April 19, 2024

विषय : साजिश
दिनाँक : ११/०१/२०२०

वो कौन हैं ?
जो साज़िश रचते हैं
तुम्हारे विरुध, हमारे विरुध।
उनके विरुध, हम सबके विरुध।

पहले पहल पांव दबाए
वो हमारे पास आते हैं
अपना विश्वास जमाते हैं
फिर दिल में जगह बनाते हैं

जब तक कुछ समझ पाते
अतिप्रिय लगने लग जाते हैं
एक खिली खिली सुबह में
वो रात वाली बात करते हैं

आस्तीन में छुपे साँप की भांति
यार के भेष में वो घात करते हैं
बिछाते जाते हैं राहों पर कांटे
वो रह-रह कर साजिशें रचते हैं

काँटों की चुभन से
पीड़ा असह्य उठती है
धंसते तो वे पांव में
लेकिन छाती फटती है

कराह उठता है अन्तर्मन
भावनाएं घुटती जाती हैं
आँखें रो पड़ती हैं
और इंसानियत मर जाती है

रच कर साज़िश
जैसे ही वो मुस्कुराते हैं
हमारे नसों में बहते लहू
लावा से बन जाते हैं

साजिशें होंगी अब बेनकाब
किए उनके बरसाएंगे आग
ये आग फैलेगी वहां तक
बकाया होगा जहाँ तक हिसाब

अश्विनी राय ‘अरूण

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