April 24, 2024

हिन्दी में जिस तरह भारतेन्दु हरिश्चंद्र युग, जयशंकर प्रसाद युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी युग हुए हैं, उसी तरह आधुनिक संस्कृत साहित्य में भी तीन युग हुए हैं। अप्पा शास्त्री राशिवडेकर युग, भट्ट मथुरानाथ शास्त्री युग, और वेंकट राघवन युग। आज हम संस्कृति युग के तीनों युगों में से एक युग के प्रतिपादक भट्ट मथुरानाथ राशिवडेकर जी की बात करेंगे…

भट्ट जी द्वारा प्रणीत साहित्य एवं रचनात्मक संस्कृत लेखन इतना विपुल है कि इसका समुचित आकलन आज तक नहीं हो पाया है। विद्वानों के कथानुसार अनुमानतः यह एक लाख पृष्ठों से भी अधिक है। राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली जैसे कई संस्थानों द्वारा उनके ग्रंथों का पुनः प्रकाशन किया गया है तथा कई अनुपलब्ध ग्रंथों का पुनर्मुद्रण भी हुआ है अथवा अभी किया जा रहा है।

वे संस्कृत सौन्दर्यशास्त्र के प्रतिपादक थे, जिसे हम कुछ इस तरह से समझते हैं…सौन्दर्यशास्त्र वह शास्त्र है जिसमें कलात्मक कृतियों, रचनाओं आदि से अभिव्यक्त होने वाला अथवा उनमें निहित रहने वाले सौंदर्य का तात्विक, दार्शनिक और मार्मिक विवेचन होता है। किसी सुंदर वस्तु को देखकर हमारे मन में जो आनन्ददायिनी अनुभूति होती है उसके स्वभाव और स्वरूप का विवेचन तथा जीवन की अन्यान्य अनुभूतियों के साथ उसका समन्वय स्थापित करना इनका मुख्य उद्देश्य होता है। यह संवेदनात्मक-भावनात्मक गुण-धर्म और मूल्यों का अध्ययन करता है। इसे ऐसे समझते हैं, कला, संस्कृति और प्रकृति का प्रतिअंकन ही सौंदर्यशास्त्र है। सौंदर्यशास्त्र, दर्शनशास्त्र का एक अंग है। इसे सौन्दर्य मीमांसा तथा आनन्द मीमांसा भी कहते हैं।

अब हम आते हैं मुख्य मुद्दे पर…

बीसवीं सदी पूर्वार्द्ध के प्रख्यात संस्कृत कवि, मूर्धन्य विद्वान, संस्कृत सौन्दर्यशास्त्र के प्रतिपादक, युगपुरुष एवं कविशिरोमणि भट्ट मथुरानाथ शास्त्री जी का जन्म २३ मार्च, १८८९ को आंध्रप्रदेश के कृष्णयजुर्वेद की तैत्तरीय शाखा अनुयायी वेल्लनाडु ब्राह्मण विद्वानों के प्रसिद्ध देवर्षि परिवार के देवर्षि द्वारकानाथ जी एवं जानकी देवी जी के यहाँ हुआ था। उनके बड़े भाई का नाम देवर्षि रमानाथ शास्त्री और पितामह का नाम देवर्षि लक्ष्मीनाथजी था। श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि, द्वारकानाथ भट्ट, जगदीश भट्ट, वासुदेव भट्ट, मण्डन भट्ट आदि प्रकाण्ड विद्वानों की वंश परम्परा में भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने अपने विपुल साहित्य अर्जन तत्पश्चात सर्जन की आभा से संस्कृत जगत् को प्रकाशवान किया।

सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर शहर की स्थापना के समय बसने का न्यौता दिया था।

भट्ट जी का इतिहास, कृतित्व, उनकी पुस्तकें, उनकी रचनाएँ अथवा उनपर लिखी पुस्तकें, उनपर किए गए अथवा किए जा रहे शोध, उनकी मित्र मंडली अथवा उनके शिष्यों की श्रृंखला आदि उनके वैभव की गाथा गाते हैं। जिनके कुछ प्रमाण जो मेरे अल्प ज्ञान में आई हैं वह आप सभी सुधीजनों के सम्मुख प्रस्तुत करता हूँ…

प्रकाशित पुस्तक

१) लिखित…

जयपुर वैभवम्,
साहित्य वैभवम्,
गोविन्द वैभवम्,
गीतिवीथी,
भारत वैभवम्,
संस्कृत सुबोधिनी (दो भागों में),
संस्कृत सुधा,
सुलभ संस्कृतम् (तीन भागों में),
गीतगोविन्दम्,
आदर्श रमणी (उपन्यास),
मोगलसाम्राज्यसूत्रधारो महाराजो मानसिंह,
भक्तिभावनो भगवान,
गाथा रत्नसमुच्चय,
संस्कृत गाथासप्तशती,
गीर्वाणगिरागौरवम्,
प्रबंध पारिजात,
शिलालेख ललंतिका,
शरणागति रहस्य,
व्रजकविता वीथी,
चतुर्थीस्तव,
चंद्रदत्त ओझा आदि।

२) पाठ, सम्पादन, संशोधन तथा टीका…

पण्डितराज जगन्नाथ कृत ‘रसगंगाधर’ का सम्पादन, संशोधन व ‘सरला’ टीका।

बाणभट्ट विरचित ‘कादम्बरी’ का सम्पादन तथा उस पर ‘चषक’ टीका।

जयदेव विरचित ‘गीतगोविन्द’ का सम्पादन।

श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि के ‘ईश्वरविलास महाकाव्य’ का सम्पादन, संशोधन एवं ‘विलासिनी’ टीका।

श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि की ‘पद्यमुक्तावली’ का सम्पादन, संशोधन व ‘गुणगुम्फनिका’ नामक व्याख्या।

श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि की ‘वृत्त मुक्तावली’ का सम्पादन और टीका।

३) निबन्ध…

उन्होंने ललित, समीक्षात्मक, विचारात्मक, विवरणात्मक, वर्णनात्मक, तथा शोध निबन्ध जैसी श्रेणियों में लगभग 120 निबंध लिखे हैं।

४) कथा…

मनोवैज्ञानिक, विविध, हास्य, प्रतीकात्मक, प्रणय, सामाजिक, एवं ऐतिहासिक श्रेणियों के अंतर्गत उनकी लगभग 80 कहानियां प्रकाशित हुई हैं।

अप्रकाशित ग्रन्थ

धातुप्रयोग पारिजात,
आर्याणाम् आदिभाषा,
काव्यकुंजम्,
रससिद्धांत,

संस्कृत पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन

१. संस्कृत रत्नाकर (वेद, आयुर्वेद, शिक्षा, दर्शन, शोध आदि पर विशेष अंक)
२. भारती

भट्ट मथुरानाथ शास्त्री पर आधारित प्रकाशित कुछ पुस्तकों के नाम

संस्कृत के युगपुरुष मंजुनाथ,
आधुनिक संस्कृत साहित्य एवं भट्ट मथुरानाथ शास्त्री,
मंजुनाथ वाग्वैभवम्,
श्री मथुरानाथ शास्त्रिणः कृतित्वसमीक्षणम्,
मंजुनाथगद्यगौरवम,
मंजुनाथवाग्वैजयंती,
भट्टस्मृति विशेषांक,
भट्टजन्मशताब्दीविशेषांक,
भट्ट मथुरानाथस्य काव्यशास्त्रीया निबन्धा,
भारतीय साहित्य निर्माता:भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ‘मंजुनाथ’,
मंजुनाथ ग्रन्थावली (५ खण्ड)।

व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रमुख शोधकार्य

भट्ट श्री मथुरानाथ शास्त्री व्यक्तित्व एवं कृतित्व,
संस्कृत मुक्तकपरंपरा को भट्टजी का अवदान,
भट्ट मथुरानाथशास्त्रिकृत समस्या संदोह,
संस्कृत निबन्ध साहित्य में भट्टजी का अवदान,
गोविन्दवैभवम् आदि।

भट्ट जी के मित्र परिकर में प्रमुख आयुर्वेदमार्तण्ड वैद्य स्वामी लक्ष्मीराम, महामहोपाध्याय गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, अनुज सोमदेव शर्मा गुलेरी, राजगुरु चन्द्रदत्त मैथिल, सूर्यनारायण शर्मा, प्रशासक श्यामसुन्दर पुरोहित, वेदविज्ञ मोतीलाल शास्त्री, गिरिजाप्रसाद द्विवेदी, पंडित झाबरमल्ल शर्मा, डॉ॰ पी.के. गोडे, गोस्वामि गोकुलनाथजी, पुरुषोत्तम चतुर्वेदी, नारायण शास्त्री खिस्ते, राय कृष्णदास, प्रसिद्ध चित्रकार असितकुमार हालदार, पट्टाभिराम शास्त्री, गिरिधर शर्मा ‘नवरत्न’, आदि विद्वानों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है।

मगर विद्वानों की एक और श्रृंखला है जो उनकी बाद की पीढ़ी हैं और वे उनके शिष्य हैं, जिनकी संख्या असंख्य हैं… किन्तु उनके प्रिय शिष्यों में झालावाड के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान पंडित गणेशराम शर्मा, इतिहास और संस्कृतिविद गोपालनारायण बहुरा, जयपुर के प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान वृद्धिचन्द्र शास्त्री, वैद्य मुकुंददेव, चिकित्सक डॉ॰ श्रीनिवास शास्त्री, ‘भारती’ के प्रकाशक दीनानाथ त्रिवेदी ‘मधुप’, उद्योगपति कन्हैयालाल तिवाड़ी, प्रशासक शेरसिंह, द्वारकानाथ पुरोहित, समाजसेवी सिद्धराज ढड्ढा, वनस्थली विद्यापीठ के प्राचार्य प्रवीणचन्द जैन, पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी युगल किशोर चतुर्वेदी, राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री, वैद्य चंद्रशेखर शास्त्री आदि प्रमुख हैं।

एक कवि, संपादक, उपन्यासकार, आलोचक, कथाकार, वक्ता, टीकाकार, लेखक और पत्रकार के रूप में भट्ट मथुरानाथ शास्त्री जी का विशाल कृतित्व विस्मयकारी जो आश्चर्य का माहौल बनाता है। इसमें अधिकतर साहित्य तो पुस्तकों, पत्रिकाओं तथा अन्य प्रकाशित सामग्री के माध्यम से उपलब्ध है, किन्तु फिर भी बहुत साहित्य अभी प्रकाश में आना बाकी है। उन्होंने ‘संस्कृत रत्नाकर’ का, जो कि अखिल भारतीय संस्कृत सम्मलेन का मुखपत्र था, तथा ‘भारती’ मासिक पत्रिका का संपादन करके संस्कृत-पत्रकारिता के क्षेत्र में उच्च मानक स्थापित किए। उनके ‘आदर्श रमणी’ तथा ‘अनादृता’ जैसे उपन्यासों को रवीन्द्रनाथ टैगोर के बंगाली उपन्यासों के समतुल्य माना गया है। ‘मंजुला’ जैसे उनके रचित रेडियो नाटकों ने भी उन दिनों बड़ी लोकप्रियता प्राप्त की थी।

भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने ‘मंजुनाथ’ उपनाम से अपना साहित्य रचा है। उन्होंने संस्कृत लेखन में पारंपरिक तरीकों और छंदों से अलग हट कर लेखन की एक सर्वथा नूतन शैली को जन्म दिया तथा लगभग सभी भारतीय और विदेशी भाषाओं जैसे उर्दू, फ़ारसी, अरबी, ब्रजभाषा, अपभ्रंश आदि में प्रचलित छंदों को सम्मिलित करके कुछ श्रेष्ठतर संस्कृत कविताओं की रचना की। ग़ज़ल, ठुमरी, ध्रुपद जैसी गायन-शैलियों में भी उन्होंने अनेक संस्कृत पद्य लिखे। एक क्रांति के रूप में उन्होंने आधुनिक विषयों और विचारों के साथ स्पष्ट, रोचक और प्रांजल शैली में अपने संस्कृत काव्य-सृजन को संजोया। आपने हिन्दी और व्रजभाषा में भी अनेक रचनाएँ की हैं तथा हिन्दी साहित्य में प्रचुर योगदान दिया है। वाराणसी में ‘संस्कृत के भाषाई कौशल’ पर अपनी एक व्याख्यान श्रृंखला में उन्होंने संस्कृत भाषा में समानार्थी शब्दों के प्रयोग से एक ही वाक्य को १०० से अधिक प्रकार से कह कर उपस्थित विद्वानों तथा श्रोताओं को चमत्कृत कर दिया था। उन्होंने संस्कृत की शक्ति दर्शाने के उद्देश्य से ‘मकारमहामेलकम्’ शीर्षक से एक ऐसा विलक्षण ललित निबन्ध भी लिखा था, जिसका प्रत्येक शब्द ‘म’ से आरम्भ होता था।बड़ौदा विश्वविद्यालय में संस्कृत काव्यशास्त्र पर और पण्डितराज जगन्नाथ पर उन्होंने मंत्रमुग्ध कर देने वाले व्याख्यान दिए। उन्होंने आकाशवाणी, जयपुर से संस्कृत साहित्य पर लगभग ५० वार्ताएं प्रसारित की हैं।

जयपुर, राजस्थान के ‘मंजुनाथ स्मृति संस्थान’ नामक केन्द्र में भट्ट मथुरानाथ शास्त्री के विषद पुस्तक संग्रह के अतिरिक्त अनेक पाण्डुलिपियाँ, संस्कृत व हिन्दी साहित्य की प्राचीन दुर्लभ पत्रिकाएं, पुस्तक, विशेषांक, आदि उपलब्ध हैं। शोधार्थियों को संस्थान से मार्गदर्शन व संस्कृत साहित्य के इतिहास तथा संस्कृत पत्रकारिता की बहुमूल्य जानकारी मिलती है।

About Author

Leave a Reply