March 29, 2024

आज हम भारतीय राजनीति के एक ऐसे शख्स से आपको परिचित कराने जा रहे हैं जो गांधी जी के विचारों से कभी भी सहमत नहीं रहे। उनका मानना था कि गांधी जी का नरम रुख सिर्फ भारतीय जनता के बहकावे के लिए है जबकि सच्चाई में इसका लाभ हर बार अंग्रेजी सरकार को होता है। (उदाहरस्वरूप; आजादी से लेकर भारत पाक के बंटवारे तक गांधी जी के निर्णय को हम देख सकते हैं। हर बार भारतीय ठगे गए) यही कारण था कि जब महात्मा गाँधी जी ने ‘असहयोग आन्दोलन’ प्रारम्भ किया, तब वे सदा के लिए कांग्रेस से अलग हो गये। इतना ही नहीं राजनीति से अलग उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत योगदान दिया था।

संपूर्ण परिचय…

गोकरननाथ मिश्र जी का जन्म २० दिसम्बर, १८७१ को उत्तरप्रदेश के हरदोई जिला अंतर्गत एक सनातनी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। गोकरननाथ जी प्रारम्भ से ही प्रखर बुद्धि के प्रतिभाशाली छात्र थे। उन्होंने अपनी स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण कर इंग्लैंण्ड जाने को तत्पर हुए, कारण की उन्हें वहां अध्ययन करने के लिये नियमित छात्रवृत्ति मिलने वाली थी। परन्तु उनके दादा-दादी ने गोकरननाथ के विदेश जाने का बहुत विरोध किया, फलस्वरूप गोकरननाथ मिश्र आगे की उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंण्ड नहीं जा सके। और बाद में लखनऊ विश्वविद्यालय में उन्होंने प्रवेश ले लिया और यहाँ से एम.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर यहीं से ही क़ानून की डिग्री भी प्राप्त की।

व्यावसायिक जीवन…

लखनऊ विश्वविद्यालय से क़ानून की डिग्री प्राप्त करने के बाद गोकरननाथ मिश्र जी ने वकालत शुरू करने के साथ ही व्यावसायिक जीवन में कदम रखा। शीघ्र ही अपनी वकालत से उनकी प्रसिद्धि प्रदेश के प्रमुख वकीलों में होने लगी। जिसके कारण उनकी पहचान कांग्रेस के बड़े कद के नेताओं से होने लगी अतः उनके साथ अब वे कांग्रेस के कार्यों मे भी भाग लेने लगे।

वर्ष १८९८ की लखनऊ कांग्रेस में उन्होंने पहली बार भाग लिया। अब उनका सम्बन्ध गंगाप्रसाद वर्मा, मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू और विशन नारायण दर जैसे तत्कालीन कद्दावर नेताओं से हो गया। वर्ष १९२० तक वे नियमित रूप से कांग्रेस के अधिवेशनों में जाते रहे और लोकहित के प्रश्न उठाते रहे। इस बीच वे वर्ष १९१३ से वर्ष १९१५ तक वे उत्तरप्रदेश में कौंसिल के सदस्य भी रहे। गोकरननाथ मिश्र नरम राजनीतिक विचारों के नेता थे। मगर उनकी उदारता सिर्फ अपने देशवासियों के लिए था, वे गरीब, मजदूर, किसान आदि के प्रति सदा तत्तपर रहा करते थे। यही कारण था कि महात्मा गाँधी के ‘असहयोग आन्दोलन’ आरंभ करने पर उनका मनमुटाव हो गया और उन्होंने कांग्रेस को सदा के लिए अलविदा कह दिया।

उनके योगदान…

वर्ष १९२५ में उन्हें ‘अवध चीफ़ कोर्ट’ का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। गोकरननाथ मिश्र सदा किसानों और निर्बल वर्गों का पक्ष लेते थे अतः उनपर कितनी ही बार पछपात का आरोप लगा, मगर ना तो विरोधी और ना ही सरकार ही कोई आरोप सिद्ध कर पाई। उन्होंने समस्त विरोधों के बाद भी अपनी विधवा पुत्री का विवाह करके तत्कालीन रूढ़िवाद से जकड़े समाज के समक्ष एक उच्च उदाहरण प्रस्तुत किया था। शिक्षा के क्षेत्र में भी उन्होंने उल्लेखनीय योगदान दिया है, जिसका प्रमाण आज भी लखनऊ का महिला विद्यालय है।

इतना ही नहीं वे बोर्ड ऑफ़ इण्डिया मेडिसिन के अध्यक्ष भी रहे थे। उत्तरप्रदेश सरकार ने आयुर्वेद तथा यूनानी तिब्बती चिकित्सा पद्धतियों के विकास की व्यवस्था करने तथा उनके व्यवसाय को विनियमित करने, सुव्यवस्थित करने तथा संगठित करने हेतु वर्ष १९२५ में जस्टिस गोकरननाथ मिश्र की अध्यक्षता मे एक समिति गठित की थी, जिसकी संस्तुति के आधार पर वर्ष १९२६ में ‘बोर्ड ऑफ़ इण्डिया मेडिसिन’ की स्थापना कर भारतीय चिकित्सा प्रणालियों के विकास के लिए उपाय तथा साधन प्रस्तुत करने, वैद्यों तथा हकीमों का पंजीकरण करने, आयुर्वेद/यूनानी चिकित्सालयों तथा विद्यालयों को अनुदान देने, भारतीय चिकित्सा प्रणालियों के अध्ययन व अभ्यास के सम्बंध में नियंत्रण करने का कार्यभार सौपा गया।

निधन…

बोर्ड ऑफ़ इण्डिया मेडिसिन के प्रथम अध्यक्ष एवं ग़रीबों और निर्बलों के मददगार तथा राजनीति में प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके गोकरननाथ मिश्र जी जुलाई, १९२९ में अपने निधन से पूर्व तक आजीवन इस बोर्ड के अध्यक्ष बने रहे।

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