके अतिरिक्त संस्कृत, गुजराती, मलयालम, कन्नड, असमिया, उर्दू, अरबी, फारसी आदि भाषाओं में रामकथा लिखी गयी। महाकवि कालिदास, महाकवि भास, क्षेमेन्द्र, भवभूति, राजशेखर, कुमारदास, विश्वनाथ, सोमदेव, गुणादत्त, नारद, लोमेश, केशवदास, गुरु गोविंद सिंह, समर्थ रामदास, संत तुकडोजी महाराज आदि चार सौ से अधिक कवियों तथा संतों ने अलग-अलग भाषाओं में राम तथा रामायण के दूसरे पात्रों के बारे में काव्यों/कविताओं की रचना की है। धर्मसम्राट स्वामी करपात्री ने ‘रामायण मीमांसा’ की रचना करके उसमें रामगाथा को एक वैज्ञानिक आयाम आधारित विवेचना प्रदान किया है। वर्तमान में प्रचलित बहुत से राम-कथानकों में आर्ष रामायण, अद्भुत रामायण, कृत्तिवास रामायण, बिलंका रामायण, मैथिल रामायण, सर्वार्थ रामायण, तत्वार्थ रामायण, प्रेम रामायण, संजीवनी रामायण, उत्तररामचरितम्, रघुवंशम्, प्रतिमानाटकम्, कम्ब रामायण, भुशुण्डि रामायण, अध्यात्म रामायण, राधेश्याम रामायण, श्रीराघवेंद्रचरितम्, मन्त्ररामायण, योगवाशिष्ठ रामायण, हनुमन्नाटकम्, आनंदरामायण, अभिषेकनाटकम्, जानकीहरणम् आदि मुख्य हैं। इनके अलावा विदेशों में भी तिब्बती रामायण, पूर्वी तुर्किस्तान की खोतानीरामायण, इंडोनेशिया की ककबिनरामायण, जावा का सेरतराम, सैरीराम, रामकेलिंग, पातानीरामकथा, इण्डोचायना की रामकेर्ति (रामकीर्ति), खमैररामायण, बर्मा (म्यांम्मार) की यूतोकी रामयागन, थाईलैंड की रामकियेन आदि मुख्य हैं। 
विश्व साहित्य में इतने विशाल एवं विस्तृत रूप से विभिन्न देशों में विभिन्न कवियों/लेखकों द्वारा राम के अलावा किसी और चरित्र का इतनी श्रद्धापूर्वक वर्णन नहीं किया है। भारत मे भी स्वतान्त्रोत्तर काल मे संस्कृत में रामकथा पर आधारित अनेक महाकाव्य लिखे गए हैं उनमे रामकीर्ति, रामश्वमेधीयम, श्रीमद्भार्गवराघवीयम, जानकीजीवनम, सीताचरितं, रघुकुलकथावल्ली, उर्मिलीयम, सीतास्वयम्बरम, रामरसायणं, सीतारामीयम, साकेतसौरभं आदि प्रमुख हैं। डॉ भास्कराचार्य त्रिपाठी रचित साकेतसौरभ महाकाव्य रचना शैली और कथानक के कारण विशिष्ट है। नाग प्रकाशन नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित यह महाकाव्य संस्कृत-हिन्दी दोनों मे समानांतर रूप में प्रस्तुत है। इतना हीं नहीं ग्रन्थों, खण्ड काव्य, महाकाव्य, गीतों, कविताओं के साथ ही साथ रामकथा पर कई नाटक भी लिखे गए हैं। जैसे, 
भास की छः अंकों वाली अभिषेक नाटक, यह भी रामकथा पर आश्रित है। इसमें रामायण के किष्किंधाकाण्ड से युद्धकाण्ड की समाप्ति तक की कथा अर्थात् बालिवध से राम राज्याभिषेक तक की कथा वर्णित है। श्रीराम राज्याभिषेक के आधार पर ही इसका नामकरण किया गया है। भास रचित प्रतिमा नाटक, यह नाटक सात अंकों का है, जिसमें भास ने राम वनगमन से लेकर रावणवध तथा राम राज्याभिषेक तक की घटनाओं को स्थान दिया है। महाराज दशरथ की मृत्यु के उपरान्त ननिहाल से लौट रहे भरत अयोध्या के पास मार्ग में स्थित देवकुल में पूर्वजों की प्रतिमायें देखते हैं, वहाँ दशरथ की प्रतिमा देखकर वे उनकी मृत्यु का अनुमान लगा लेते हैं। प्रतिमा दर्शन की घटना प्रधानता की वजह से इसका नाम प्रतिमा नाटक रखा गया है। इसके अलावा भास की हीं यज्ञफल नाटक, दिंन्नाग की कुन्दमाला। भवभूति की महावीरचरित, इस नाटक में रामविवाह से लेकर राज्याभिषेक तक की कथा निबद्ध की गई है। कवि ने कथा में कई काल्पनिक परिवर्तन किए हैं, जो रोचक हैं। यह वीररस प्रधान नाटक है।भवभूति की उत्तररामचरित, यह नाटक सात अंकों में है। राम के उत्तरजीवन को, जो अभिषेक के बाद आरंभ होता है, को चित्रित करता है। इसमें सीता निर्वासन कथा मुख्य है। अंतर यह है कि रामायण में जहाँ इस कथा का पर्यवसान (सीता का अंतर्धान) शोकपूर्ण है, वहीं इस नाटक की समाप्ति राम सीता के सुखद मिलन से की गई है।
आज के परिवेश में जहाँ राम के जन्म पर विवाद चरमोत्कर्ष पर है एवं उनकी जन्मभूमि आज पूरे विश्व में हास्यास्पद अवस्था में पहुंच चुकी है, और जीसका मुख्य कारण है बाबरी मस्जिद विवाद। और आश्चर्य की बात यह की उसी बाबर की अगली पीढ़ी के शासक ने, जिसे प्रगतिशील इतिहासकारों की पलटन ने अकबर महान कहा है। उसी अकबर ने नवम्बर १५८८ मेंं सचित्र रामायण का फारसी भाषा मे अनुवाद पूर्ण करवाया था जो आज भी जयपुर महल के  संग्रहालय मे सुरक्षित रखा हुआ है। इस रामायण मे ३६५ पृष्ठ एवं  १७६ चित्र हैं। इसके मुख्य चित्रकार लाल, केशव और बसावन हैं। इसी प्रकार कतर के दोहा मे भी मुगल रामायण रखा हुआ है, तथाकथित अकबर महान की मां हमीदा बानु बेगम के लिए बनाई गई थी। वह रामायण १६ मई १५९४ को पूर्ण हुए थी। मुगलिया कवि अब्दुल रहीम खानखाना ने भी सचित्र रामायण का अनुवाद मुख्य चित्रकार श्याम सुंदर से  करवाया था जो वर्तमान समय मे ‘फ्रिर गेलेरी ओफ आर्ट’ वाशिंगटन अमेरिका मे है। डबलिन के चेस्टर बेट्टी लाइब्रेरी, मे भी ४१ चित्रों वाली एक लघु योगवासिष्ठ रामायण है जो अकबर और जहाँगीर की कही जाती हैं।
इसके अलावा विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि ग्रीस के कवि होमर का प्राचीन काव्य इलियड, रोम के कवि नोनस की कृति डायोनीशिया तथा रामायण की कथा में अद्भुत समानता दिखती है।
अब हम प्रसिद्धतम रामायण और उनके रचयिताओं के नाम देखते हैं।
संस्कृत में – रामायण, योगवासिष्ठ, आनन्द रामायण, अगस्त्य रामायण एवं अद्भुत रामायण – वाल्मीकि जी कृत, अध्यात्म रामायण – वेद व्यास जी कृत, रघुवंश- कालिदास जी कृत।
हिन्दी में – रामचरितमानस – गोस्वामी तुलसीदास जी, राधेश्याम रामायण – राधेश्याम, पउमचरिउ या पद्मचरित (जैनरामायण) – अपभ्रंश विमलसूरि।
गुजराती में – राम बालचरित, रामविवाह, लवकुशाख्यान – भालण कृत, अंगदविष्टि, लवकुशाख्यान एवं रामायण – विष्णुदास कृत, सीतानां संदेशा, रणजंग एवं  सीतावेल- वजियो कृत, ऋषिश्रंग आख्यान, रणयज्ञ एवं रामायण – प्रेमानंद कृत, सीतानी कांचली एवं सीताविवाह – कृष्णाबाई कृत, रावण मंदोदरी संवाद एवं अंगदविष्टि – शामलभट्ट कृत, रावण मंदोदरी संवाद – श्रीधर, रामप्रबंध – मीठा, रामायणपुराण – स्वयंभूदेव, रामायण – नाकर, रामायण – कहान, रामायण – उद्धव, रामविवाह – वैकुंठ, सीतानो सोहलो – तुलसी, परशुराम आख्यान – शिवदास, महीरावण आख्यान – राणासुत, सीतास्वयंवर- हरिराम, सीतानो संदेशो – मंडण, रावण मंदोदरी संवाद – प्रभाशंकर, रामचरित्र – देवविजयगणि, रामरास – चन्द्रगणि, अंजनासुंदरीप्रबंध – गुणशील, सीताराम रास – बालकवि, अंगदविष्टि – कनकसुंदर, रामसीताप्रबंध – समयसुंदर, रामयशोरसायन – केशराज, सीताविरह – हरिदास, सीताहरण – जयसागर, सीताहरण – कर्मण, गुजराती योगवासिष्ठ – रामभक्त, राम बालकिया,सीतास्वयंवर – कालीदास, सीतामंगल – पुरीबाई, रामकथा – राजाराम, रामविवाह – वल्लभ, रामचरित्र – रणछोड, सीताना बारमास – रामैया, रामायण – गिरधर। 
उड़िया में – जगमोहन रामायण या दाण्डि रामायण या ओड़िआ रामायण – बळराम दास कृत, बिशिरामायण – बिश्वनाथ खुण्टिआ, सुचित्र रामायण – हरिहर, कृष्ण रामायण – कृष्णचरण पट्टनायक, केशब रामायण – केशब पट्टनायक, रामचन्द्र बिहार – चिन्तामणी, रघुनाथ बिळास – धनंजय भंज, बैदेहीशबिळास – उपेन्द्र भंज, नृसिंह पुराण – पीताम्बर दास, रामरसामृत सिन्धु – काह्नु दास, रामरसामृत – राम दास, रामलीळा – पीताम्बर राजेन्द्र, बाळ रामायण – बळराम दास, बिलंका रामायण – भक्त कवि शारलादास।
तेलुगु में – भास्कर रामायण, रंगनाथ रामायण, रघुनाथ रामायणम्, भोल्ल रामायण।
कन्नड में – कुमुदेन्दु रामायण, तोरवे रामायण, रामचन्द्र चरित पुराण, बत्तलेश्वर रामायण।
कथा रामायण – असमिया, कृत्तिवास रामायण – बांग्ला, भावार्थ रामायण – मराठी, रामावतार या गोबिन्द रामायण – पंजाबी (गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा रचित), रामावतार चरित – कश्मीरी, रामचरितम् – मलयालम, रामावतारम् या कंबरामायण – तमिल, रामायण – मैथिली (चन्दा झा)।भोजपुरी विकास न्यास, भोजपुरी साहित्य विकास मंच, विश्व भोजपुरी सम्मेलन, भोजपुरी साहित्य मंडल आदि भोजपुरी संस्थाओ से सम्मानित भोजपुरी के मूर्धन्य महाकवि श्री बद्री नारायण दुबे जी द्वारा रचित रामायण “रामरसायन” महाकाव्य रामकथा वाचकों को अभूतपूर्व स्वरूप प्रदान करती है।
इनके अलावा परंपरागत रामायण में, मन्त्र रामायण, गिरिधर रामायण, चम्पू रामायण, आर्ष रामायण या आर्प रामायण। बौद्ध परंपरा के अनुसार – अनामक जातक, दशरथ जातक एवं दशरथ कथानक। जैन मतानुसार पउमचरियं, पउमचरिउ, रामचंद्र चरित्रपुरण, उत्तर पुराण। 
भारतीय भाषाओं से इतर देश के बाहर के कुछ रामायण श्रृंखलाओं में,
नेपाल में- भानुभक्तकृत रामायण, सुन्दरानन्द रामायण एवं आदर्श राघव, सिद्धिदास महाजु। जावा-  सेरतराम, सैरीराम, रामकेलिंग एवं पातानीरामकथा।
इण्डोचायना- रामकेर्ति (रामकीर्ति), खमैररामायण। 
बर्मा (म्यांम्मार)- यूतोकी रामयागन, रामवथ्थु एवं महाराम। 
रामकर – कंबोडिया, तिब्बती रामायण, खोतानीरामायण – पूर्वी तुर्किस्तान, ककबिनरामायण – इंडोनेशिया, थाईलैंड -रामकियेन आदि। 
रामायण पर आधारित रामकथा नामक महाकाव्यात्मक उपन्यास की रचना समकालीन हिन्दी साहित्य के प्रख्यात लेखक श्री नरेन्द्र कोहली जी ने भी की है। मानस को भक्तिभाव से एवं  वाल्मीकि रामायण को श्रद्धाभाव से हम अपने मन्दिरों में स्थान देते हैं, मगर कठोरतम नियम एवं भाषा की तल्ल्खी की वजह से इन्हें हर वक्त अध्ययन कर पाना कठिन हो जान पड़ता है। लेकीन कोहली जी की रामकथा को आप रोमांचकारी उपन्यास के रूप में कभी भी कहीं भी बिना किसी के रोकटोक के पढ़ सकते हैं। राम चरित्र पर आधारित यह एक ऐसा महाकाव्यात्मक मौलिक उपन्यास है, जिसमें अतीत की कथा को वर्तमान सन्दर्भों में नवीन दृष्टिकोण से और भी सजीव कर दिया गया है। कोहली जी ने राम चरित्र और उनके जीवन की घटनाओ के माध्यम से, मानव मन और उसके बाह्य जगत  के सरोकारों को मार्मिक ढंग से मूर्तिमान किया है। इस उपन्यास में सात ठहराव हैं। पहले ठहराव में सत्य और न्याय पर आधारित ‘दीक्षा’ है। दूसरे पड़ाव में रूढ़ियों के विरोध करने के ‘अवसर’ हैं। तीसरे पड़ाव में कथा ‘संघर्ष की ओर’ बढ़ती है। चौथे पड़ाव पर ‘साक्षात्कार’ लेती है। पांचवे पड़ाव पर यह मित्रता की ‘पृष्टभूमि’ तैयार करती है। छठे पड़ाव से सीता की खोज का ‘अभियान’ शुरू हो जाता है। और फिर अंत में सातवें और अंतिम पड़ाव पर  ‘युद्ध’ और युद्ध के विचार अथवा विचारों का युद्ध को न्याय अन्याय के युद्ध के रूप में प्रस्तुत किया गया है। नरेन्द कोहली जी ने इस कालजयी कथा को अपने सशक्त लेखनी के माध्य से रामायण को अथवा रामकथा को अभूतपूर्व रूप से और समृद्ध किया है।
और अंत में, उन सवालों के जवाब जो महान विद्वानों द्वारा रामायण की आयु पर उठाए हैं। रामायण मीमांसा के रचनाकार धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी,  गोवर्धनपुरी शंकराचार्य पीठ, पं० ज्वालाप्रसाद मिश्र, श्रीराघवेंद्रचरितम् के रचनाकार श्रीभागवतानंद गुरु आदि के अनुसार श्रीराम अवतार श्वेतवाराह कल्प के सातवें वैवस्वत मन्वन्तर के चौबीसवें त्रेता युग में हुआ था जिसके अनुसार श्रीरामचंद्र जी का काल लगभग पौने दो करोड़ वर्ष पूर्व का है, और यह आप स्वंय युग एवं काल गड़ना कर देख सकते हैं। इसके सन्दर्भ में विचार पीयूष, भुशुण्डि रामायण, पद्मपुराण, हरिवंश पुराण, वायु पुराण, संजीवनी रामायण एवं अन्य पुराणों से प्रमाण दिया जाता है।

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