March 29, 2024

दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु |
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||

ब्रह्मचारिणी माँ की नवरात्र पर्व के दूसरे दिन पूजा-अर्चना की जाती है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है।

साधना फल…

माँ दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।

माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।

इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।

उपासना…

प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है।

शक्ति…

इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं। जिससे उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें।

कथा…

मां ब्रह्मचारिणी ने पर्वत राज हिमालय के घर जन्म लिया था। देवऋषि नारद जी की सलाह पर उन्होंने कठोर तप किया ताकि वह भगवान शिव को पति स्वरूप में प्राप्त कर सकें। कठोर तप की वजह से उनका नाम ब्रह्मचारिणी या तपश्चारिणी पड़ा। भगवान शिव की आराधना के दौरान उन्होंने हजार सालों तक केवल फल-फूल खाएं तत्पश्चात् सैकड़ों वर्षों तक साग खाकर जीवित रहीं। उसके बाद उन्होंने यह खाना भी छोड़ दिया। कठोर तप से उनका शरीर कमजोर हो गया। मां ब्रह्मचारिणी का तप देखकर सभी देवता, ऋषि-मुनि अत्यंत प्रभावित हुए और उन्होंने वरदान दिया कि देवी आपके जैसा कोई नहीं कर सकता है। आपकी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होंगी और भगवान शिव आपको पति स्वरूप में प्राप्त होंगे और कालांतर में ऐसा ही हुआ।

तृतीय दुर्गा चंद्रघंटा

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