सरदार पूर्ण सिंह

देशभक्त, शिक्षाविद, अध्यापक, वैज्ञानिक, लेखक के साथ साथ आधुनिक पंजाबी काव्य के संस्थापकों में से एक सरदार पूर्ण सिंह का जन्म १७ फरवरी १८८१ को पश्चिम सीमाप्रांत (अब पाकिस्तान में) के हज़ारा ज़िले के मुख्य नगर एबटाबाद के समीप सलहद ग्राम के रहने वाले पिता सरदार करतार सिंह भागर के यहां हुआ था। इनके पिता सरकारी कर्मचारी थे। उनके पूर्वपुरुष ज़िला रावलपिंडी की कहूटा तहसील के ग्राम डेरा खालसा में रहते थे। रावलपिंडी ज़िले का यह भाग पोठोहार कहलाता है और अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिये आज भी प्रसिद्ध है। पूर्ण सिंह अपने माता-पिता के ज्येष्ठ पुत्र थे। क़ानूनगो होने से पिता को सरकारी कार्य से अपनी तहसील में प्राय: घूमते रहना पड़ता था, अत: बच्चों की देखरेख का कार्य प्राय: माता को ही करना पड़ता था।

शिक्षा…

पूर्ण सिंह की प्रारंभिक शिक्षा तहसील हवेलियाँ में हुई। यहाँ मस्जिद के मौलवी से उन्होंने उर्दू पढ़ी और सिक्ख धर्मशाला के भाई बेलासिंह से गुरुमुखी सीखी। रावलपिंडी के मिशन हाईस्कूल से वर्ष १८९७ में प्रवेश परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। वर्ष १८९९ में डी.ए.वी. कॉलेज, लाहौर; २८ सितम्बर, १९०० को वे टोक्यो विश्वविद्यालय, जापान के फैकल्टी ऑफ़ मेडिसिन में औषधि निर्माण संबंधी रसायन का अध्ययन करने के लिये “विशेष छात्र’ के रूप में प्रविष्ट हो गए और वहाँ उन्होंने पूरे तीन वर्ष तक अध्ययन किया।

स्वतंत्रता कथा…

वर्ष १९०१ में टोक्यो के ‘ओरिएंटल क्लब’ में भारत की स्वतंत्रता के लिये सहानुभूति प्राप्त करने के उद्देश्य से पूर्ण सिंह ने कई उग्र भाषण दिए तथा कुछ जापानी मित्रों के सहयोग से भारत-जापानी-क्लब की स्थापना की। टोक्यो में वे स्वामी जी के विचारों से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनका शिष्य बनकर उन्होंने संन्यास धारण कर लिया। वहाँ आवासकाल में लगभग डेढ़ वर्ष तक उन्होंने एक मासिक पत्रिका ‘थंडरिंग डॉन’ का संपादन किया। सितम्बर, १९०३ में भारत लौटने पर कलकत्ता में उस समय के ब्रिटिश शासन के विरुद्ध उत्तेजनात्मक भाषण देने के अपराध में वे बंदी बना लिए गए, किंतु बाद में मुक्त कर दिए गए।

जीवनी…

एबटाबाद में कुछ समय बिताने के बाद पूर्ण सिंह लाहौर चले गए। वहाँ उन्होंने विशेष प्रकार के तेलों का उत्पादन आरंभ किया, किंतु साझा निभ नहीं सका। तब वे अपनी धर्मपत्नी मायादेवी के साथ मसूरी चले गए और वहाँ से स्वामी रामतीर्थ से मिलने टिहरी गढ़वाल में वशिष्ठ आश्रम गए। वहाँ से लाहौर लौटने पर अगस्त, १९०४ में विक्टोरिया डायमंड जुबली हिंदू टेक्नीकल इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल बन गए और ‘थंडरिंग डॉन’ पुन: निकालने लगे। वर्ष १९०५ में कांगड़ा के भूकंप पीड़ितों के लिये धन संग्रह किया और इसी प्रसंग में प्रसिद्ध देशभक्त लाला हरदयाल और डॉक्टर खुदादाद से मित्रता हुई जो उत्तरोत्तर घनिष्ठता में परिवर्तित होती गई तथा जीवनपर्यंत स्थायी रही। स्वामी रामतीर्थ के साथ उनकी अंतिम भेंट जुलाई, १९०६ में हुई थी। वर्ष १९०७ के आरंभ में वे देहरादून की प्रसिद्ध संस्था वन अनुसंधानशाला में रसायन के प्रमुख परामर्शदाता नियुक्त किए गए। इस पद पर उन्होंने वर्ष १९१८ तक कार्य किया। यहाँ से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात, पटियाला, ग्वालियर, सरैया (पंजाब) आदि स्थानों पर थोड़े-थोड़े समय तक कार्य करते रहे।

द्विवेदी युग के अगुआ…

सरदार पूर्ण सिंह को अध्यापक पूर्ण सिंह के नाम से भी जाना जाता है। वे द्विवेदी युग के श्रेष्ठ निबन्धकारों में से एक हैं। मात्र ६ निबन्ध लिखकर निबन्ध-साहित्य में अपना नाम अमर कर लिया। आपके निबन्ध नैतिक और सामाजिक विषयों से सम्बद्ध हैं। आवेगपूर्ण, व्यक्तिव्यंजक लाक्षणिक शैली उनकी विशेषता है। विशेष प्रतिपादन की दृष्टि से उन्होंने भावुकता प्रधान शैली का विशेष प्रयोग किया है। सरदार पूर्ण सिंह के निबन्धों की विषय-वस्तु समाज, धर्म, विज्ञान, मनोविज्ञान तथा साहित्य रही है। “सच्ची वीरता” इस निबन्ध में उन्होंने सच्चे वीरों के लक्षण एवं विशेषताओं का भावात्मक एवं काव्यात्मक वर्णन किया है। “मजदूरी और प्रेम” में उन्होंने दोनों के सम्बन्धों का विचारात्मक एवं उद्धरण शैली में वर्णन किया है। “आचरण की सभ्यता” में देश, काल एवं जाति के लिए आचरण की सभ्यता का महत्त्व प्रतिपादित किया है। अपने जीवन मूल्यों को आचरण में उतारकर श्रेष्ठ बनना ही आचरण की सभ्यता है। प्राय: श्रमिक-से दिखने वाले लोगों में आचरण की सभ्यता होती है। उनके निबन्धों की भाषा उर्दू और संस्कृत मिश्रित भाषा है। उन्होंने कुछ सूक्तियों का प्रयोग भी निबन्धों में किया है। जैसे- “वीरों के बनाने के कारखाने नहीं होते।” आचरण का रेडियम तो अपनी श्रेष्ठता से चमकता है। उनकी शैली काव्यात्मक, भावात्मक, आलंकारिक है। कहीं-कहीं वाक्य बहुत लम्बे-लम्बे व जटिल हो गये हैं। तर्क एवं बुद्धिप्रधान निबन्ध उनकी शैलीगत विशेषता है।

कृतियांं…

पूर्ण सिंह ने अंग्रेज़ी, पंजाबी तथा हिंदी में अनेक ग्रंथों की रचना की, जो इस प्रकार हैं-

अंंग्रेज़ी…

‘दि स्टोरी ऑफ स्वामी राम’, ‘दि स्केचेज फ्राम सिक्ख हिस्ट्री’, हिज फीट’, ‘शार्ट स्टोरीज’, ‘सिस्टर्स ऑफ दि स्पीनिंग हवील’, ‘गुरु तेगबहादुर’ लाइफ’, प्रमुख हैं।

पंजाबी…

‘अवि चल जोत’, ‘खुले मैदान’, ‘खुले खुंड’, ‘मेरा सांई’, ‘कविदा दिल कविता’।

हिंदी…

‘सच्ची वीरता’, ‘कन्यादान’, ‘पवित्रता’, ‘आचरण की सभ्यता’, ‘मजदूरी और प्रेम’ तथा अमेरिका का मस्ताना योगी वाल्ट हिवट मैंन।

अन्य…

वीणाप्लेयर्स, गुरु गोविंदसिंह, दि लाइफ एंड टीचिंग्स ऑव श्री गुरु तेगबहादुर, ‘ऑन दि पाथ्स ऑव लाइफ, स्वामी रामतीर्थ महाराज की असली जिंदगी पर तैराना नजर इत्यादि

मृत्यु…

सरदार पूर्ण सिंह ने जीवन के अंतिम दिनों में ज़िला शेखूपुरा की तहसील ननकाना साहब के पास कृषि कार्य शुरू किया और खेती करने लगे। वे वर्ष १९२६ से १९३० तक वहीं रहे। नवंबर, १९३० में वे बीमार पड़े, जिससे उन्हें तपेदिक रोग हो गया और ३१ मार्च, १९३१ को देहरादून में सरदार पूर्ण सिंह का देहांत हो गया।

अश्विनी राय
अश्विनी रायhttp://shoot2pen.in
माताजी :- श्रीमती इंदु राय पिताजी :- श्री गिरिजा राय पता :- ग्राम - मांगोडेहरी, डाक- खीरी, जिला - बक्सर (बिहार) पिन - ८०२१२८ शिक्षा :- वाणिज्य स्नातक, एम.ए. संप्रत्ति :- किसान, लेखक पुस्तकें :- १. एकल प्रकाशित पुस्तक... बिहार - एक आईने की नजर से प्रकाशन के इंतजार में... ये उन दिनों की बात है, आर्यन, राम मंदिर, आपातकाल, जीवननामा - 12 खंड, दक्षिण भारत की यात्रा, महाभारत- वैज्ञानिक शोध, आदि। २. प्रकाशित साझा संग्रह... पेनिंग थॉट्स, अंजुली रंग भरी, ब्लौस्सौम ऑफ वर्ड्स, उजेस, हिन्दी साहित्य और राष्ट्रवाद, गंगा गीत माला (भोजपुरी), राम कथा के विविध आयाम, अलविदा कोरोना, एकाक्ष आदि। साथ ही पत्र पत्रिकाओं, ब्लॉग आदि में लिखना। सम्मान/पुरस्कार :- १. सितम्बर, २०१८ में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा विश्व भर के विद्वतजनों के साथ तीन दिनों तक चलने वाले साहित्योत्त्सव में सम्मान। २. २५ नवम्बर २०१८ को The Indian Awaz 100 inspiring authors of India की तरफ से सम्मानित। ३. २६ जनवरी, २०१९ को The Sprit Mania के द्वारा सम्मानित। ४. ०३ फरवरी, २०१९, Literoma Publishing Services की तरफ से हिन्दी के विकास के लिए सम्मानित। ५. १८ फरवरी २०१९, भोजपुरी विकास न्यास द्वारा सम्मानित। ६. ३१ मार्च, २०१९, स्वामी विवेकानन्द एक्सिलेन्सि अवार्ड (खेल एवं युवा मंत्रालय भारत सरकार), कोलकाता। ७. २३ नवंबर, २०१९ को अयोध्या शोध संस्थान, संस्कृति विभाग, अयोध्या, उत्तरप्रदेश एवं साहित्य संचय फाउंडेशन, दिल्ली के साझा आयोजन में सम्मानित। ८. The Spirit Mania द्वारा TSM POPULAR AUTHOR AWARD 2K19 के लिए सम्मानित। ९. २२ दिसंबर, २०१९ को बक्सर हिन्दी साहित्य सम्मेलन, बक्सर द्वारा सम्मानित। १०. अक्टूबर, २०२० में श्री नर्मदा प्रकाशन द्वारा काव्य शिरोमणि सम्मान। आदि। हिन्दी एवं भोजपुरी भाषा के प्रति समर्पित कार्यों के लिए छोटे बड़े विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सम्मानित। संस्थाओं से जुड़ाव :- १. जिला अर्थ मंत्री, बक्सर हिंदी साहित्य सम्मेलन, बक्सर बिहार। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना से सम्बद्ध। २. राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सह न्यासी, भोजपुरी विकास न्यास, बक्सर। ३. जिला कमिटी सदस्य, बक्सर। भोजपुरी साहित्य विकास मंच, कलकत्ता। ४. सदस्य, राष्ट्रवादी लेखक संघ ५. जिला महामंत्री, बक्सर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद। ६. सदस्य, राष्ट्रीय संचार माध्यम परिषद। ईमेल :- ashwinirai1980@gmail.com ब्लॉग :- shoot2pen.in

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