April 19, 2024

वैसे तो महात्मा गांधी के शिष्यों की संख्या हजारों लाखों में है मगर अनुयाइयों की संख्या अनगिनत है। देश के महत्वपूर्ण नेता और राजनीतिक गतिविधियाँ एवं सामाजिक कार्य गाँधीजी से ही प्रभावित थीं और आज भी हैं। मगर हम जिनकी बात करने जा रहे हैं, वो १९१५ मे महात्मा गांधी से मिले थे और उनकी आजादी और सामाजिक सुधार के कार्यो में उनके साथ हो गए थे। उसके बाद सामाजिक कार्य के प्रति उनकी ईमानदारी एवं समर्पण को देखकर गुजरात के राष्ट्रवादी विद्रोहियों के मुख्य आयोजक, दरबार गोपालदास देसाई, नरहरि परीख और मोहनलाल पंड्या ने उन्हें अपना मुख्य सहयोगी बना लिया। कालांतर में वे गांधीजी और सरदार पटेल के सबसे निकटतम सहयोगियों में से एक हो गए।

वैसे तो हमारे देश के नींव में अनेकों ऐसे नाम गड़े हैं जिन्हें आज कोई नहीं जानता। मगर जब उनके सम्मान में भारत सरकार ने १९८४ में डाक टिकट जारी किया, और जब गुजरात सरकार के सामाजिक न्याय विभाग ने सामाजिक कार्य के लिए एक लाख रुपये का रविशंकर महाराज पुरस्कार, स्थापित किया तब लोगों ने जाना की, वात्रक नदी के आसपास के गाँवो में लोगों का जीवन सुधारने वाला व्यक्ति कौन था ? किसने डाकुओं को पुनः मुख्यधारा में लाने का दुष्कर कार्य को किया था ? वह कौन था जिसने अन्धश्रद्धा निवारण आदि जैसे कार्य को किया ? आदि आदि…

२५ फरवरी, १८८४ को गुजरात राज्य के खेड़ा जिला अन्तर्गत राधू गांव में महाशिवरात्रि के दिन, पिताम्बर शिवराम व्यास जी एवं नाथी बा जी के घर रविशंकर व्यास जी का जन्म हुआ था, जो कालांतर में रविशंकर महाराज के नाम से जाने जाने लगे। बड़े होने के बाद उन्होंने तटीय एवं केंद्रीय गुजरात के बारैया और पाटनवाडिया जातियों के पुनर्वास के लिए वर्षों तक कार्य किया। छठवीं कक्षा तक पढ़े रविशंकर महाराज ने १९२० में सुनव गांव में राष्ट्रीय पाठशाला की स्थापना की। उन्होंने पत्नी की इच्छा के विरुद्ध जाकर पैतृक संपत्ति पर से अपना अधिकार छोड़ दिया और १९२१ में भारत माता की आजादी के लिए स्वतंत्रता आंदोलन की आग में छलांग लगा दी। जहाँ तक मैंने उनके बारे में पढ़ा है, उसके अनुसार आश्चर्य की बात यह है की इतनी कम शिक्षा के बावजूद उन्होने शिक्षण, ग्राम पुन: निर्माण और कोलकाता के बारे मे लिखा है।

देश की आजादी के बाद से रविशंकर जी की मृत्यु तक, एक परंपरा सी चलती रही कि गुजरात राज्य के नवनियुक्त मुख्यमंत्री कार्यालय की शपथ लेने के बाद उनसे आशीर्वाद के लिए जाते रहे।

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