April 20, 2024

 

प्रिय स्वयं को
प्रिय के लिए संवारता है
उसकी प्रसन्नता खातिर
खुद को सिद्ध करता है

ये कैसा प्रयास है
ये कैसा एहसास है
प्रिय का प्रेम पर अधिकार है
यह दावा करता वो बार बार है

प्रिय प्रेम के रहस्य को
क्या समझ पाता है? या
अनंत रहस्य के गहरे सागर में
खुद को डूबा पाता है

वो स्वतंत्रत है
प्रिय को प्रेम देने को
लेकिन उसे अधिकार नहीं
प्रेम का एक बूंद पाने को

प्रेम एक उपहार है
सिर्फ दिया जा सकता है
और प्रतीक्षा कर सकता है
उसे स्वीकारे जाने को

अश्विनी राय ‘अरुण’

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