April 25, 2024

वर्ष १९९८ में टाटा की एक कार लॉन्च हुई थी, इंडिका। पूरे एक वर्ष बीत जाने के बाद भी यह हैचबैक कार टाटा के लिए कोई खास फायदेमंद साबित नहीं हुई थी। इसलिए रतन टाटा इससे पिंड छुड़ाना चाहते थे। इसके लिए वे अमेरिकी कंपनी फोर्ड के पास गए। फोर्ड को टाटा का यह कार वेंचर खरीदना फायदेमंद लगा और मीटिंग्स का दौर शुरू हुआ। पहली मीटिंग मुंबई में हुई और दूसरी अमेरिका में फोर्ड के हेडक्वॉर्टर डेट्रॉयट में। शुरुआत में तो सब ठीक था, लेकिन डेट्रॉयट में फोर्ड के अधिकारियों का व्यवहार अशोभनीय था। एक तरफ तो उन्हें यह सौदा करना था परंतु उन्होंने यह जताया कि टाटा का कार वेंचर खरीदकर वे टाटा पर अहसान करने जा रहे हैं। इतना ही नहीं, फोर्ड के एक अधिकारी ने यहां तक कहा कि, ‘जब आपको पैसेंजर कार के बारे में कुछ पता ही नहीं है, तो आपने इस बिजनेस में कदम ही क्यों रखा? आपके कार बिजनेस को खरीदकर हम आप पर अहसान ही करेंगे।’ इतनी बड़ी बात सुनकर डेट्रॉयट से लौटते हुए रतन टाटा बेहद उदास थे। जाहिर सी बात है, यह दिल पर लगने वाली बात थी। रतन टाटा ने डील कैंसल कर दिया। बात आई गई खत्म हो गई, मगर क्या सच में खत्म हो गई थी? नहीं!

नौ वर्ष बाद वो दिन वापस आया, मगर उलटी दिशा से। जब रतन टाटा ने अपने अपमान का बदला लिया। वर्ष २००८ में फोर्ड दीवालिया होने की कगार पर पहुंच गई थी। अमेरिकी कार सेक्टर में उसकी हालत खराब थी। तब टाटा ग्रुप ने फोर्ड के सबसे बड़े ब्रांड्स में से एक जैगुआर और लैंडरोवर को खरीदने का फैसला किया। इस डील के बाद स्वयं बिल फोर्ड ने रतन टाटा से कहा था, ‘JLR खरीदकर आप हम पर अहसान कर रहे हैं।’ ऐसी अनेकों कहानियां हैं देश के इस रतन की। आईए आज हम सिलसिलेवार ढंग से उन्हें जाने…

परिचय…

रतन टाटा का जन्म २८ दिसंबर, १९३७ को मुंबई(बंबई) में हुआ था। कैपियन स्कूल से शुरूआती पढ़ाई करने के बाद रतन टाटा ने लंदन के कार्निल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर एंड स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की डिग्री ली और फिर हार्वड विश्वविद्यालय से एडवांस मैनेजमेंट प्रोग्राम कोर्स किया। जिसकी वजह से उन्हें प्रतिष्ठित कंपनी आईबीएम से नौकरी का बढ़िया प्रस्ताव मिला, लेकिन रतन टाटा ने उस प्रस्ताव को ठुकराकर अपने पुश्तैनी व्यवसाय को आगे बढ़ाना ही उचित समझा।

शादी ना होने की कहानी…

रतन टाटा ने शादी नहीं की, क्यों जिंदगी भर काम ही करते रहे? वैसे तो उन्हें अपनी लव-लाइफ के बारे में बात करना अच्छा नहीं लगता, लेकिन एकाध मौकों पर उन्होंने अपनी जिंदगी का ये पहलू साझा किया है। CNN इंटरनेशनल को दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि अमेरिका में पढ़ाई के दौरान उन्हें एक लड़की से प्यार हुआ था। दोनों अपने रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते थे और दोनों शादी के लिए तैयार भी थे, परंतु वह लड़की भारत नहीं आना चाहती थी। कारण यह नहीं था की उसे भारत से कोई परेशानी थी। कारण यह था कि उसी दौरान भारत और चीन के मध्य जंग छिड़ गई। जिससे रतन टाटा की प्रेमिका बहुत डर गई थीं। इधर भारत में रतन टाटा की दादी की तबीयत काफी खराब हो गई थी, जिसकी वजह से उन्हें भारत लौट कर आना पड़ा। रतन टाटा भारत आ गए, लेकिन उनकी प्रेमिका नहीं आईं। कुछ दिनों बाद उन्होंने अमेरिका में ही किसी और से शादी कर ली। उसी इंटरव्यू में रतन टाटा ने यह भी कबूल किया कि उसके बाद चार बार उनकी शादी होते-होते रह गई।

कार्यक्षेत्र…

१. वर्ष १९७१ में रतन टाटा को राष्ट्रीय रेडियो और इलेक्ट्रॉनिक्स कम्पनी लिमिटेड (नेल्को) का डाईरेक्टर-इन-चार्ज नियुक्त किया गया। उस समय यह कम्पनी सख्त वित्तीय कठिनाई की स्थिति से गुजर रही थी। रतन टाटा ने सुझाव दिया कि कम्पनी को उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स के बजाय उच्च-प्रौद्योगिकी उत्पादों के विकास में निवेश करना चाहिए। जेआरडी टाटा नेल्को के ऐतिहासिक वित्तीय प्रदर्शन की वजह से अनिच्छुक थे, क्योंकि इसने पहले कभी नियमित रूप से लाभांश का भुगतान नहीं किया था। इसके अलावा, जब रतन ने कार्य भार सम्भाला, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स नेल्को की बाज़ार में हिस्सेदारी मात्र २% थी और बिक्री घाटा ४०% था। फिर भी, जेआरडी टाटा ने रतन के सुझाव को माना। वर्ष १९७२ से १९७५ तक, नेल्को ने अपनी बाज़ार में हिस्सेदारी २०% तक बढ़ा ली और अपना घाटा भी पूरा कर लिया। लेकिन १९७५ में, भारत की तत्कालिन प्रधानमन्त्री इन्दिरा जी ने आपातस्थिति घोषित कर दी, जिसकी वजह से देश में आर्थिक मन्दी आ गई। इसके बाद वर्ष १९७७ में यूनियन की समस्यायें आगे आ गई, इसलिए माँग के बढ़ जाने पर भी उत्पादन में सुधार नहीं हो पाया। अन्ततः, टाटा ने यूनियन की हड़ताल का सामना किया, सात माह के लिए तालाबन्दी कर दी गई। जबकि रतन टाटा ने हमेशा नेल्को की मौलिक दृढ़ता में विश्वास रखा, लेकिन उद्यम आगे और न रह सका।

२. वर्ष १९७७ में रतन टाटा के जिम्मे Empress Mills सोंपा गया, यह टाटा नियन्त्रित कपड़ा मिल थी। जब उन्होंने कम्पनी का कार्य भार सम्भाला, यह टाटा समुह की सबसे बीमार इकाइयों में से एक थी। रतन ने इसे सम्भाला और यहाँ तक की एक लाभांश की घोषणा तक कर दी। चूँकि कम श्रम गहन उद्यमों की प्रतियोगिता ने इम्प्रेस जैसी कई उन कम्पनियों को अलाभकारी बना दिया, जिनकी श्रमिक संख्या बहुत ज्यादा थी और जिन्होंने आधुनिकीकरण पर बहुत कम खर्च किया था रतन के आग्रह पर, कुछ निवेश किया गया, लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। चूँकि मोटे और मध्यम सूती कपड़े के लिए बाजार प्रतिकूल था (जो कि एम्प्रेस का कुल उत्पादन था), एम्प्रेस को भारी नुकसान होने लगा। बॉम्बे हाउस, टाटा मुख्यालय, अन्य ग्रुप कंपनिओं से फंड को हटाकर ऐसे उपक्रम में लगाने का इच्छुक नहीं था, जिसे लम्बे समय तक देखभाल की आवश्यकता हो। इसलिए, कुछ टाटा निर्देशकों, मुख्यतः नानी पालकीवाला ने ये फैसला लिया कि टाटा को मिल समाप्त कर देनी चाहिए, जिसे अन्त में वर्ष १९८६ में बन्द कर दिया गया। रतन इस फैसले से बेहद निराश थे और बाद में हिन्दुस्तान टाईम्स के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने दावा किया कि एम्प्रेस को मिल जारी रखने के लिए सिर्फ ५० लाख रुपये की जरुरत थी।

३. वर्ष १९८१ में, रतन टाटा को इंडस्ट्रीज़ और समूह की अन्य होल्डिंग कम्पनियों के अध्यक्ष बनाया गया।

४. वर्ष १९९१ में उन्होंने जेआरडी टाटा से ग्रुप चेयरमेन का कार्य भार सम्भाला। टाटा ने पुराने गार्डों को बहार निकाल दिया और युवा प्रबन्धकों को जिम्मेदारियाँ दी गयीं। तब से लेकर आज तक उन्होंने टाटा ग्रुप के आकार को ही बदल दिया है। आज भारतीय शेयर बाजार में किसी भी अन्य व्यापारिक उद्यम से अधिक टाटा की बाजार पूँजी है।

५. रतन टाटा के मार्गदर्शन में, टाटा कंसलटेंसी सर्विसेस सार्वजनिक निगम बनी और टाटा मोटर्स न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हुई। वर्ष १९९८ में टाटा मोटर्स ने उनके संकल्पित टाटा इंडिका को बाजार में उतारा।

६. ३१ जनवरी २००७ को, रतन टाटा की अध्यक्षता में, टाटा संस ने कोरस समूह को सफलतापूर्वक अधिग्रहित किया, जो एक एंग्लो-डच एल्यूमीनियम और इस्पात निर्माता है। इस अधिग्रहण के साथ रतन टाटा भारतीय व्यापार जगत में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बन गये। इस विलय के बाद टाटा स्टील दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इस्पात उत्पादक संस्थान बन गई।

७. रतन टाटा का सपना था कि एक लाख रुपए की लागत की कार बनायी जाए। नई दिल्ली में ऑटो एक्सपो अंतर्गत १० जनवरी, २००८ को इस कार का उदघाटन कर के उन्होंने अपने सपने को पूर्ण किया। टाटा नैनो के तीन मॉडलों की घोषणा की गई और रतन टाटा ने सिर्फ एक लाख रूपये की कीमत की कार बाजार को देने का वादा पूरा किया, साथ ही इस कीमत पर कार उपल्बध कराने के अपने वादे का हवाला देते हुये कहा “वादा एक वादा है”

८. २६ मार्च, २००८ को रतन टाटा के अधीन टाटा मोटर्स ने फोर्ड मोटर कम्पनी से जगुआर और लैण्ड रोवर को खरीद लिया। ब्रिटिश विलासिता की प्रतीक, जगुआर और लैंड रोवर १.१५ अरब पाउण्ड (२.३ अरब डॉलर) में खरीदी गई।

सेवा निवृत्त…

रतन टाटा २८ दिसम्बर २०१२ को टाटा उद्योग समूह के चेयरमैन पद से ७५ वर्ष की उम्र में सेवा निवृत्त हुए। इस अवसर पर रतन टाटा अपनी उपलब्धियों के लिए मीडिया में काफ़ी छाये रहे। हर व्यक्ति के सामने अलग-अलग परिस्थितियाँ होती हैं और हर क्षेत्र में उनकी प्रतिभायें भी समान नहीं होती हैं। उन परिस्थितियों और अपनी प्रतिभाओं के अनुसार अपने लिए वह अवसर एवं चुनौतियों को चिन्हित करता है। चुनौतियों से वह जूझता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति की समस्या के निदान का रास्ता अलग होता है। आवश्यक नहीं कि जिस रास्ते पर चलकर किसी सफल व्यक्ति ने समस्याओं का हल निकाला हो, उसी पर चलकर दूसरे व्यक्ति की समस्या भी हल हो जाए। इसलिए प्रत्येक प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने ढंग से सोचता है और अपने लिए रास्ता बनाता है। अपनी समस्याओं को हल करते समय दूसरे सफल लोगों से इस बात की प्रेरणा तो लेनी चाहिए कि जब अमुक व्यक्ति सफल हो सकता है तो मै क्यों नहीं हो सकता हूँ। लेकिन आँखें बंद करके किसी की नकल करने से सफलता हासिल नहीं होती। सफल लोगों के नुस्खों को तो ध्यान में रखना चाहिए पर उन रास्तों को नहीं जिन पर चलकर उन्हें सफलता प्राप्त हुई। अपनी समस्या को अपने ही ढंग से निपटाने की कोशिश करने से दिमाग़ तेज़ी से चलता है और समस्या या चुनौती बोझ नहीं लगती है। तनाव पैदा नहीं होता है बल्कि समस्या सुलझाने में आनंद आता है और वह नये-नये इतिहास रचता है। यदि रतन टाटा नकल करते तो वे अपने टाटा उद्योग समूह को इतनी बड़ी विश्वव्यापी तरक़्क़ी नहीं दिला पाते। उन्होंने अपने २१ वर्ष के कार्यकाल में टाटा उद्योग समूह को बहुत आगे बढ़ाया जो अपने आप में मिसाल है। अतः मिसाल कायम करने के लिए अपना रास्ता स्वयं बनाना होता है। रतन टाटा ने अपने उत्तराधिकारी साइरस मिस्त्री को सलाह दी कि वह रतन टाटा बनने की अपेक्षा अपने मौलिक गुणों एवं प्रतिभाओं के अनुसार काम करें, तो वह रतन टाटा से भी आगे जा सकते हैं। यानि साइरस मिस्त्री, साइरस मिस्त्री बनकर ही रतन टाटा की कामयाबियों से भी आगे जा सकते हैं। यदि साइरस मिस्त्री रतन टाटा बनने की कोशिश करेंगे तो वह न रतन टाटा बन पाएंगे और न ही साइरस मिस्त्री रहेंगे।

सम्मान और पुरस्कार…

१. भारत के ५०वें गणतंत्र दिवस समारोह २६ जनवरी २००० पर रतन टाटा को तीसरे नागरिक अलंकरण पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
२. उन्हें २६ जनवरी २००८ को भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक अलंकरण पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
३. वे नैसकॉम ग्लोबल लीडरशिप (NASSCOM Global Leadership) पुरस्कार २००८ प्राप्त करने वालों में से एक थे। ये पुरस्कार उन्हें १४ फ़रवरी २००८ को मुम्बई में एक समारोह में दिया गया।
४. मार्च २००६ में टाटा को कॉर्नेल विश्वविद्यालय द्वारा २६वें रॉबर्ट एस सम्मान से सम्मानित किया गया। आर्थिक शिक्षा में हैटफील्ड रत्न सदस्य, वह सर्वोच्च सम्मान जो विश्वविद्यालय कंपनी क्षेत्र में प्रतिष्ठित व्यक्तियों को प्रदान करती है।
५. फरवरी २००४ में, रतन टाटा को चीन के झोज्यांग प्रान्त में हांग्जो (Hangzhou) शहर में मानद आर्थिक सलाहकार की उपाधि से सम्मानित किया गया।
उन्हें लन्दन स्कूल ऑफ़ इकॉनॉमिक्स (London School of Economics) से मानद डॉक्टरेट की उपाधि हासिल हुई, और नवम्बर २००७ में फॉर्च्यून पत्रिका ने उन्हें व्यापार क्षेत्र के २५ सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया।
६. मई २००८ में टाटा को टाइम पत्रिका की विश्व के १०० सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया गया।

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