April 25, 2024

समस्त संसार में आज ऐसा कोई नहीं है जो बिड़ला परिवार के नाम को नहीं जानता होगा। बिड़ला परिवार भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक एवं औद्योगिक परिवारों में से एक है। इस परिवार के अधीन वस्त्र उद्योग, आटोमोबाइल्स, सूचना प्रौद्योगिकी आदि जैसे बड़े व्यवसाय हैं। बिड़ला परिवार स्वतंत्रता संग्राम का नैतिक एवं आर्थिक रूप से समर्थक था, जिसके कारण उन्हें कई बार जबरदस्त नुकसान का सामना भी करना पड़ा था।

बिड़ला समूह के संस्थापक बलदेवदास बिड़ला जी थे जो राजस्थान के सफल मारवाड़ी समुदाय से आते थे। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दिनों में वे अपना पारिवारिक व्यवसाय की शुरुवात करने के लिए कलकत्ता चले आए और उस समय चल रहे स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन के साथ निकट से जुड़ गये।

बिड़ला समूह के पुरोधा बलदेवदास बिड़ला जी के यहाँ २३ मई,१८८३ को जुगल किशोर बिड़ला का जन्म हुआ। उनके जन्म के समय भविष्यवक्ताओ ने जो कहा वह आप सबके सम्मुख प्रस्तुत करता हूँ… उनके अनुसार जुगल किशोर बिड़ला संसार को अपने कार्यों से एक नयी दिशा प्रदान करेंगे। इसमें कोई शंका नहीं है कि जुगल किशोर बिड़ला ईमानदारी को व्यापक रूप से प्रयोग कर नव-कीर्तिमान स्थापित करेंगे। जुगल किशोर बिड़ला अपने मित्रों से अपने उद्देश्य, अपनी बात, आर्थिक विषय इत्यादि में ईमानदार होने की उम्मीद करेंगे। दूसरों के साथ जुगल किशोर बिड़ला का व्यवहार सबसे बड़ी कमजोरी रहेगी। जुगल किशोर बिड़ला अकुशलता को सहन नहीं करेंगे और जो लोग जुगल किशोर बिड़ला की आंखों से आंखें मिलाकर नहीं देख सकेंगे जुगल किशोर बिड़ला उन्हें हेय दृष्टि से देखते रहेंगे। जुगल किशोर बिड़ला को उन लोगों के प्रति सहनशीलता का गुण विकसित करना होगा, जिन्हे जुगल किशोर बिड़ला प्रायः अस्वीकृत कर देंगे।’ कालांतर में ये सारी बातें सही साबित हुई।

जुगल किशोर बिड़ला क्रियात्मक स्वभाव के व्यक्ति थे और सदैव गतिशील रहते थे। अतः उन्हें हमेशा योजना बनाते देखा जा सकता था। वे अकर्मण्यता को कभी भी सहन नहीं कर सकते थे। जुगल किशोर बिड़ला के अन्दर पर्याप्त इच्छाशक्ति थी और स्वतन्त्रता का भाव उनके अन्दर कूट-कूट के भरा हुआ था। अपने काम में दूसरों का दखल वे बर्दाश्तन नहीं करते। उनके लिए अपने विचारों व कार्यों की स्वतन्त्रता सर्वोपरि थी। वे मौलिक सोच रखते थे जोकि बहुआयामी होती थी। जुगल किशोर बिड़ला नये तरीकों का अन्वेषण अथवा उद्देश्यपूर्ण मौलिक आविष्कार पर विशेष ध्यान देते थे।

साथ ही वे आध्यात्मिक महापुरुष थे, जिन्होंने वेदों के अनुसार अथवा भगवान की आज्ञा समझ दोनो हाथों से धन उपार्जित किया और अनेक हाथों से उसे सत्कर्मों में वितरण किया। जुगलकिशोर जी के ह्रदय में सह्रदयता और मानवता की भावना कूट कूट कर भरी थी अतः वे स्वयं उपस्थित होकर सेवाकार्यों में भाग लेते थे।

एक बार की बात है पिलानी में मूसलाधार वर्षा हुई, जिससे चारों तरफ जल भर गया और कच्चे मकान गिरने लगे। देखते ही देखते अनेको लोग बेघर हो गये।यह देखकर बिरला कॉलेज के अध्यापक और छात्र सहायता के लिए वहाँ पहुंचे और गरीबों की झोंपड़ियों के पास से पानी को काट कर निकालने का प्रयत्न करने लगे। इतने में देखा गया कि जुगलकिशोर जी स्वयं भी धोती चढ़ाये और वर्षा में भीगते हुए वहां उपस्थित हैं। उसी समय उन्होंने व्यवस्था की कि जिनके घर टूट गये हैं, उनको अतिथि गृह और कुबेर भंडार में ले जाकर टिका दिया जाये। हरिजन लोगों के घर भी डूब रहे थे, पर उन्होंने तब तक अपने घरों को छोड़ने में असहमति प्रकट की जब तक उनका सामान भी उनके साथ सुरक्षित न पहुँचा दिया जाये। बिरलाजी ने छात्रों से कहकर उनका सामान उनके खाटों पर रखकर ठहरने वाली जगह पर पहुँचाने की व्यवस्था करवा दी। तब तक सभी लोग उनके यहाँ ठहरे जब तक पानी हट नहीं गया। पानी हटने के पश्चात मकानों की मरम्मत के लिए ईंट, बल्ली, टीन आदि का प्रबंध भी करावा दिया।

उनके जीवन की ऐसी सहस्त्रों घटनाएँ हैं। पहले परिश्रम करके धन कमाना और फिर उसे अपने सुख, आनन्द में व्यय न करके उसे समाज के अभ्युत्थान में लगाना, यही उनके जीवन का सदा ध्येय रहा। सफेद संगमरमर एवं बलुआ पत्थर से पूरे भारत सहित विश्व के अन्य देशों में बने बिरला मंदिर इसके महान आत्मा द्वारा किए कार्यो का एक खुबसूरत एवं महान उदाहरण है।

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