March 28, 2024

गणेश दामोदर सावरकर उर्फ बाबाराव सावरकर का जन्म १३ जून, १८७९ को महाराष्ट्र राज्य के नासिक नगर के निकट भागपुर नामक स्थान के दामोदर विनायक सावरकर एवं राधाबाई दामोदर सावरकर के यहाँ हुआ था। वे अपने माता पिता की पहली संतान थे, यानी भाई बहनों में सबसे बड़े, उनके बाद दूसरे स्थान पर विनायक दामोदर सावरकर थे जिन्हें इतिहास वीर सावरकर के नाम से जानता है और फिर तीसरे स्थान पर उनकी बहन मैनाबाई थी। इन सभी के बाद नारायण दामोदर सावरकर सबसे छोटे थे। नासिक में ही उनकी शिक्षा हुई। आरंभ में उनकी रुचि धर्म, योग, जप, तप आदि विषयों की ओर ज्यादा थी। माता-पिता की जल्द मृत्यु हो जाने के बाद बीस वर्ष की आयु में ही परिवार की जिम्मेदारी युवक गणेश के कंधे पर आ गई थी।

वर्ष १८९७ में प्लेग आफीसर रेंड के अत्याचारों से क्रुद्ध होकर चापेकर बंधुओं ने उसकी हत्या कर दी, जिससे पूरे महाराष्ट्र में हलचल मच गई। मगर गणेश पर (जो बाबा सावरकर कहलाते थे) इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। एक बार तो वे सन्न्यास लेने की सोचने लगे थे पर प्लेग में पिता की मृत्यु हो जाने के कारण और छोटे भाई बहनों की शिक्षा-दीक्षा, पालन पोषण आदि का दायित्व आ जाने से उनकी यह इच्छा पूरी ना हो सकी। एक तो कम आयु ऊपर से परिवार की पूरी जिम्मेदारी फिर भी उन्होंने भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन का नेतृत्व करना शुरू कर दिया। सही मायनो में गर कहा जाए तो वीर सावरकर, उन्ही के पदचिन्हों पर चले थे। महाराष्ट्र में उस समय ‘अभिनव भारत’ नामक क्रांतिकारी दल काम कर रहा था। विनायक सावरकर भी इस दल से संबद्ध थे। विनायक जब इंग्लैण्ड चले गए तो उनका काम भी बाबा सावरकर ने अपने हाथों में ले लिया। वे विनायक की देशभक्ति रचनाओं के साथ उनकी इंगलैण्ड से भेजी अन्य सामग्री को यहाँ भारत में मुद्रित कराते, उसका वितरण करते और साथ ही ‘अभिनव भारत’ के लिए धन भी एकत्र करते। ऐसा कार्य जो सरकार की दृष्टि से गैरकानूनी हो ओझल कैसे रह सकता था। वर्ष १९०९ में वे गिरफ्तार कर लिए गए। उनपर देशद्रोह का मुक़दमा चला और आजीवन कारावास की सज़ा देकर अंडमान भेज दिए गए। वर्ष १९२१ में उन्हें वहाँ से भारत लाय़ा गया और एक वर्ष तक के लिए साबरमती जेल में बंद कर दिया गया। जहाँ से वे १९२२ में रिहा हुए और डॉ. हेडगेवार के संपर्क में आए।

एम.जे.अकबर लिखते हैं कि “आरएसएस शुरू करने वाले पांच दोस्त डॉ.बी.एस.मूनजे, डॉ.एल.वी.परांजपे, डॉ.थोलकर, डॉ.हेडगेवार और बाबाराव सावरकर स्वयं थे”।

रिति कोहली ने लिखा है कि गणेश सावरकर का राष्ट्रवाद पर निबंध “राष्ट्र मीमांसा” को वर्ष १९३८ में गोलवलकर ने “हम, और हमारा, राष्ट्रवाद” के नाम से दुबारा परिभाषित किया था। जिसे किन्ही कारणो से बाद में समाप्त कर दिया गया, जो सही मायने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा का पहला व्यवस्थित वक्तव्य था।

गणेश दामोदर सावरकर ने अनेको पुस्तको की रचना की है।  दुर्गानंद के छद्म नाम से उनकी पुस्तक ‘इंडिया एज़ ए नेशन’ को सरकार ने जब्त कर ली थी। वे हिन्दू राष्ट्र और हिन्दी के समर्थक थे।

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