वीर सुरेन्द्र साय

आज हम बात करने वाले हैं १८५७ की क्रांति के ‘अंतिम शाहिद’ कहे जाने वाले वीर सुरेन्द्र साय के बारे में…

परिचय…

सुरेन्द्र साय का जन्म २३ जनवरी, १८०९ को उड़ीसा के सम्बलपुर अंर्तगत एवं ३० किलोमीटर दूर खिण्डा नामक गांव के चौहान राजवंश में हुआ था। सुरेन्द्र साय का विवाह हटीबाड़ी के जमींदार की पुत्री से हुआ था, जिनसे उन्हें एक पुत्र मित्रभानु और एक पुत्री प्राप्त हुए।

राज्य एवं राजनीति…

वर्ष १८२७ की बात है, सम्बलपुर के राजा की निःसन्तान अवस्था में मृत्यु हो गई। उस समय राजगद्दी का मूल अधिकारी सुरेन्द्र साय ही थे; परंतु अंग्रेजी सरकार को यह मंजूर नहीं था, क्योंकि वे भलीभांति जानते थे कि सुरेन्द्र साय गद्दी पर बैठते ही उन्हें अपने राज्य से बाहर निकाल देगा। इसलिए उन्होंने राजरानी मोहन कुमारी को ही राज्य का प्रशासक न्युक्त कर दिया। मोहन कुमारी बेहद सरल महिला थीं, उन्हें राजनीतिक कलाबाजियों की समझ नहीं थी। अतः अंग्रेज उन्हें अपनी उँगलियों पर नचाने लगे। लेकिन क्या यह अंग्रेजों के लिए इतना आसान था? नहीं! उस राज्य के सभी जमींदार नाराज हो गये। उन्होंने अंग्रेजों को हिदायत भी दी, परंतु अंग्रेजी सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगी। अब जमींदारों ने इसका मिलकर सशस्त्र विरोध करने का निश्चय कर लिया। इसके लिए उन्होंने सुरेन्द्र साय को अपना नेता चुन लिया। धीरे-धीरे ही सही प्रतिरोध की गति बढ़ने लगी, जनमानस में असंतोष बढ़ने लगा। इससे अंग्रेज अधिकारी परेशान होने लगे। शासन व्यवस्था बिगड़ने लगी।

युद्ध…

अब अंग्रेज सुरेन्द्र साय और उनके साथियों के थाह में रहने लगे। इसके लिए उन्होंने साम, दाम, दण्ड और भेद की नीति अपना ली। बात वर्ष १८३७ की है, एक दिन सुरेन्द्र साय, उदन्त साय, बलराम सिंह तथा लखनपुर के जमींदार बलभद्र देव डेब्रीगढ़ में कुछ विचार-विमर्श कर रहे थे, तभी अंग्रेजों ने वहाँ अचानक से धावा बोल दिया। सुरेन्द्र साय, उदन्त साय और बलराम सिंह तो बच गए परन्तु बलभद्र देव पकड़े गए। उन्होंने बलभद्र देव को बंधक बनाने के बजाए वहीं निर्ममता से हत्या कर दी।

इस हमले के बाद तो सुरेन्द्र साय की गतिविधियाँ और भी तेज हो गई। इससे अंग्रेज बाकियों के बजाय सिर्फ इनके पीछे लग गए। उन्होंने सुरेन्द्र साय को पकड़ने के लिए कुछ जासूस भी लगा दिए। जैसा की बाकी क्रान्ति वीरों के साथ हुआ है, ठीक वैसा ही यहां भी हुआ। कुछ देशद्रोहियों की सूचना पर वर्ष १८४० में सुरेन्द्र साय, उदन्त साय तथा बलराम सिंह भी अंग्रेजों की गिरफ्त में आ गये। तीनों को आजन्म कारावास का दण्ड देकर हजारीबाग जेल में डाल दिया गया।

मगर इनके साथी शान्त नहीं बैठे। बात ३० जुलाई, १८५७ की है, सैकड़ों की तादात में सुरेन्द्र साय के साथियों ने हजारीबाग जेल पर धावा बोल दिया। सुरेन्द्र साय और उनके ३२ साथियों सहित छुड़ा कर ले गए। यह उस समय की, या यूं बोलें कि इतिहास की एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी।

अब सुरेन्द्र साय और अंग्रेज खुलकर सामने आ गए। हुआ यूं कि सम्बलपुर पहुँचकर सुरेन्द्र साय अपने राज्य को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए सशस्त्र संग्राम शुरू कर दिया। अंग्रेज सेना और सुरेन्द्र साय के सैनिकों में परस्पर झड़प होने लगी। कभी एक का पलड़ा भारी रहता, तो कभी दूसरे का। सुरेन्द्र साय और उनके साथियों ने अंग्रेजों को कभी चैन की नींद नहीं सोने दिया।

अंत में…

२३ जनवरी, १८६४ की बात है, अपने जन्मदिन के अवसर पर सुरेन्द्र साय अपने परिवार से मिलने के लिए निवास पर आए हुए थे, इस बीच किसी भेदिया के कहने पर अंग्रेज पुलिस ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया। खूब गोलियां चली, मगर अंत में वे पकड़ लिए गए। रात में ही उन्हें सपरिवार रायपुर ले जाया गया और फिर अगले दिन नागपुर की असीरगढ़ जेल में बन्द कर दिया गया। जेल में शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के बाद भी सुरेन्द्र ने विदेशी शासन के आगे झुकना स्वीकार नहीं किया। अपने जीवन के ३७ साल जेल में बिताने वाले उस वीर ने २८ फरवरी, १८८४ को असीरगढ़ किले की जेल में ही अन्तिम साँस ली।

अश्विनी राय
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माताजी :- श्रीमती इंदु राय पिताजी :- श्री गिरिजा राय पता :- ग्राम - मांगोडेहरी, डाक- खीरी, जिला - बक्सर (बिहार) पिन - ८०२१२८ शिक्षा :- वाणिज्य स्नातक, एम.ए. संप्रत्ति :- किसान, लेखक पुस्तकें :- १. एकल प्रकाशित पुस्तक... बिहार - एक आईने की नजर से प्रकाशन के इंतजार में... ये उन दिनों की बात है, आर्यन, राम मंदिर, आपातकाल, जीवननामा - 12 खंड, दक्षिण भारत की यात्रा, महाभारत- वैज्ञानिक शोध, आदि। २. प्रकाशित साझा संग्रह... पेनिंग थॉट्स, अंजुली रंग भरी, ब्लौस्सौम ऑफ वर्ड्स, उजेस, हिन्दी साहित्य और राष्ट्रवाद, गंगा गीत माला (भोजपुरी), राम कथा के विविध आयाम, अलविदा कोरोना, एकाक्ष आदि। साथ ही पत्र पत्रिकाओं, ब्लॉग आदि में लिखना। सम्मान/पुरस्कार :- १. सितम्बर, २०१८ में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा विश्व भर के विद्वतजनों के साथ तीन दिनों तक चलने वाले साहित्योत्त्सव में सम्मान। २. २५ नवम्बर २०१८ को The Indian Awaz 100 inspiring authors of India की तरफ से सम्मानित। ३. २६ जनवरी, २०१९ को The Sprit Mania के द्वारा सम्मानित। ४. ०३ फरवरी, २०१९, Literoma Publishing Services की तरफ से हिन्दी के विकास के लिए सम्मानित। ५. १८ फरवरी २०१९, भोजपुरी विकास न्यास द्वारा सम्मानित। ६. ३१ मार्च, २०१९, स्वामी विवेकानन्द एक्सिलेन्सि अवार्ड (खेल एवं युवा मंत्रालय भारत सरकार), कोलकाता। ७. २३ नवंबर, २०१९ को अयोध्या शोध संस्थान, संस्कृति विभाग, अयोध्या, उत्तरप्रदेश एवं साहित्य संचय फाउंडेशन, दिल्ली के साझा आयोजन में सम्मानित। ८. The Spirit Mania द्वारा TSM POPULAR AUTHOR AWARD 2K19 के लिए सम्मानित। ९. २२ दिसंबर, २०१९ को बक्सर हिन्दी साहित्य सम्मेलन, बक्सर द्वारा सम्मानित। १०. अक्टूबर, २०२० में श्री नर्मदा प्रकाशन द्वारा काव्य शिरोमणि सम्मान। आदि। हिन्दी एवं भोजपुरी भाषा के प्रति समर्पित कार्यों के लिए छोटे बड़े विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सम्मानित। संस्थाओं से जुड़ाव :- १. जिला अर्थ मंत्री, बक्सर हिंदी साहित्य सम्मेलन, बक्सर बिहार। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना से सम्बद्ध। २. राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सह न्यासी, भोजपुरी विकास न्यास, बक्सर। ३. जिला कमिटी सदस्य, बक्सर। भोजपुरी साहित्य विकास मंच, कलकत्ता। ४. सदस्य, राष्ट्रवादी लेखक संघ ५. जिला महामंत्री, बक्सर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद। ६. सदस्य, राष्ट्रीय संचार माध्यम परिषद। ईमेल :- ashwinirai1980@gmail.com ब्लॉग :- shoot2pen.in

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