April 18, 2024

भाई, छेड़ो नहीं,
मुझे खुलकर रोने दो,
यह पत्थर का हृदय
आँसुओं से धोने दो,
रहो प्रेम से तुम्हीं
मौज से मंजु महल में,
मुझे दुखों की इसी
झोपड़ी में सोने दो।

हिन्दी जगत के मूर्धन्य कवि, लेखक और पत्रकार श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म ४ अप्रैल, १८८९ को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिताजी का नाम नन्दलाल चतुर्वेदी था जो गाँव के प्राथमिक स्कूल के शिक्षक थे। अतः माखनलाल जी की प्राथमिक शिक्षा वहीं हुई, तत्पश्चात इन्होंने संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी, गुजरती आदि कई अन्य भाषाओँ का ज्ञान उन्होंने घर पर ही प्राप्त किया।

बात १९०८ की है, माधवराव सप्रे के हिन्दी केसरी में ‘राष्ट्रीय आंदोलन और बहिष्कार’ विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया। खंडवा के युवा अध्यापक माखनलाल चतुर्वेदी का निबंध प्रथम चुना गया। अप्रैल १९१३ में खंडवा के हिन्दी सेवी कालूराम गंगराड़े ने मासिक पत्रिका प्रभा का प्रकाशन आरंभ किया, जिसके संपादन का दायित्व माखनलाल जी को सौंपा गया। अतः उन्होंने अध्यापक की नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह पत्रकारिता, साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए समर्पित हो गए। इसी वर्ष कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रताप का संपादन-प्रकाशन आरंभ किया। लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान उन्होंनेे विद्यार्थीजी के साथ मैथिलीशरण गुप्त और महात्मा गाँधी से मुलाकात की। महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन पहली गिरफ्तारी देने वाले माखनलालजी ही थे। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी उन्हें गिरफ्तारी देने का प्रथम सम्मान मिला।

आग उगलती उधर तोप,
लेखनी इधर रस-धार उगलती।
प्रलय उधर घर-घर पर उतरा,
इधर नज़र है प्यार उगलती!
उधर बुढ़ापा तक बच्चा है,
इधर जवानी छन-छन ढलती॥

१९४३ की बात है जब हिन्दी साहित्य का सबसे बड़ा ‘देव पुरस्कार’ माखनलाल जी को हिम किरीटिनी पर दिया गया था। १९५४ में साहित्य अकादमी पुरस्कारों की स्थापना होने पर हिन्दी साहित्य के लिए प्रथम पुरस्कार माखनलाल को हिमतरंगिनी के लिए प्रदान किया गया। पुष्प की अभिलाषा और अमर राष्ट्र जैसी ओजस्वी रचनाओं के रचयिता इस महाकवि के कृतित्व को सागर विश्वविद्यालय ने १९५९ में डीलिट् की मानद उपाधि से विभूषित किया गया। १९६३ में भारत सरकार ने पद्मभूषण से अलंकृत किया। १० सितंबर १९६७ को राष्ट्रभाषा हिन्दी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में माखनलाल जी ने यह अलंकरण लौटा दिया। १९६५ में मध्यप्रदेश शासन की ओर से खंडवा में माखनलाल चतुर्वेदी के नागरिक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। तत्कालीन राज्यपाल श्री हरि विनायक पाटसकर और मुख्यमंत्री पं॰ द्वारकाप्रसाद मिश्र तथा हिन्दी के अग्रगण्य साहित्यकार-पत्रकार इस गरिमामय समारोह में उपस्थित थे। भोपाल का माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय उन्हीं के नाम पर स्थापित किया गया है। उनके काव्य संग्रह ‘हिमतरंगिणी’ के लिये उन्हें १९५५ में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

तो मधुर मधुमास का वरदान क्या है?
तो अमर अस्तित्व का अभिमान क्या है?
तो प्रणय में प्रार्थना का मोह क्यों है?
तो प्रलय में पतन से विद्रोह क्यों है?

माखनलाल चतुर्वेदी जी की कृतियाँ…

काव्य कृतियाँ:-
हिमकिरीटिनी, माता, युगचरण, हिमतरंगिणी, समर्पण, वेणु लो गूँजे धरा, धूम्र-वलय, बीजुरी काजल आँज रही एवं विविध कविताएँ।

गद्यात्मक कृतियाँ:-
कृष्णार्जुन युद्ध, साहित्य के देवता, समय के पांव, अमीर इरादे:गरीब इरादे आदि।

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