April 25, 2024

आउटलुक पत्रिका के संस्थापक एवं प्रथम मुख्य संपादक श्री विनोद मेहता का जन्म ३१ मई, १९४२ को रावलपिंडी में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। श्री मेहता तीन वर्ष के थे जब भारत विभाजन के बाद वह अपने परिवार के साथ भारत आए। उनका परिवार लखनऊ में बस गया जहां से उन्होंने स्कूली शिक्षा और फिर बीए की डिग्री हासिल की। बीए डिग्री के साथ उन्होंने घर छोड़ा और एक फैक्टरी में काम करने से लेकर कई नौकरियां की। साल १९७४ में उन्हें डेबोनियर का संपादन करने का मौका मिला। कई वर्ष बाद वह दिल्ली चले आए जहां उन्होंने ‘द पायनियर’ अखबार के दिल्ली संस्करण पेश किया। उन्होंने सुमिता पाल नामक एक पत्रकार से विवाह किया जिन्होंने उनके साथ पायनियर में काम किया था। मगर अफसोस की बात यह कि इस दम्पति को कोई संतान नहीं हुई।

अपनी पुस्तक ‘लखनऊ ब्यॉय’ में विनोद मेहता ने लिखा है कि उनके अपने जवानी के दिनों के प्रेम संबंध से एक बेटी है। उन्होंने बताया था कि अपनी आत्मकथा में जब तक उन्होंने यह बात नहीं लिखी थी तब तक उनकी बेटी के बारे में सिर्फ उनकी पत्नी को जानकारी थी। विनोद मेहता ने बताया था कि उन्होंने अपनी पत्नी को इस बारे में बताया और उसने मुझे किताब में इसका जिक्र करने के लिए प्रोत्साहित किया। विनोद मेहता ने मीना कुमारी और संजय गांधी की जीवनी लिखी और वर्ष २००१ में उनके लेखों का संकलन ‘मिस्टर एडिटर : हाउ क्लोज आर यू टू द पीएम’ प्रकाशित हुआ।

आउटलुक के संस्थापक…

आउटलुक के संस्थापक प्रधान संपादक के तौर पर विनोद मेहता ने भारतीय मैगजीन पत्रकारिता में रुख की ताजगी, मन का खुलापन और स्पर्श की सहजता भरकर उसे फिर ऊर्जावान कर दिया। ये बातें अब भी भारत के प्रमुख अंग्रेजी समाचार साप्ताहिक आउटलुक और उसकी सहयोगी पत्रिकाओं आउटलुक हिंदी, आउटलुक बिजनेस, आउटलुक मनी और आउटलुक ट्रेवलर को दिशा दे रहे हैं। उन्हें क्रिकेट, सुरुचिपूर्ण भोजन और गपशप बेहद पसंद थे। वे गपशप के इतने आदि थे कि उन्होंने आउटलुक के अंतिम पृष्ठ पर अपनी बहुपठित डायरियों के जरिये बड़ी दक्षता के साथ छापते थे। अतिशयोक्ति और भारी-भरकम शब्दों से विनोद मेहता को नफरत थी। महत्वपूर्ण को दिलचस्प बनाना उनकी पत्रिका का सिद्घांत था।

पत्रकारिता में योगदान…

विनोद मेहता मौजूदा दौर के सबसे प्रयोगधर्मी संपादक रहे। उन्होंने अपने पत्रकारीय करियर की शुरुआत प्लेब्वॉय के भारतीय संस्करण डेबोनियर के संपादक के तौर पर की। चलताऊ मैगजीन से शुरू हुआ उनका सफर हार्डकोर न्यूज़ की दुनिया के सबसे कद्दावर संपादक के रूप में पूरा हुआ। उन्होंने अपने इस सफर के दौरान भारत के सबसे पहले साप्ताहिक अखबार, द संडे आब्जर्वर को शुरू किया। इसके बाद इंडियन पोस्ट और इंडिपेंडेंट जैसे अखबारों को संभाला। पायनियर के दिल्ली संस्करण की शुरुआत की और इन सबके बाद करीब डेढ़ दशक तक आउटलुक समूह की दस पत्रिकाओं का संपादन किया जिसमें आउटलुक भी शामिल है जिसने भारतीय समाचार पत्रिकाओं में सबसे लोकप्रिय पत्रिका इंडिया टुडे को पीछे छोड़ दिया था। एक पत्रकार और संपादक के तौर पर विनोद मेहता का बायोडाटा बेहद कामयाब और चमकदार रहा। इतना ही नहीं उनके तमाम अखबार और पत्रिकाओं ने अपने लुक और कंटेंट से एक खास पहचान बनाई। इस कामयाबी के पीछे कैसे-कैसे संघर्ष और चुनौतियों का सामना विनोद मेहता को करना पड़ा, इसका सिलसिलेवार और बेहद दिलचस्प विवरण उन्होंने अपनी आत्मकथात्मक पुस्तक लखनऊ ब्वॉय ए मेमोयार में किया। चूंकि विनोद कई प्रतिष्ठानों में संपादक की हैसियत में रहे, लिहाजा उनकी किताब में स्कैंडल और गॉसिप भी कम नहीं हैं जिसका विस्तार उनकी दूसरी पुस्तक ‘एडिटर अनप्लगड’ में भी नज़र आया है।

आउटलुक की सफलता…

आउटलुक को अलग बनाने की उनकी जद्दोजेहद किसी को भी प्रेरित कर सकती है। मैच फिक्सिंग की खबर हो, या फिर अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के बीच टकराव की खबर हो या फिर राडिया टेप से जुड़े दस्तावेज को प्रकाशित करने का मामला, इन तमाम खबरों पर काम करने के दौरान किस तरह की चुनौतियां सामने थीं, इसको उन्होंने सहज अंदाज़ में बताया है। वाजपेयी सरकार ने जिस तरह से आउटलुक के प्रकाशकों को तंग किया, उस पर भी लेखक ने निशाना साधा है। पुस्तक का एक हिस्सा पत्रकारिता से जुड़े लोगों के लिए बेहद उपयोगी है जिसमें लेखक ने अपने अनुभव के आधार पर पत्रकारिता कर रहे लोगों को अपना काम बेहतर करने के रास्ते सुझाए हैं। चार दशकों के अपने संपादकत्व के अनुभव के आधार पर विनोद मेहता लिखते हैं कि आप जो भी काम करें, उसमें दक्षता हासिल कीजिए तो आपकी ज़रूरत हमेशा बनी रहेगी। जहां लखनऊ ब्वॉय में विनोद अपने करियर के बारे में विस्तार से बताते हैं, वहीं उनकी आत्मकथा का दूसरे हिस्सा एडिटर अनप्लगड में उन्होंने पत्रकारीय प्रबंधन और कारपोरेट के बारीक रिश्तों को उजागर किया है। उन्हें पत्रकारिता जगत में एक बोल्ड फिगर के रूप में जाना जाता था। वह न्यूज चैनलों में बतौर पैनलिस्ट बहुत बेबाकी से अपनी राय रखते थे।

जानकारी एवम प्रसंग…

विनोद मेहता ने वर्ष २०११ में आत्मकथा ‘लखनऊ ब्वॉय’ लिखी और वे टीवी पर चर्चा करने वालों में भी लोकप्रिय चेहरा थे। हाल ही में उन्होंने एक और पुस्तक ‘एडिटर अनप्लग्ड’ लिखी लेकिन दिसंबर में इसके लोकार्पण में हिस्सा नहीं ले सके। विनोद मेहता को कुत्तों से काफ़ी प्रेम था और उन्होंने एक गली के कुत्ते को गोद भी लिया था जिसका नाम एडिटर रखा था। इस कुत्ते का जिक्र आउटलुक में उनके लेख में अक्सर आया करता था। विनोद मेहता प्रतिष्ठित संपादक थे जिन्होंने सफलतापूर्वक संडे ऑब्जर्वर, इंडियन पोस्ट, द इंडिपेंडेंट, द पायनियर (दिल्ली संस्करण) और फिर आउटलुक की शुरुआत की।

निधन…

लम्बी बीमारी के कारण ७३ वर्ष की आयु में ८ मार्च, २०१५ को इनका निधन हो गया। वे कई महीने से बीमार थे और एम्स में भर्ती थे। वह फेफड़े के संक्रमण से पीड़ित थे और जीवन रक्षक यंत्र पर थे। तात्कालिक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विनोद मेहता के निधन पर शोक प्रकट किया। नरेन्द्र मोदी ने सोशल नेटवर्क वेबसाइट ट्विटर पर ट्वीट किया, ‘‘अपने विचार में स्पष्ट और बेबाक विनोद मेहता को एक शानदार पत्रकार और लेखक के रूप में जाना जायेगा। उनके निधन पर उनके परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करता हूं।’’

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