सुचेता कृपलानी

आईए, आज हम भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री श्रीमती सुचेता कृपलानी जी के बारे में जिनका जन्म २५ जून, १९०८ को हरियाणा के अम्बाला शहर में हुआ था। उनकी शिक्षा लाहौर और दिल्ली में हुई थी। १९६३ से १९६७ तक वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। सुचेता कृपलानी देश की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं। वे बंटवारे की त्रासदी में महात्मा गांधी के बेहद क़रीब रहीं। सुचेता कृपलानी उन चंद महिलाओं में शामिल थीं, जिन्होंने बापू के क़रीब रहकर देश की आज़ादी की नींव रखी। वह नोवाखली यात्रा में बापू के साथ थीं। वर्ष १९६३ में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने से पहले वह लगातार दो बार लोकसभा के लिए चुनी गईं। सुचेता दिल की कोमल तो थीं, लेकिन प्रशासनिक फैसले लेते समय वह दिल की नहीं, दिमाग की सुनती थीं। उनके मुख्यमंत्री काल के दौरान राज्य के कर्मचारियों ने लगातार ६२ दिनों तक हड़ताल जारी रखी, लेकिन वह कर्मचारी नेताओं से सुलह को तभी तैयार हुईं, जब उनके रुख़ में नरमी आई। जबकि सुचेता के पति आचार्य कृपलानी खुद समाजवादी थे। आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल की सज़ा हुई। १९४६ में वह संविधान सभा की सदस्य चुनी गईं। १९४८ से १९६० तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव थीं।

भारत छोड़ो आंदोलन में सुचेता कृपलानी ने लड़कियों को ड्रिल और लाठी चलाना सिखाया। नोआखली के दंगा पीड़ित इलाकों में गांधी जी के साथ चलते हुए पीड़ित महिलाओं की मदद की। १५ अगस्त, १९४७ को संविधान सभा में वन्देमातरम् गाया। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने राज्य कर्मचारियों की हड़ताल को मजबूत इच्छाशक्ति के साथ वापस लेने पर मजबूर किया। वे पहले साम्यवाद से प्रभावित हुईं और फिर पूरी तरह गांधीवादी हो गईं। उत्तरप्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी की जिंदगी के ये पहलू उन्हें ऐसी महिला की पहचान देते हैं, जिसमें अपनत्व और जुझारूपन कूट-कूट कर भरा था। एक शख्सीयत कई रूप। आज इतने गुणों वाले राजनेता शायद ही मिलें। भारत छोड़ो आंदोलन में जब सारे पुरुष नेता जेल चले गए तो सुचेता कृपलानी ने अलग रास्ते पर चलने का फैसला किया। ‘बाकियों की तरह मैं भी जेल चली गई तो आंदोलन को आगे कौन बढ़ाएगा।’ वह भूमिगत हो गईं। उस दौरान उन्होंने कांग्रेस का महिला विभाग बनाया और पुलिस से छुपते-छुपाते दो साल तक आंदोलन भी चलाया। इसके लिए अंडरग्राउण्ड वालंटियर फोर्स बनाई। लड़कियों को ड्रिल, लाठी चलाना, प्राथमिक चिकित्सा और संकट में घिर जाने पर आत्मरक्षा के लिए हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी। राजनीतिक कैदियों के परिवार को राहत देने का जिम्मा भी उठाती रहीं। दंगों के समय महिलाओं को राहत पहुंचाने, चीन हमले के बाद भारत आए तिब्बती शरणार्थियों के पुनर्वास या फिर किसी से भी मिलने पर उसका दुख-दर्द पूछकर उसका हल तलाशने की उनकी कोशिश हमेशा रहती थी।

निजी जीवन…

जीवतराम भगवानदास कृपलानी और सुचेता मजूमदार की पहली मुलाकात कहाँ हुई ये कहना मुश्किल है लेकिन ये जरूर कहा जा सकता है कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय कहीं न कहीं उनके प्यार की धुरी जरूर बना था। बाद में महात्मा गांधी के साथ काम करते हुए दोनों में नजदीकी आती गई, लेकिन गांधीजी यह जानकर हैरान रह गए कि उन्हीं के आश्रम में उन दोनों का प्यार फला-फूला। दोनों कांग्रेस के दिग्गज नेता थे लेकिन आने वाले सालों में उनकी भूमिका ऐसी बदली कि वो विरोधी कैंपों में शामिल हो गए। कृपलानी सिंध के हैदराबाद में पैदा हुए थे। असाधारण तौर पर पढ़ने में बेहद कुशाग्र और कुछ अलग तरह से सोचने वाले शख्स थे। ऐसे शख्स भी जो अपने आप में रहना ज्यादा पसंद करते थे। उनके बारे में कहा जाता था कि वो बहुत आसानी के साथ अपने प्रिय लोगों से खुद को अलग कर लेते थे। कृपलानी को जो भी जानते हैं वो मानते थे वो बेहद अनुशासित और आदर्शों के पक्के शख्स थे। स्त्रियों से खुद को हमेशा दूर रखने वाले थे। ये माना जाने लगा था कि विवाह उनकी डिक्शनरी में नहीं है। कृपलानी आज़ादी से पहले लंबे समय तक कांग्रेस के महासचिव रहे और जब देश आज़ाद हो रहा था तब वह इस पार्टी के अध्यक्ष थे। हालांकि आज़ादी के बाद स्थितियां ऐसी बनीं कि कांग्रेस विरोध और विपक्ष की राजनीति करने लगे और आजीवन ऐसा करते रहे। इधर सुचेता कांग्रेस राज में मंत्री बनीं और मुख्यमंत्री भी।

आचार्य कृपलानी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर बनकर आए, हालांकि वह यहां एक ही साल रहे, लेकिन वो एक साल ही उस विश्वविद्यालय पर उनका प्रभाव छोड़ने के लिए काफी था। इसके बाद उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन के लिए नौकरी छोड़ दी। इसके कुछ साल बाद बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में सुचेता मजुमदार प्रोफेसर बनकर आईं। उनके कानों में अक्सर आचार्य कृपलानी की बातें सुनाई पड़ती थीं। खासकर उनके जीनियस टीचर होने की और फिर उनके गांधीजी के खास सहयोगी बन जाने की। उन्हीं दिनों कृपलानी जब कभी बनारस आते तो बीएचयू के इतिहास विभाग जरूर जाते। उसी दौरान उनकी मुलाकात सुचेता से हुई, जिनमें एक प्रखरता भी थी और आज़ादी आंदोलन से जुड़ने की तीव्रता भी। कहा जा सकता है कि कृपलानी कहीं न कहीं इस बंगाली युवती से प्रभावित हो गए थे। दोनों में काफी बातें होने लगीं। जब कुछ मुलाकातों के बाद सुचेता ने उनसे गांधीजी से जुड़ने की इच्छा जाहिर की तो कृपलानी इसमें सहायक भी बने। हालांकि वह उन्हें राजनीति में आने से लगातार हतोत्साहित भी करते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि महिलाओं को राजनीति में दामन साफ बचाकर रखना मुश्किल होता था। इसलिए वह उनसे लगातार कहते भी थे अपना दामन साफ रखना। आचार्य कृपलानी उनके मार्गदर्शक और विश्वस्त बन गए। समय के साथ जब दोनों का काफी समय एक दूसरे के साथ बीतने लगा तो वो करीब आने लगे, हालांकि किसी को भी अंदाज़ा नहीं था कि कृपलानी जैसे प्रेम से विमुख नीरस शख्स के जीवन में भी प्रेम दस्तक दे सकता है और दबे पांव उनके मन के घर पर कब्जा कर सकता है। कृपलानी लंबे कद के सुदर्शन व्यक्तित्व के धनी थे तो सुचेता साधारण कद काठी वाली थीं, लेकिन कुछ तो था उनके व्यक्तित्व में जिसने कृपलानी जैसी शख्सियत को उनके प्यार में बांध लिया था। दोनों जब एक दूसरे के प्यार में पड़े तो उन्हें कभी उम्र का लंबा फासला अपने बीच महसूस नहीं हुआ, हां लेकिन जब उन्होंने आपस में शादी करने की इच्छा अपने परिवारों के सामने जाहिर की तो तूफान आ गया। अपने घरों में उन्हें गुस्से और विरोध का सामना करना पड़ा।

गाँधी विरोध…

सुचेता ने अपनी किताब ‘सुचेता एन अनफिनिश्ड ऑटोबॉयोग्राफी’ में लिखा, गांधीजी ने उनके विवाह का विरोध किया था, उन्हें लगता था कि पारिवारिक जिम्मेदारियां उन्हें आज़ादी की लड़ाई से विमुख कर देंगी। गांधी ने कृपलानी से कहा, अगर तुम उससे शादी करोगे तो मेरा दायां हाथ तोड़ दोगे। तब सुचेता ने उनसे कहा, वह ऐसा क्यों सोचते हैं बल्कि उन्हें तो ये सोचना चाहिए कि उन्हें आज़ादी की लड़ाई में एक की बजाए दो कार्यकर्ता मिल जाएंगे। कृपलानी इस बात से नाखुश तो बहुत थे कि गांधी उनके व्यक्तिगत मामलों में दखल दे रहे हैं लेकिन इसके बाद भी उन्होंने उनकी बात करीब-करीब मान ही ली, सुचेता भी इस पर सहमत हो गईं। लेकिन इसके बाद गांधीजी ने जो कुछ किया, उसने उनके आपस मे शादी करने के विचार को मजबूत कर दिया। सुचेता अपनी बॉयोग्राफी में लिखती हैं, गांधी चाहते थे कि वह किसी और से शादी कर लें। उन्होंने इसके लिए दबाव भी डाला। मैने इसे एकसिरे से खारिज कर दिया। मैने उनसे कहा, जो प्रस्ताव वह दे रहे हैं वो अन्यायपूर्ण भी है और अनैतिक भी। सुचेता जो खुशवंत सिंह के कहने पर इलैस्ट्रेटेड वीकली मैगजीन में अपनी आत्मकथा लिखने पर राजी हो गईं थीं। बाद में यही उनकी आत्मकथा के रूप में अहमदाबाद के नवजीवन पब्लिशिंग हाउस ने वर्ष १९७८ में प्रकाशित की। इसमें उन्होंने लिखा, जब गांधी ने मेरे सामने ऐसा प्रस्ताव रखा तो मैं उनकी ओर पलटी, उनसे कहा कि जो वो कह रहे हैं वह ग़लत है। गांधी के पास इसका कोई जवाब नहीं था। हमारी बात वहीं खत्म हो गई।नेहरू की सहानुभूति हमारे साथ थी। उन्होंने गांधी से हमारी शादी के बारे में बात की।

१९३६ में गांधी ने सुचेता और आचार्य कृपलानी को बुलावाया। गांधी ने उनसे कहा कि उन्हें उनकी शादी से कोई दिक्कत नहीं है लेकिन वह उन्हें आर्शीवाद नहीं दे सकेंगे। गांधी ने कहा कि वह उनके लिए प्रार्थना करेंगे। सुचेता ने अपनी किताब में लिखा, हम उनकी प्रार्थना भर से संतुष्ट थे। अप्रैल, १९३६ में सुचेता और आचार्य कृपलानी ने शादी कर ली। उस समय कृपलानी ४८ साल के थे तो सुचेता मात्र २८ साल की थीं।

विरोधी होकर भी साथ-साथ रहे
बाद में हालात ने ऐसी करवट ली कि दोनों विरोधी दलों में शामिल हो गए। रहते दोनों साथ थे लेकिन एक कांग्रेस में रहा तो दूसरा आजीवन कांग्रेस विरोध की राजनीति करता रहा। आचार्य कृपलानी अक्सर मजाक में कहा करते थे कि कांग्रेसी इतने बदमाश हैं कि वो मेरी पत्नी ही भगा ले गए। बेशक दोनों पति-पत्नी थे लेकिन उनमें दोस्ती का भाव ज्यादा था। सुचेता आज़ादी के आंदोलन में शामिल उन तीन बांग्ला महिलाओं में थीं, जो उच्च शिक्षित थीं और जिन्होंने पूरे जोर-शोर आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया और तीनों ने अपना कार्यक्षेत्र उत्तर प्रदेश को बनाया। तीनों ने धर्म जाति की परवाह नहीं करते हुए अपने जीवनसाथी चुने। आज़ादी के बाद बदले हालात में आचार्य कृपलानी ने जहां कांग्रेस से अलग होकर पहले अपनी किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाई और फिर राम मनोहर लोहिया के साथ प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। सुचेता ने १९५० में दिल्ली से लोकसभा चुनाव किसान मजदूर पार्टी से लड़ा। चुनाव जीता, लेकिन इसके बाद वह कांग्रेस में चली गईं और बाद में उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री भी बनीं। १९७१ में जब तक वह राजनीति में सक्रिय रहीं तब तक कांग्रेस में शामिल रहीं। वर्ष १९७१ में राजनीति से रिटायर होने के बाद वह आचार्य कृपलानी के साथ दिल्ली के अपने बंगले में रहने लगीं। एक पत्नी के नाते उन्होंने अपने पति का पूरा ख्याल रखा।

स्वतंत्रता आंदोलन में श्रीमती सुचेता कृपलानी के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। १ दिसंबर, १९७४ को उनका निधन हो गया। अपने शोक संदेश में श्रीमती इंदिरा गांधी ने कहा कि “सुचेता जी ऐसे दुर्लभ साहस और चरित्र की महिला थीं, जिनसे भारतीय महिलाओं को सम्मान मिलता है।”

अश्विनी रायhttp://shoot2pen.in
माताजी :- श्रीमती इंदु राय पिताजी :- श्री गिरिजा राय पता :- ग्राम - मांगोडेहरी, डाक- खीरी, जिला - बक्सर (बिहार) पिन - ८०२१२८ शिक्षा :- वाणिज्य स्नातक, एम.ए. संप्रत्ति :- किसान, लेखक पुस्तकें :- १. एकल प्रकाशित पुस्तक... बिहार - एक आईने की नजर से प्रकाशन के इंतजार में... ये उन दिनों की बात है, आर्यन, राम मंदिर, आपातकाल, जीवननामा - 12 खंड, दक्षिण भारत की यात्रा, महाभारत- वैज्ञानिक शोध, आदि। २. प्रकाशित साझा संग्रह... पेनिंग थॉट्स, अंजुली रंग भरी, ब्लौस्सौम ऑफ वर्ड्स, उजेस, हिन्दी साहित्य और राष्ट्रवाद, गंगा गीत माला (भोजपुरी), राम कथा के विविध आयाम, अलविदा कोरोना, एकाक्ष आदि। साथ ही पत्र पत्रिकाओं, ब्लॉग आदि में लिखना। सम्मान/पुरस्कार :- १. सितम्बर, २०१८ में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा विश्व भर के विद्वतजनों के साथ तीन दिनों तक चलने वाले साहित्योत्त्सव में सम्मान। २. २५ नवम्बर २०१८ को The Indian Awaz 100 inspiring authors of India की तरफ से सम्मानित। ३. २६ जनवरी, २०१९ को The Sprit Mania के द्वारा सम्मानित। ४. ०३ फरवरी, २०१९, Literoma Publishing Services की तरफ से हिन्दी के विकास के लिए सम्मानित। ५. १८ फरवरी २०१९, भोजपुरी विकास न्यास द्वारा सम्मानित। ६. ३१ मार्च, २०१९, स्वामी विवेकानन्द एक्सिलेन्सि अवार्ड (खेल एवं युवा मंत्रालय भारत सरकार), कोलकाता। ७. २३ नवंबर, २०१९ को अयोध्या शोध संस्थान, संस्कृति विभाग, अयोध्या, उत्तरप्रदेश एवं साहित्य संचय फाउंडेशन, दिल्ली के साझा आयोजन में सम्मानित। ८. The Spirit Mania द्वारा TSM POPULAR AUTHOR AWARD 2K19 के लिए सम्मानित। ९. २२ दिसंबर, २०१९ को बक्सर हिन्दी साहित्य सम्मेलन, बक्सर द्वारा सम्मानित। १०. अक्टूबर, २०२० में श्री नर्मदा प्रकाशन द्वारा काव्य शिरोमणि सम्मान। आदि। हिन्दी एवं भोजपुरी भाषा के प्रति समर्पित कार्यों के लिए छोटे बड़े विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सम्मानित। संस्थाओं से जुड़ाव :- १. जिला अर्थ मंत्री, बक्सर हिंदी साहित्य सम्मेलन, बक्सर बिहार। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना से सम्बद्ध। २. राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सह न्यासी, भोजपुरी विकास न्यास, बक्सर। ३. जिला कमिटी सदस्य, बक्सर। भोजपुरी साहित्य विकास मंच, कलकत्ता। ४. सदस्य, राष्ट्रवादी लेखक संघ ५. जिला महामंत्री, बक्सर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद। ६. सदस्य, राष्ट्रीय संचार माध्यम परिषद। ईमेल :- ashwinirai1980@gmail.com ब्लॉग :- shoot2pen.in

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