April 19, 2024

आज हम एक ऐसे प्रसिद्ध कवि के बारे में चर्चा करने वाले हैं, जिन्हें उत्तरप्रदेश सरकार ने ‘भारत भारती पुरस्कार’ से सम्मानित किया था तथा वे उन थोड़े-से कवियों में गिने जाते हैं जिन्हें हिंदी कविता के पाठकों से बहुत मान-सम्मान मिला। प्रारंभ में तो उन्होंने संस्कृत में कविताएँ लिखीं, परंतु महाकवि निराला की प्रेरणा से हिंदी विधा में भी लिखने लगे। आईए आपको आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी एवम उनके विविध और व्यापक काव्य संसार से परिचय कराते हैं…

परिचय…

जानकी वल्लभ शास्त्री जी का जन्म ५ फरवरी, १९१६ को बिहार के मुजफ्फरपुर जिला अंतर्गत मैगरा नामक गाँव में हुआ था। उनके पिताजी का नाम स्व. रामानुग्रह शर्मा था जिन्हें पशुओं का पालन करना बेहद पसंद था। उनके यहाँ दर्जनों गाय, सांड, बछड़े, बिल्लियाँ और कुत्ते थे। पशुओं से उन्हें इतना प्रेम था कि गाय तो गाय उनके बछड़ों को भी बेचते नहीं थे तथा उनके मरने पर उन्हें अपने आवास के परिसर में कहीं दफना दिया करते थे। उनकी और उनके पुत्र यानी जानकी वल्लभ दोनों का दिन उन पशुओं के दाना-पानी जुटाने में ही गुजर जाती थी। यह दिनचर्या शास्त्री जी जीवन पर्यंत निभाते रहे।

शिक्षा…

जानकी वल्लभ ने मात्र ११ वर्ष की अल्प आयु में ही वर्ष १९२७ में बिहार-उड़ीसा की प्रथमा परीक्षा यानी सरकारी संस्कृत परीक्षा को प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया तथा शास्त्री की उपाधि १६ वर्ष की आयु में प्राप्तकर ये काशी हिन्दू विश्वविद्यालय चले आए। जहां वे वर्ष १९३२ से वर्ष १९३८ तक रहे। वैसे तो उनकी शिक्षा संस्कृत भाषा में ही हुई थी, परंतु उन्होंने अंग्रेज़ी और बांग्ला का प्रभूत ज्ञान प्राप्त किया। उन्हें रविंद्र संगीत का बड़ा शौक था, जिसे वह बड़े आनंद से सुनते व गाते थे। वर्ष 1934-35 में इन्होंने साहित्याचार्य की उपाधि स्वर्णपदक के साथ अर्जित की और पूर्वबंग सारस्वत समाज ढाका के द्वारा साहित्यरत्न घोषित किए गए।

कार्यक्षेत्र…

उनका बचपन माता की स्नेहिल-छाया से वंचित रह। आर्थिक समस्याओं के निदान हेतु इन्होंने बीच-बीच में नौकरी भी की। वर्ष १९३६ में लाहौर में अध्यापन कार्य किया और वर्ष १९३७·३८ में रायगढ़ (मध्य प्रदेश) में राजकवि भी रहे। वर्ष १९४०·४१ में रायगढ़ छोड़कर मुजफ्फरपुर आने पर इन्होंने वेदांतशास्त्री और वेदांताचार्य की परीक्षाएं बिहार भर में प्रथम आकर पास की। वर्ष १९४४ से १९५२ तक गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेज में साहित्य-विभाग में प्राध्यापक बने तथा कालांतर में अध्यक्ष भी बने। वर्ष १९५३ से १९७८ तक बिहार विश्वविद्यालय के रामदयालु सिंह कॉलेज, मुजफ्फरपुर में हिन्दी के प्राध्यापक रहकर १९७९-८० में अवकाश ग्रहण किया।

रचनाएँ…

शास्त्री जी का पहला गीत ‘किसने बांसुरी बजाई’ बहुत लोकप्रिय हुआ। प्रो. नलिन विलोचन शर्मा जी ने उन्हें जयशंकर प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी के बाद पांचवां छायावादी कवि कहा है, जबकि विद्वानों की नजर में वे भारतेंदु और श्रीधर पाठक द्वारा प्रवर्तित और विकसित उस स्वच्छंद धारा के अंतिम कवि थे, जो छायावादी अतिशय लाक्षणिकता और भावात्मक रहस्यात्मकता से मुक्त थी। शास्त्री जी ने कहानियाँ, काव्य-नाटक, आत्मकथा, संस्मरण, उपन्यास और आलोचना भी लिखी हैं। कालीदास उनका प्रसिद्ध उपन्यास है।

उन्होंने अपनी पहली रचना ‘गोविन्दगानम’ मात्र सोलह-सत्रह वर्ष की अल्प अवस्था में ही लिखना प्रारंभ कर दिया था। ‘रूप-अरूप’ और ‘तीन-तरंग’ के गीतों के पश्चात्‌ ‘कालन’, ‘अपर्णा’, ‘लीलाकमल’ और ‘बांसों का झुरमुट’- चार कथा संग्रह कमशः प्रकाशित हुए। इनके द्वारा लिखित चार समीक्षात्मक ग्रंथ-’साहित्यदर्शन’, ‘चिंताधारा,’ ‘त्रयी’ और ‘प्राच्य साहित्य’ हिन्दी में भावात्मक समीक्षा के सर्जनात्मक रूप के कारण समादृत हुआ। वर्ष १९४५-५० तक इनके चार गीति काव्य प्रकाशित हुए – ’शिप्रा’, ‘अवन्तिका’,’ मेघगीत’ और ‘संगम’। कथाकाव्य ‘गाथा’ का प्रकाशन सामाजिक दृष्टिकोण से क्रांतिकारी है। उन्होंने एक महाकाव्य ‘राधा’ की रचना की जो वर्ष १९७१ में प्रकाशित हुई। ’हंस बलाका’ गद्य महाकाव्य की इनकी रचना हिन्दी जगत् की एक अमूल्य निधि है। छायावादोत्तर काल में प्रकाशित पत्र-साहित्य में व्यक्तिगत पत्रों के स्वतंत्र संकलन के अंतर्गत शास्त्री जी द्वारा संपादित वर्ष १९७१ में ‘निराला के पत्र’ उल्लेखनीय है। इनकी प्रमुख कृतियां संस्कृत में- ’काकली’, ‘बंदीमंदिरम’, ‘लीलापद्‌मम्‌’, हिन्दी में ‘रूप-अरूप’, ‘कानन’, ‘अपर्णा’, ‘साहित्यदर्शन’, ‘गाथा’, ‘तीर-तरंग’, ‘शिप्रा’, ‘अवन्तिका’, ‘मेघगीत’, ‘चिंताधारा’, ‘प्राच्यसाहित्य’, ‘त्रयी’, ‘पाषाणी’, ‘तमसा’, ‘एक किरण सौ झाइयां’, ‘स्मृति के वातायन’, ‘मन की बात’, ‘हंस बलाका’, ‘राधा’ आदि निम्नवार हैं…

(क) काव्य संग्रह – बाललता, अंकुर, उन्मेष, रूप-अरूप, तीर-तरंग, शिप्रा, अवन्तिका, मेघगीत, गाथा, प्यासी-पृथ्वी, संगम, उत्पलदल, चन्दन वन, शिशिर किरण, हंस किंकिणी, सुरसरी, गीत, वितान, धूपतरी, बंदी मंदिरम्‌

(ख) महाकाव्य – राधा

(ग) संगीतिका – पाषाणी, तमसा, इरावती

(घ) नाटक – देवी, ज़िन्दगी, आदमी, नील-झील

(ड.) उपन्यास – एक किरण : सौ झांइयां, दो तिनकों का घोंसला, अश्वबुद्ध, कालिदास, चाणक्य शिखा (अधूरा)

(च) कहानी संग्रह – कानन, अपर्णा, लीला कमल, सत्यकाम, बांसों का झुरमुट

(छ) ललित निबंध – मन की बात, जो न बिक सकीं

(ज) संस्मरण – अजन्ता की ओर, निराला के पत्र, स्मृति के वातायन, नाट्य सम्राट पृथ्वीराज कपूर, हंस-बलाका, कर्म क्षेत्रे मरु क्षेत्र, अनकहा निराला

(झ) समीक्षा – साहित्य दर्शन, त्रयी, प्राच्य साहित्य, स्थायी भाव और सामयिक साहित्य, चिन्ताधारा

(इं) संस्कृत काव्य – काकली

(ट) ग़ज़ल संग्रह – सुने कौन नग़मा

अंत में…

हिंदी व संस्कृत के कवि, लेखक एवं आलोचक आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी ०७ अप्रैल, २०११ को अपने अनंत यात्रा पर जाने से पूर्व वर्ष १९९४ एवम २०१० में पद्मश्री सम्मान लेने से सरकार को साफ मना कर दिया था।

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