April 19, 2024

 

ये मिट्टी है, हाँ जी ये मिट्टी है।
इसकी खुशबू से खुद को जोड़िये।
चारो ओर ये बिखरी पड़ी है,
इसे एक नजर तो देखिए।

किसी ने भी, कभी भी,
इसके दर्द को ना समझा है।
यह धूल बनकर ना जाने,
कितनों को अपने में समाए उड़ता है।

लोग इसे जरूरत पर
कोड़ के ले जाते हैं
और गमलों में इसे
शौक से भरवाते हैं।

अपने कोमल भाव से
इसे दुनियां को सजाना है।
काम मिट्टी का तो
सबके काम आना है।

हां जी ये मिट्टी है,
एक दिन तो ये रंग लाती है।
दर्द की बात ना कही इसने क्यूंकि,
हर दर्द एक दिन इसमें समाती है।

अश्विनी राय ‘अरुण’

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