April 25, 2024

मल्हारराव होलकर मराठा साम्राज्य का एक सामन्त थे जो अपनी मेहनत और ईमानदारी के बदौलत मालवा का प्रथम मराठा सूबेदार नियुक्त किए गए और कालांतर में वह होलकर राजवंश के संस्थापक बने, जिसने इन्दौर पर शासन किया। मराठा साम्राज्य को उत्तर की तरफ प्रसारित करने वाले अधिकारियों में उनका नाम अग्रणी है।

परिचय…

मल्हारराव होलकर का जन्म १६ मार्च, १६९३ ( कहीं कहीं १६ अक्तूबर, १६९४ अंकित है )होल गांव के रहने वाले पटेल खंडोजी के यहां हुआ था। उनकी माता का नाम गंगाबाई था। इनके पिता खंडोजी का मुख्य पेशा कृषि था। मल्हारराव की अल्प आयु में ही उनके पिता का देहांत हो गया। इस पर माता गंगाबाई अपने भाई भोजराज बारगल के यहां तालोद चली गईं। भोजराज गांव का जमींदार था। बालक मल्हार मामा के घर उन्मुक्त वातावरण में पलने लगा। हम उम्र के साथियों में उसका प्रभाव जम गया। कुछ समय बाद मामा ने किशोर मल्हार को अपनी सैनिक टुकड़ी में भर्ती कर सिपाही बना लिया।

एक दिन मल्हार ने निजामुल मुल्क के सरदार का अकेले ही सिर काट दिया। इस शौर्य कृत्य ने उनकी ख्याति फैला दी। भोजराज बारगल ने इस प्रसन्नता के क्षणों में उत्साहित होकर अपनी पुत्री गौतमाबाई का विवाह मल्हारराव से कर दिया तथा कदम बांडे से परिचय करा दिया।

मराठा पलटन से होलकर राज्य की स्थापना की शुरुआत…

वर्ष १७२४ में मराठा सरदार कदम बांडे ने अपनी घुड़सवार पलटन के पांच सौ सवारों का नायक मल्हारराव को बना दिया। इस सैनिक टुकड़ी की विशिष्ट पहचान के लिए मल्हारराव ने लाल और सफेद रंगों का तिकोना ध्वज बनाकर लगाया। इससे सरदार कदम बांडे बहुत खुश हुआ। आगे चलकर यही ध्वज होलकर राज्य का शासकीय निशान बना। कदम बांडे ने पेशवाई सेना के हित में कार्य करने की छूट दे दी। पेशवा बाजीराव इनके वीरतापूर्ण कार्यों पर मुग्ध हो गए। मल्हारराव ने अपनी शूरवीरता से नर्मदा नदी के आसपास का क्षेत्र जीत लिया। पेशवा बाजीराव ने प्रसन्न होकर वर्ष १७२८ में इन्हें मालवा के १२ महाल (परगना) पुरस्कार स्वरूप प्रदान किए। होलकर राज्य की स्थापना की शुरुआत यहीं से हुई।

सूबेदारी से इंदौर राज्य की नींव…

पेशवा ने मल्हारराव को मालवा प्रांत की चौथ वसूली का अधिकार भी दे दिया। अपने पराक्रम और सतत परिश्रम से शीघ्र ही मल्हारराव ने मालवा-बुंदेलखंड की सूबेदारी प्राप्त कर ली। पेशवा के पूर्ण सहयोग से इन्होंने मराठा संघ की नींव मजबूत करने के लिए ‘कटक से अटक’ तक का विजय अभियान चलाया। इसके बदले में पेशवा की ओर से साठ लाख आमदनी वाला मालवा प्रदेश मिला। इंदौर राज्य की नींव इसी आधार पर खड़ी हुई। मल्हारराव को उस राज्य का संस्थापक माना जाता है। इनके उपरांत इस वंश में चौदह शासक हुए, जिन्होंने लगभग २२० वर्ष २२ दिनों तक राज्य की बागडोर संभाली।

और अंत में…

वर्ष १७६६ में पेशवा रघुनाथ राव के साथ मिलकर मराठा सरदारों ने धौलपुर-गोहद के राजाओं को घेरने की योजना बनाई। वे सामूहिक रूप से झांसी से प्रस्थान कर आगे बढ़ने लगे। २४ अप्रैल को भांडेर में रुके। यहां से आगे के लिए रवाना हुए, वहीं रास्ते में वृद्ध मल्हारराव का स्वास्थ्य अचानक बिगड़ गया। पिछले समय मांगरोल युद्ध में वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे। वही पुराना घाव फिर से तकलीफ देने लगा। इससे उन्हें बेरूवा-खेरा (आलमपुर) में उपचार हेतु रुकना पड़ा। यहीं २० मई, १७६६ को उनका देहांत हो गया।

जिस समय मल्हारराव का आसन्न् काल निकट था। उन्होंने अपने पौत्र को पास में बुलाकर उसका हाथ पेशवा के हाथ में सौंपा, पर पेशवा ने महादजी सिंधिया के हाथ में पकड़ा दिया। सिंधिया ने सेनापति तुकोजीराव होलकर के सुपुर्द कर दिया। इस पर तुकोजीराव ने निवेदन किया कि ‘मैं चाकर आदमी हूं। यह भार आप स्वयं रखें, आप सर्वोपरि हैं। मैं सब तरह से सेवा करने को तैयार हूं।’ इसे सुनकर सूबेदार साहब ने कहा कि ‘मेरे नाम से श्रीमंत पेशवा की चाकरी तुम करते रहो।’ इस अंतिम आदेश वाक्य के उच्चारण के साथ ही उनकी आंखें सदैव के लिए बंद हो गईं।

विशेष…

मल्हारराव की मृत्यु के पश्चात उनके स्वर्गीय पुत्र खंडेराव और अहिल्याबाई होलकर के पुत्र मालेराव २१ वर्ष की आयु में होलकरों की गद्दी पर बैठा। रघुनाथराव ने तत्काल उन्हें खिलअत भेज कर होलकर गद्दी का वारिस मानकर २२ अगस्त, १७६६ को मल्हारराव के सारे अधिकार प्रदान किए। आठ माह बाद ५ अप्रैल, १७६७ को मालेराव की भी मृत्यु हो गई।

सिंहासन खाली तो नहीं रह सकता था, अतः होलकरों के दीवान गंगाधर यशवंत चंद्रचूड़ ने अहिल्याबाई को उत्तराधिकारी हेतु किसी बालक को गोद लेने का सुझाव दिया। अहिल्याबाई को गंगाधर चंद्रचूड़ व राघोबा के षड्‌यंत्र का पता मालेराव के मृत्यु शोककाल में ही चल गया था इसलिए अहिल्याबाई ने मदद के लिए पड़ोसी राज्यों भोसले, गायकवाड़, धवादे व राजपूत राजाओं (जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, बूंदी) को मदद देने हेतु संदेशा भेजे और उन्होंने मदद हेतु सेना भी भेजी। तब अहिल्याबाई ने राघोबा को संदेश भेजा कि यदि मैं हार गई तो कोई बात नहीं और यदि जीत गई तो तुम्हें मारे शर्म के मुंह छिपाने को जगह नहीं मिलेगी अतः लड़ाई शुरू करने से पूर्व एक बार अवश्य सोच लें। अहिल्याबाई का पलड़ा भारी देख महादजी सिंधिया व जानोजी भोसले ने भी दीवान चंद्रचूड़ के षड्‌यंत्र में मदद देने को अब मना कर दिया। इसी बीच तुकोजीराव होलकर सेना लेकर क्षिप्रा के पास पहुंच गए। राघोबा को अपनी गलती का अहसास हो गया, और उन्होंने तुकोजीराव को संदेश भेजा कि हम मालेराव की मृत्यु पर शोक प्रकट करने आए हैं, इस प्रकार यह षड्‌यंत्र समाप्त हुआ।

अहिल्याबाई होलकर

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