वात्स्यायन

कामसूत्र एवं न्यायसूत्रभाष्य के रचनाकार वात्स्यायन या मल्लंग वात्स्यायन का काल गुप्तवंश के समय यानी छठवीं शताब्दी से आठवीं शताब्दी के मध्य माना जाता है, मगर इसमें विद्वानों का मदभेद है, जिसपर हम आगे चर्चा करेंगे। महर्षि वात्स्यायन ने कामसूत्र में न केवल दाम्पत्य जीवन का श्रृंगार किया है वरन कला, शिल्पकला एवं साहित्य को भी संपदित किया है। जो स्थान अर्थ के क्षेत्र में चाणक्य का है, वही स्थान काम के क्षेत्र में महर्षि वात्स्यायन का है।

परिचय…

वात्स्यायन के जन्मस्थान, काल आदि विषयों पर विद्वानों में काफी मतभेद है, जिसमें काफी दोष दिखाई पड़ता है। अधिकांशतः विद्वानों के शोध में उनके जन्मस्थान और काल को सही सही दिखाने से कहीं ज्यादा मगध अथवा पाटलिपुत्र यानी आज के पटना से हटा कर किसी अन्य स्थान पर स्थापित करने का ज्यादा जोर देते हैं, जो स्वयं ही उन्हें पाटलिपुत्र या उसके आसपास का मान लेते हैं। अब बात रही काल की तो उसके लिए हम हिन्दी विश्वकोश के पृ.सा. २७४ में नीतिसार के रचयिता कामन्दक को चाणक्य का प्रधान शिष्य कहा गया है। कोशकारों के मत से कामन्दक ही वात्स्यायन थे और कामन्दक-नीतिसार में उन्होंने प्रारम्भ में ही कौटल्य का अभिनन्दन कर उनके अर्थशास्त्र के आधार पर नीतिसार लिखने की बात कही है। इसके विपरीत कामन्दकीय नीतिसार की उपाध्याय-निरपेक्षिणी टीका के रचयिता ने कौटल्य ही को न्यायभाष्य, कौटल्यभाष्य (अर्थशास्त्र), वात्स्यायनभाष्य और गौतमस्मृतिभाष्य- इन चार भाष्यग्रन्थों को रचयिता माना है। यदि हम कामन्दकीय नीतिसार एवं गौतमधर्मसूत्र के मस्करी भाष्य को देखते हैं तो कौटल्य के लिए ‘एकाकी’ और ‘असहाय’ विशेषणों के प्रयोग मिलते हैं।

सुबन्धु द्वारा रचित वासवदत्ता में कामसूत्रकार को नाम ‘मल्लनाग’ उल्लिखित है। कामसूत्र के लब्धप्रतिष्ठ जयमङ्गला टीकाकार यशोधर ने वात्स्यायन का वास्तविक नाम मल्लनाग माना है। इस प्रकार कौटल्य, वररुचि, मल्लनाग सभी को वात्स्यायन कहा जाता है। अभी तक यह निर्णय नहीं किया जा सका है कि वात्स्यायन कौन थे। न्यायभाष्यकर्ता वात्स्यायन और कामसूत्रकार वात्स्यायन एक ही थे, या भिन्न-भिन्न।

जिस प्रकार वात्स्यायन के नामकरण पर मतभेद है उसी प्रकार उनके स्थितिकाल में भी अनेक मतवाद और प्रवाद प्रचलित हैं और कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जीवनकाल ६०० ईसापूर्व तक पहुँचता है। आधुनिक इतिहासकारों में हरप्रसाद शास्त्री वात्स्यायन को पहली शताब्दी का मानने का आग्रह करते हैं किन्तु शेष प्रायः सभी इतिहासकारों में कुछ तो तीसरी शती और कुछ चौथी शती स्वीकार करते हैं।

सूर्यनारायण व्यास ने कालिदास और वात्स्यायन के कृतित्व की तुलना करते हुए वात्स्यायन को कालिदास के बाद ईसवी पूर्व प्रथम शती की माना है। व्यासजी ने ऐतिहासिक और आभ्यन्तरिक अनेक प्रमाणों द्वारा अपने मत की पुष्टि की है किन्तु उन्होंने वात्स्यायन नाम के पर्यायों की ओर कोई संकेत नहीं किया है।

जाकोबी ने यह बात स्पष्ट किया है कि न्यायसूत्र में अनुमान का वर्गीकरण करने वाला जो सूत्र है, उसके अर्थ का निर्णय करने में वात्स्यायन को कठिनाई हुई थी। इसलिए वात्स्यायन ने उसके अर्थ निर्णय के बारे में कई पर्याय प्रस्तुत किए थे। इसका अर्थ यह हो सकता है कि गौतम के समय में अनुमान के वर्गीकरण की जो परम्परा चली आयी थी, वह गौतम के बाद खंडित हुई, और वात्स्यायन तक अपने मूलरूप में पहुँच न सकी। इस प्रकार गौतम को अगर दूसरी सदी में बिठाया जाए, तो वात्स्यायन का काल चौथी या पांचवी सदी हो सकता है। वात्स्यायन के समय के बारे में विद्वानों में अभी भी चर्चा जारी है। कई विद्वानों ने वात्स्यायन का काल छठी शताब्दी निश्चित किया है, तो दूसरे कई विद्वानों ने पांचवी सदी। इन दोनों मर्यादाओं के बीच वात्स्यायन का काल अलग अलग विद्वानों ने माना है। 

वात्स्यायन का विचार…

आचार्य वात्स्यायन से पहले भी इस विषय पर ग्रन्थ लिखे गये थे, तथा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की कल्पना की जा चुकी है। परन्तु इन सब ग्रन्थों को छोड़कर केवल वात्स्यायन के इस ग्रन्थ को ही महान् शास्त्रीय दर्जा प्राप्त हुआ है। वर्ष १८७० में ‘कामसूत्र’ का अंग्रेज़ी में अनुवाद हुआ। उसके बाद संसार भर के लोग इस ग्रन्थ से परिचित हो गए। वात्स्यायन कहते हैं कि, महिलाओं को ६४ कलाओं में प्रवीण होना चाहिए। इसमें केवल खाना पकाना, सीना-पिरोना और सेज सजाना ही नहीं, उन्हें नृत्य, संगीत, अध्ययन, रसायन, उद्यान कला और कविता करने में भी महारत हासिल होनी चाहिए। उन्होंने अपने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ में अनेक आसनों के साथ यह भी बताया है कि, किस प्रकार की महिला से विवाह अथवा प्रेम करना चाहिए और शयनागार को कैसे सजाया जाना चाहिए तथा स्त्री से कैसे व्यवहार करना चाहिए।

कामसूत्र का विभाजन…

वात्स्यायन के कामसूत्र सात अधिकरणों में विभाजित हैं-

१. सामान्य

२. सांप्रयोगिक

३. कन्यासंप्रयुक्त

४. भार्याधिकारिक

५. पारदारिक

६. वैशिक और

७ औपनिषदिक

वात्स्यायन ने अपने ग्रन्थ में कुछ पूर्वाचार्यों का उल्लेख किया है, जिनसे यह जानकारी मिलती है कि, सर्वप्रथम नंदी ने एक हज़ार अध्यायों के बृहद् कामशास्त्र की रचना की, जिसे आगे चलकर औद्दालिकी श्वेतकेतु और बाभ्रव्य पांचाल ने क्रमश: संक्षिप्त रूपों में प्रस्तुत किया। वात्स्यायन का कामसूत्र इनका अधिक संक्षिप्त रूप ही है। कामसूत्रों से तत्कालीन (१७०० वर्ष पूर्व के) समाज के रीति-रिवाजों की जानकारी भी मिलती है। ‘कामसूत्र’ पर वीरभद्र कृत ‘कंदर्पचूड़ामणि’, भास्करनृसिंह कृत ‘कामसूत्र-टीका’ तथा यशोधर कृत ‘कंदर्पचूड़ामणि’ नामक टीकाएँ उपलब्ध हैं।

अश्विनी रायhttp://shoot2pen.in
माताजी :- श्रीमती इंदु राय पिताजी :- श्री गिरिजा राय पता :- ग्राम - मांगोडेहरी, डाक- खीरी, जिला - बक्सर (बिहार) पिन - ८०२१२८ शिक्षा :- वाणिज्य स्नातक, एम.ए. संप्रत्ति :- किसान, लेखक पुस्तकें :- १. एकल प्रकाशित पुस्तक... बिहार - एक आईने की नजर से प्रकाशन के इंतजार में... ये उन दिनों की बात है, आर्यन, राम मंदिर, आपातकाल, जीवननामा - 12 खंड, दक्षिण भारत की यात्रा, महाभारत- वैज्ञानिक शोध, आदि। २. प्रकाशित साझा संग्रह... पेनिंग थॉट्स, अंजुली रंग भरी, ब्लौस्सौम ऑफ वर्ड्स, उजेस, हिन्दी साहित्य और राष्ट्रवाद, गंगा गीत माला (भोजपुरी), राम कथा के विविध आयाम, अलविदा कोरोना, एकाक्ष आदि। साथ ही पत्र पत्रिकाओं, ब्लॉग आदि में लिखना। सम्मान/पुरस्कार :- १. सितम्बर, २०१८ में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा विश्व भर के विद्वतजनों के साथ तीन दिनों तक चलने वाले साहित्योत्त्सव में सम्मान। २. २५ नवम्बर २०१८ को The Indian Awaz 100 inspiring authors of India की तरफ से सम्मानित। ३. २६ जनवरी, २०१९ को The Sprit Mania के द्वारा सम्मानित। ४. ०३ फरवरी, २०१९, Literoma Publishing Services की तरफ से हिन्दी के विकास के लिए सम्मानित। ५. १८ फरवरी २०१९, भोजपुरी विकास न्यास द्वारा सम्मानित। ६. ३१ मार्च, २०१९, स्वामी विवेकानन्द एक्सिलेन्सि अवार्ड (खेल एवं युवा मंत्रालय भारत सरकार), कोलकाता। ७. २३ नवंबर, २०१९ को अयोध्या शोध संस्थान, संस्कृति विभाग, अयोध्या, उत्तरप्रदेश एवं साहित्य संचय फाउंडेशन, दिल्ली के साझा आयोजन में सम्मानित। ८. The Spirit Mania द्वारा TSM POPULAR AUTHOR AWARD 2K19 के लिए सम्मानित। ९. २२ दिसंबर, २०१९ को बक्सर हिन्दी साहित्य सम्मेलन, बक्सर द्वारा सम्मानित। १०. अक्टूबर, २०२० में श्री नर्मदा प्रकाशन द्वारा काव्य शिरोमणि सम्मान। आदि। हिन्दी एवं भोजपुरी भाषा के प्रति समर्पित कार्यों के लिए छोटे बड़े विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सम्मानित। संस्थाओं से जुड़ाव :- १. जिला अर्थ मंत्री, बक्सर हिंदी साहित्य सम्मेलन, बक्सर बिहार। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना से सम्बद्ध। २. राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सह न्यासी, भोजपुरी विकास न्यास, बक्सर। ३. जिला कमिटी सदस्य, बक्सर। भोजपुरी साहित्य विकास मंच, कलकत्ता। ४. सदस्य, राष्ट्रवादी लेखक संघ ५. जिला महामंत्री, बक्सर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद। ६. सदस्य, राष्ट्रीय संचार माध्यम परिषद। ईमेल :- ashwinirai1980@gmail.com ब्लॉग :- shoot2pen.in

Similar Articles

Comments

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Advertismentspot_img

Instagram

Most Popular