नाटो

रूस और यूक्रेन के विवाद के मध्य बार बार नाटो (NATO) का नाम सुनने को मिल रहा है, जिसका अर्थ है North Atlantic Treaty Organization यानी उत्तरी अटलाण्टिक सन्धि संगठन है। नाटो एक सैन्य गठबन्धन है, जिसकी स्थापना ४ अप्रैल, १९४९ को सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था के लिए बनाई गई है, जिसके तहत इसके सदस्य देश बाहरी हमलों की स्थिति में सहयोग करने के लिए सहमत होंगे।

स्थापना…

बात द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् की है, जब विश्वमंच पर दो महाशक्तियों का अवतरण हुआ, सोवियत संघ और अमेरिका। अवतरण के साथ ही इन दोनो के मध्य शीत युद्ध का प्रखर विकास हुआ। फुल्टन भाषण व ट्रूमैन सिद्धान्त के तहत जब साम्यवादी प्रसार को रोकने की बात कही गई तो प्रत्युत्तर में सोवियत संघ ने अंतर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन कर वर्ष १९४८ में बर्लिन की नाकेबन्दी कर दी। इसी क्रम में यह विचार किया जाने लगा कि एक ऐसा संगठन बनाया जाए जिसकी संयुक्त सेनाएँ अपने सदस्य देशों की रक्षा करने में सक्षम हो।

मार्च १९४८ में ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैण्ड तथा लक्सेमबर्ग ने ब्रूसेल्स की सन्धि पर हस्ताक्षर किए। इसका उद्देश्य सामूहिक सैनिक सहायता के साथ ही सामाजिक-आर्थिक सहयोग भी था। साथ ही सन्धिकर्ताओं ने यह भी वचन दिया कि यूरोप में उनमें से किसी पर आक्रमण हुआ तो शेष सभी चारों देश हर सम्भव सहायता करेंगे। इसी पृष्ठभूमि में बर्लिन की घेराबन्दी और बढ़ते सोवियत प्रभाव को ध्यान में रखकर अमेरिका ने स्थिति को स्वयं अपने हाथों में लिया और सैनिक गुटबन्दी दिशा में पहला अति शक्तिशाली कदम उठाते हुए उत्तरी अटलाण्टिक सन्धि संगठन अर्थात नाटो की स्थापना की। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद·१५ में क्षेत्रीय संगठनों के प्रावधानों के अधीन उत्तर अटलांटिक सन्धि पर हस्ताक्षर किए गए। उसकी स्थापना ४ अप्रैल, १९४९ को वांशिगटन में हुई थी जिस पर १२ देशों ने हस्ताक्षर किए थे। ये देश थे- फ्रांस, बेल्जियम, लक्जमर्ग, ब्रिटेन, नीदरलैंड, कनाडा, डेनमार्क, आइसलैण्ड, इटली, नार्वे, पुर्तगाल और संयुक्त राज्य अमेरिका।

शीत युद्ध की समाप्ति से पूर्व ही यूनान, टर्की, पश्चिम जर्मनी, स्पेन भी सदस्य बने और शीत युद्ध के बाद भी नाटों की सदस्य संख्या का विस्तार होता रहा। वर्ष १९९९ में मिसौरी सम्मेलन में पोलैण्ड, हंगरी, और चेक गणराज्य के शामिल होने से सदस्य संख्या १९ हो गई। मार्च २००४ में ७ नए राष्ट्रों को इसका सदस्य बनाया गया फलस्वरूप सदस्य संख्या बढ़कर २६ हो गई। इस संगठन का मुख्यालय बेल्जियम की राजधानी ब्रूसेल्स में हैं।

स्थापना की वजह…

१. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप से अपनी सेनाएँ हटाने से साफ मना कर दिया और साथ ही वहाँ साम्यवादी शासन की स्थापना करने का प्रयास किया। अमेरिका ने इसका लाभ उठाकर साम्यवाद विरोधी नारा दिया और यूरोपीय देशों को साम्यवादी खतरे से सावधान किया। फलतः यूरोपीय देश एक ऐसे संगठन के निर्माण हेतु तैयार हो गए जो उनकी सुरक्षा कर सके।

२. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान पश्चिम यूरोपीय देशों ने अत्यधिक नुकसान उठाया था। अतः उनके आर्थिक पुननिर्माण के लिए अमेरिका एक बहुत बड़ी आशा थी ऐसे में अमेरिका द्वारा नाटो की स्थापना का उन्होंने समर्थन किया।

संरचना…

१. परिषद : यह नाटों का सर्वोच्च अंग है। इसका निर्माण राज्य के मंत्रियों से होता है। इसकी मंत्रिस्तरीय बैठक वर्ष में एक बार होती है। परिषद् का मुख्य उत्तरायित्व समझौते की धाराओं को लागू करना है।

२. उप परिषद् : यह परिषद् नाटों के सदस्य देशों द्वारा नियुक्त कूटनीतिक प्रतिनिधियों की परिषद् है। ये नाटो के संगठन से सम्बद्ध सामान्य हितों वाले विषयों पर विचार करते हैं।

३. प्रतिरक्षा समिति : इसमें नाटों के सदस्य देशों के प्रतिरक्षा मंत्री शामिल होते हैं। इसका मुख्य कार्य प्रतिरक्षा, रणनीति तथा नाटों और गैर नाटों देशों में सैन्य संबंधी विषयों पर विचार विमर्श करना है।

४. सैनिक समिति : इसका मुख्य कार्य नाटों परिषद् एवं उसकी प्रतिरक्षा समिति को सलाह देना है। इसमें सदस्य देशों के सेनाध्यक्ष शामिल होते हैं।

नाटो का दखल…

नाटो के विस्तार के पक्ष में जो सकरात्मक बाते कही गई इसके बावजूद उसकी आलोचना भी की जाती है। वस्तुतः नाटो की भूमिका शांति स्थापना, आपसी सहयोग आदि के संबंध में संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका का हनन करती है। समझने की बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था के रूप में की गई, जिसका उद्देश्य विश्व शांति है जबकि नाटो की स्थापना एक क्षेत्रीय संगठन के रूप में की गई। किंतु इसके बावजूद अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में शांति स्थापना हेतु नाटो की भूमिका यूएनओ के समानांतर दिखती है।

नाटो के सभी ३० सदस्य देश…

१. वर्ष १९४९ में बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्समबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम एवम संयुक्त राज्य अमेरिका।
२. वर्ष १९५२ में यूनान एवम तुर्की ।
३. वर्ष १९५५ में जर्मनी
४. वर्ष १९८२ में स्पेन
५. वर्ष १९९९ में पोलैंड, हंगरी एवं चेक रिपब्लिक।
६. वर्ष २००४ में बुल्गारिया, एस्टोनिया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया एवम लातविया।
७. वर्ष २००९ में अल्बानिया एवम क्रोएशिया।
८. वर्ष २०१७ में मोंटेनेग्रो
९. वर्ष २०२० में उत्तर मैसेडोनिया।

नाटो का अन्य देशों पर प्रभाव…

१. नाटो के गठन से अमेरिकी पृथकक्करण की नीति की समाप्ति हुई और अब वह यूरोपीय मुद्दों से तटस्थ नहीं रह सकता था।
२. नाटो के गठन ने शीतयुद्ध को बढ़ावा दिया। सोवियत संघ ने इसे साम्यवाद के विरोध में देखा और प्रत्युत्तर में वारसा पैक्ट (Warsaw Pact) नामक सैन्य संगठन कर पूर्वी यूरोपीय देशों में अपना प्रभाव जमाने की कोशिश की।
३. नाटो ने अमेरिकी विदेश नीति को भी प्रभावित किया। उसकी वैदेशिक नीति के खिलाफ किसी भी तरह के वाद-प्रतिवाद को सुनने के लिए तैयार नहीं रही और नाटो के माध्यम से अमेरिका का यूरोप में अत्यधिक हस्तक्षेप बढ़ा।
४. यूरोप में अमेरिका के अत्यधिक हस्तक्षेप ने यूरोपीय देशों को यह सोचने के लिए बाध्य किया कि यूरोप की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का समाधान यूरोपीय दृष्टिकोण से हल किया जाना चाहिए। इस दृष्टिकोण ने “यूरोपीय समुदाय” के गठन का मार्ग प्रशस्त किया।
५. विश्व फलक पर भी अमेरिका का हस्तक्षेप अत्यधिक बढ़ गया, जिससे बाकी के देशों में असुरक्षा की भावना पनपी।

अश्विनी रायhttp://shoot2pen.in
माताजी :- श्रीमती इंदु राय पिताजी :- श्री गिरिजा राय पता :- ग्राम - मांगोडेहरी, डाक- खीरी, जिला - बक्सर (बिहार) पिन - ८०२१२८ शिक्षा :- वाणिज्य स्नातक, एम.ए. संप्रत्ति :- किसान, लेखक पुस्तकें :- १. एकल प्रकाशित पुस्तक... बिहार - एक आईने की नजर से प्रकाशन के इंतजार में... ये उन दिनों की बात है, आर्यन, राम मंदिर, आपातकाल, जीवननामा - 12 खंड, दक्षिण भारत की यात्रा, महाभारत- वैज्ञानिक शोध, आदि। २. प्रकाशित साझा संग्रह... पेनिंग थॉट्स, अंजुली रंग भरी, ब्लौस्सौम ऑफ वर्ड्स, उजेस, हिन्दी साहित्य और राष्ट्रवाद, गंगा गीत माला (भोजपुरी), राम कथा के विविध आयाम, अलविदा कोरोना, एकाक्ष आदि। साथ ही पत्र पत्रिकाओं, ब्लॉग आदि में लिखना। सम्मान/पुरस्कार :- १. सितम्बर, २०१८ में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा विश्व भर के विद्वतजनों के साथ तीन दिनों तक चलने वाले साहित्योत्त्सव में सम्मान। २. २५ नवम्बर २०१८ को The Indian Awaz 100 inspiring authors of India की तरफ से सम्मानित। ३. २६ जनवरी, २०१९ को The Sprit Mania के द्वारा सम्मानित। ४. ०३ फरवरी, २०१९, Literoma Publishing Services की तरफ से हिन्दी के विकास के लिए सम्मानित। ५. १८ फरवरी २०१९, भोजपुरी विकास न्यास द्वारा सम्मानित। ६. ३१ मार्च, २०१९, स्वामी विवेकानन्द एक्सिलेन्सि अवार्ड (खेल एवं युवा मंत्रालय भारत सरकार), कोलकाता। ७. २३ नवंबर, २०१९ को अयोध्या शोध संस्थान, संस्कृति विभाग, अयोध्या, उत्तरप्रदेश एवं साहित्य संचय फाउंडेशन, दिल्ली के साझा आयोजन में सम्मानित। ८. The Spirit Mania द्वारा TSM POPULAR AUTHOR AWARD 2K19 के लिए सम्मानित। ९. २२ दिसंबर, २०१९ को बक्सर हिन्दी साहित्य सम्मेलन, बक्सर द्वारा सम्मानित। १०. अक्टूबर, २०२० में श्री नर्मदा प्रकाशन द्वारा काव्य शिरोमणि सम्मान। आदि। हिन्दी एवं भोजपुरी भाषा के प्रति समर्पित कार्यों के लिए छोटे बड़े विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सम्मानित। संस्थाओं से जुड़ाव :- १. जिला अर्थ मंत्री, बक्सर हिंदी साहित्य सम्मेलन, बक्सर बिहार। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना से सम्बद्ध। २. राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सह न्यासी, भोजपुरी विकास न्यास, बक्सर। ३. जिला कमिटी सदस्य, बक्सर। भोजपुरी साहित्य विकास मंच, कलकत्ता। ४. सदस्य, राष्ट्रवादी लेखक संघ ५. जिला महामंत्री, बक्सर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद। ६. सदस्य, राष्ट्रीय संचार माध्यम परिषद। ईमेल :- ashwinirai1980@gmail.com ब्लॉग :- shoot2pen.in

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