April 24, 2024

वायु प्रदूषण के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”दिल्ली के फ़ाइव और सेवेन स्टार में बैठे लोग आलोचना कर रहे हैं कि किसान प्रदूषण फैला रहे हैं। क्या हम इसे नज़रअंदाज़ कर दें कि प्रतिबंध के बावजूद पटाख़े फोड़े गए थे?” अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रदूषण के कारण क्या सच में किसान हैं अथवा पटाखे या कोई और कारण हैं?

प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना ही प्रदूषण है। जैसे; वायु में अशुद्धता, शुद्ध जल का ना मिलना, अशुद्ध खाद्य पदार्थ और साथ ही साथ अशांत वातावरण। ये मुख्य कारक हैं, प्रकृति को उथल पुथल करने वाले। जिन्हें हम वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण आदि विभिन्न नामों से संबोधित करते हैं। अब हम सिलसिलेवार ढंग से इन पर प्रकाश डालते हैं…

वायु-प्रदूषण : महानगर वाले इस प्रदूषण के लिए किसान द्वारा पराली के जलाने से फैले धूवें को ठहराते हैं। सुप्रीम कोर्ट इस प्रदूषण के लिए दिवाली आदि पर जलाए गए पटाखे को दोषी मानता है। यानी किस्सा खत्म। जबकि सच्चाई कुछ और ही है, किसान की पराली और दिवाली के पटाखे बस मुख्य विषय से भटकाने के साधन मात्र हैं। पराली साल में एक या दो बार जलाए जाते हैं, दिवाली भी साल में बस एक बार ही आती है। जबकि महानगरों में चौबीसों घंटे कल-कारखानों का धुआं निकलता है, जो किसी ना किसी बड़े औद्योगिक घराने का है। इसके बाद आता है मोटर-वाहनों का काला धुआं, जो वायुमंडल में इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु मिलना ही मुश्किल हो गया है। क्या महानगरों में किसान प्रतिदिन मोटर चलाते हैं? मोटर वाहन बनाने वाली कंपनियों और उन्हें चलाने वाले संभ्रांत घरानों से ताल्लुक रखते हैं, जो एसी घरों में रहते हैं।

अब जब बात एसी की चल ही रही है तो, हम यह भी बताते चलें कि एसी में कूलिंग करने के लिए CFCs और HCFCs गैसों का इस्तेमाल किया जाता है, जो धीरे धीरे वातावरण में लीक होकर ओजोन मंडल में पहुंच जाता है। और फिर वह ओजोन परत को क्षति पहुंचाता है। बाकी तो आप स्वयं समझ सकते हैं कि जिससे वो सूर्य से आई पराबैंगनी किरणों को सोखने मे नाकाम हो जाती है। और फिर हजारों रोग। लेकिन फिर भी किसी कोर्ट ने, किसी सरकार ने अथवा किसी महानगरीय ने इस पर रोक लगाने के लिए नहीं बोला। जबकी यही वो लोग हैं जो प्रतिदिन घरों में, दफ्तरों में और यहां तक कि गाड़ियों में भी एसी चलाते हैं। उन्हें क्या यह नहीं पता कि एसी से रिलीज हुई गरमी से वातावरण में ग्लोबल वार्मिंग बढ रही है, जो जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है। दूसरी तरफ एसी को चलाने के लिये भारी बिजली का इस्तेमाल होता है। इसके साथ ही एसी के उपयोग से हुईं ओजोन क्षति से कैंसर जैसी बिना इलाज की बीमारी हो सकती है।

आज महानगरों में सांस लेना बेहद दूभर हो गया है। जब महिलाएं वहां धोए हुए वस्त्र छत से उतारने जाती हैं, तो उन पर काले-काले कण जमे हुए पाती हैं। यही कण सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में चले जाते हैं और असाध्य रोगों को जन्म देते हैं। यह समस्या वहां अधिक होती हैं, जहां सघन आबादी है। महानगर में वृक्षों का बेहद अभाव है, जिसकी वजह से वातावरण तंग होता जा रहा है।

जल-प्रदूषण : औद्योगिक संस्थानों द्वारा अनगिनत कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा कर रहा है, जिसे लगातार अनदेखा किया जा रहा है। ये रासायनिक और दुर्गंधित जल नदियों के बाद अब धीरे धीरे से भूजल को भी अपनी चपेट में ले चुके हैं।

ध्वनि-प्रदूषण : मनुष्य को रहने के लिए शांत माहौल चाहिए। गावों में आज भी शांति है, क्योंकि खेती होती है नाकि महानगरों की भांति कल-कारखानों का वहां शोर है, ना तो वहां नगरों की तरह यातायात का शोर है और ना तो प्रतिदिन लाउडस्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ही गूंजती है।

इस तरह नगरों ने लगातार पैसे की अंधी दौड़ में पर्यावरण की हत्या की है। प्रदूषण को बढ़ाने में कल-कारखानो के अलावा वैज्ञानिक साधनों का अत्यधिक प्रयोग जैसे; फ्रिज·एसी या ऊर्जा के अन्य संयंत्र आदि दोषी हैं। इतना ही नहीं प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ने में वृक्षों की अंधा-धुंध कटाई भी है। उपर्युक्त प्रदूषणों के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा हो गया है। खुली हवा में लम्बी सांस लेने तक को तरस गया है आदमी। गंदे जल के कारण कई बीमारियां फसलों में चली जाती हैं जो मनुष्य के शरीर में पहुंचकर घातक बीमारियां पैदा करती हैं। भोपाल गैस कारखाने से रिसी गैस के कारण हजारों लोग मर गए, कितने ही अपंग हो गए। पर्यावरण-प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा आती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक से चल रहा है। सुखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रदूषण है।

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