April 19, 2024

भाई दूज अथवा भैया दूज पर्व को कहीं कहीं भाई टीका भी कहा जाता है। पुराणों आदि में इसे यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया आदि नामों का उल्लेख है। यह त्योहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। यह त्यौहार, दीपावली के सभी पांच त्यौहारों में सबसे अंतिम में आता है, यानी धनतेरस, रूप चौदस, दीपावली, गोवर्धन पूजा तथा अंतिम में भाई बहनों का त्योहार भाई दूज। आओ जानते हैं कि भाई दूज क्यूं मनाया जाता है?

पौराणिक कथा…

सूर्य देव की दो पत्‍नियां संज्ञा और छाया हैं। संज्ञा सूर्य देव का तेज ना सह पाने के कारण अपनी छाया को उनकी पत्‍नी के रूप में स्‍थापित करके तप करने चली गई थीं। संज्ञा से सूर्य देव को दो संतानें थीं, पुत्र यमराज तथा पुत्री यमुना। संज्ञा तप जाते समय छाया के जिम्मे अपने पुत्र-पुत्री को सौंप गईं। छाया को यम और यमुना से कोई खास लगाव नहीं था, परंतु यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह रखती थीं। यमुना अपने भाई यमराज के यहाँ प्राय: जाती और उनके सुख-दुःख की बातें पूछा करती। तथा यमराज को अपने घर पर आने के लिए भी आमंत्रित करतीं, परंतु व्यस्तता तथा अत्यधिक दायित्व के कारण वे उसके घर न जा पाते थे।

एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के घर अचानक जा पहुँचे। बहन के घर जाते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। बहन यमुना ने अपने सहोदर भाई का बड़ा आदर-सत्कार किया। विविध व्यंजन बनाकर उन्हें भोजन कराया तथा भाल पर तिलक लगाया। जब वे वहाँ से चलने लगे, तब उन्होंने यमुना से कोई भी मनोवांछित वर मांगने का अनुरोध किया। यमुना ने उनके आग्रह को देखकर कहा: भैया! यदि आप मुझे वर देना ही चाहते हैं तो यही वर दीजिए कि आज के दिन प्रतिवर्ष आप मेरे यहाँ आया करेंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार किया करेंगे। इसी प्रकार जो भाई अपनी बहन के घर जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाये, उसे आपका भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहा, इसी के साथ उन्होंने यह भी वरदान दिया कि यदि इस दिन भाई-बहन यमुना नदी में डुबकी लगाएंगे तो वे यमराज के प्रकोप से बचे रहेंगे।

तभी से बहन-भाई का यह त्यौहार मनाया जाने लगा। भैया दूज त्यौहार का मुख्य उद्देश्य, भाई-बहन के मध्य सद्भावना, तथा एक-दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रोत्साहित करना है। भैया दूज के दिन ही पांच दीनो तक चलने वाले दीपावली उत्सव का समापन भी हो जाता है।

भाई दूज एवं रक्षाबंधन के मध्य समानता व अंतर…

भाई दूज एवं रक्षाबंधन दोनो ही भाई व बहन के बीच मनाया जाने वाले पर्व है। दोनों में पूजा करने के नियम भी लगभग समान ही हैं। रक्षाबंधन में बहने अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बँधती हैं जबकि भाई दूज के दिन माथे पर तिलक लगातीं हैं। भाई दूज पर मुख्यतया भाई अपनी विवाहित बहनों के घर जाकर तिलक लगवाते हैं। जबकि रक्षाबंधन के दिन बहने अपने भाई के घर आकर राखी/रक्षासूत्र बांधती हैं।

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