April 23, 2024

आज पूरे विश्व में विद्वत समाज में से ऐसा कौन होगा जो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को नहीं जानता होगा। इस विश्वविद्यालय ने देश और विदेश को अनगिनत प्रतिभाएं दी हैं। बड़े बड़े साहित्यकार, वैज्ञानिक, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और भी न जाने कितने क्षेत्रों में कितनी प्रतिभाएं। परन्तु, एक ऐसी बात है, जो ना जाने क्यों पिछले सौ सालों से छुपाया जा रहा है अथवा उसे तरजीह नहीं दिया जा रहा।

इसके लिए हमें श्री तेजकर झा द्वारा लिखित पुस्तक “द इन्सेप्शन ऑफ़ बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी: हू वाज द फाउण्डर इन द लाईट ऑफ़ हिस्टोरिकल डाकुमेंट्स” ​पर एक नजर डालते हैं। तेजकर झा ने अपनी इस पुस्तक के माध्यम से जो साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं, उसके अनुसार महाराजा दरभंगा ने अपने जीवनकाल में भारतीय शैक्षणिक जगत में आमूल परिवर्तन लाने के लिए अथक प्रयास किये और दान दिए, जिनमें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, कलकत्ता विश्वविद्यालय, बम्बई विश्वविद्यालय, मद्रास विश्वविद्यालय तथा अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय आदि खास हैं। ​इस पुस्तक में लेखक ने दावा किया है कि बेशक बीएचयू की स्थापना और उसके बाद उसके विकास में मालवीय जी से जुड़े अनेकानेक प्रसंग हैं, जो यह साबित करते हैं कि महामना की इच्छाशक्ति, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और संघर्ष के बीच सृजन के बीज बोने की लालसा ने बीएचयू को उस मुकाम की ओर बढ़ाया, जिसकी वजह से आज यह दुनिया के प्रतिष्ठित संस्थानों में शामिल है, लेकिन इसके प्रतिष्ठान के बनने के पीछे मालवीय जी के अलावा कुछ ऐसी सक्सियतो के नाम दफन हैं, जिन्हें जानना हम सभी को बेहद जरूरी है। महामना के अलावा दो प्रमुख नामों में एक एनी बेसेंट का है और दूसरा अहम नाम दरभंगा के नरेश रामेश्वर सिंह का है। यहां यह महत्वपूर्ण है कि बीएचयू के लिए पहला दान भी इन्होंने ही दिया था। महाराजा रामेश्वर सिंह ने बीएचयू के लिये सबसे पहले पांच लाख रुपए का दान दिया। उसके बाद ही दान का सिलसिला शुरू हुआ था।​ बीएचयू की नींव ४ फरवरी, १९१६ को रखी गयी थी, उसी दिन से सेंट्रल हिंदू कॉलेज मेंं पढ़ाई भी शुरू हो गयी थी। नींव रखने लॉर्ड हार्डिंग्स बनारस आये थे। इस समारोह की अध्यक्षता भी दरभंगा के महाराज रामेश्वर सिंह जी ने ही की थी।

परिचय…

महाराजा रामेश्वर सिंह ठाकुर जी का जन्म महाराजा महेश्वर सिंह जी के छोटे पुत्र के रुप में १६ जनवरी १८६० को बिहार के दरभंगा में हुआ था। वे अपने बड़े भ्राता एवं पूर्ववर्ती महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह जी के मृत्यु के बाद वर्ष १८९८ से जीवनपर्यन्त महाराजा रहे थे। महाराजा बनने से पूर्व वे वर्ष १९७८ में भारतीय सिविल सेवा में भर्ती हुए थे और क्रमशः दरभंगा, छपरा तथा भागलपुर में सहायक मजिस्ट्रेट के पद पर रहे। इतना ही नहीं अपनी काबिलियत के बल पर लेफ्टिनेन्ट गवर्नर की कार्यकारी परिषद में नियुक्त होने वाले वे पहले भारतीय भी थे।

पद…

महाराजा वर्ष १८९९ में भारत के गवर्नर जनरल की भारत परिषद के सदस्य थे और २१ सितंबर १९०४ को एक गैर-सरकारी सदस्य नियुक्त किये गए थें जो बंबई प्रांत के गोपाल कृष्ण गोखले के साथ बंगाल प्रांतों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। इसके साथ ही वे अन्य कई पदों पर आसीन थे, जिनमें से कुछ निम्न हैं :

१. बिहार लैंडहोल्डर एसोसिएशन के अध्यक्ष
२. ऑल इंडिया लैंडहोल्डर एसोसिएशन के अध्यक्ष
३. भारत धर्म महामंडल के अध्यक्ष
४. राज्य परिषद के सदस्य
५. कलकत्ता में विक्टोरिया मेमोरियल के ट्रस्टी
६. हिंदू विश्वविद्यालय सोसायटी के अध्यक्ष
७. एम.ई.सी. बिहार और उड़ीसा के सदस्य
८. भारतीय पुलिस आयोग के सदस्य

सम्मान…

१. वर्ष १९०० में कैसर-ए-हिंद पदक से सम्मानित किया गया।
२. २६ जून, १९०२ को नाइट कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द इंडियन एंपायर (KCIE) के नाम से जाना गया।
३. वर्ष १९१५ की बर्थडे ऑनर्स लिस्ट में एक नाइट ग्रैंड कमांडर (GCIE) में पदोन्नत किया गया।
४. नाइट ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर का नाइट कमांडर नियुक्त किया गया।
५. वर्ष १९१८ बर्थडे ऑनर्स लिस्ट में सिविल डिवीजन (KBE) में सामिल किया गया।

विशेष…

महाराजा भारत पुलिस आयोग के एकमात्र ऐसे सदस्य थें, जिन्होंने पुलिस सेवा के लिए आवश्यकताओं पर एक रिपोर्ट के साथ असंतोष किया और सुझाव दिया कि भारतीय पुलिस सेवा में भर्ती एक ही परीक्षा के माध्यम से होनी चाहिए। केवल भारत और ब्रिटेन में एक साथ आयोजित किया जाएगा। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि भर्ती रंग या राष्ट्रीयता पर आधारित नहीं होनी चाहिए। इस सुझाव को भारत पुलिस आयोग ने अस्वीकार कर दिया। महाराजा रामेश्वर सिंह एक तांत्रिक थें और उन्हें बौद्ध सिद्ध के रूप में जाना जाता था। वह अपने लोगों द्वारा एक राजर्षि माने जाते थें।

मृत्यु…

०३ जुलाई, १९२९ को उनके स्वर्ग लोक गमन के पश्चात उनके पूत्र सर कामेश्वर सिंह उनके उत्तराधिकारी हुए।

About Author

Leave a Reply