अश्वघोष

कहा जाता है कि मगध दरबार के महाकवि व दर्शनीय अश्वघोष को कुषाण नरेश कनिष्क ने मगध पर आक्रमण कर अपने साथ पुरुषपुर यानी आज का पेशावर ले गया था। अश्वघोष की एक प्रसिद्ध रचना बुद्धचरितम् है, गौतम बुद्ध पर आधारित है।

परिचय…

अश्वघोष का जन्म साकेत यानी अयोध्या में हुआ था। उनकी माता का नाम सुर्णाक्षी था। संस्कृत में बौद्ध महाकाव्यों की रचना का सूत्रपात सर्वप्रथम महाकवि अश्वघोष ने ही किया था। अत: महाकवि अश्वघोष संस्कृत के प्रथम बौद्धकवि हैं। वे सर्वप्रथम मगध नरेश के राजगुरु थे, जिन्हें कुषाण नरेश कनिष्क ने मगध पर आक्रमण कर अपने साथ पुरुषपुर यानी आज का पेशावर ले गया था। इतिहास में दो कनिष्कों का उल्लेख मिलता है। प्रथम कनिष्क के पौत्र थे द्वितीय कनिष्क। दो कनिष्कों के कारण अश्वघोष के समय असंदिग्ध रूप से निर्णीत नहीं हो पाता है, परंतु इतिहास को ही आधार बनाया जाए तो यह बात खुल कर सामने आती है कि प्रथम कनिष्क ने महाकवि अश्वघोष को मगध शासक से छीन कर अपने पौत्र द्वितीय कनिष्क का गुरु नियुक्त किया होगा, क्योंकि चीनी अनुश्रुतियों तथा साहित्यिक परम्परा के अनुसार महाकवि अश्वघोष कनिष्क के राजगुरु एवम् राजकवि थे, जो कि सिद्ध होता है।
कनिष्क द्वारा बुलाई गई चतुर्थ बौद्ध संगीति की अध्यक्षता का गौरव एक परम्परा महास्थविर पार्श्व को और दूसरी परम्परा महावादी अश्वघोष को प्रदान करती है। ये सर्वास्तिवादी बौद्ध आचार्य थे जिसका संकेत सर्वास्तिवादी “विभाषा” की रचना में प्रायोजक होने से भी हमें मिलता है। ये प्रथमतः परमत को परास्त करनेवाले “महावादी” दार्शनिक थे। इसके अतिरिक्त साधारण जनता को बौद्धधर्म के प्रति “काव्योपचार” से आकृष्ट करनेवाले महाकवि थे।

शोधकार्य…

विण्टरनित्स के अनुसार कनिष्क १२५ ई. में सिंहासन पर आसीन हुआ था। तदनुसार अश्वघोष का स्थितिकाल भी द्वितीय शती ई. माना जा सकता है। परन्तु अधिकांश विद्वानों की मान्यता है कि कनिष्क शक संवत का प्रवर्तक है। यह संवत्सर ७८ ई. से प्रारम्भ हुआ था। इसी आधार पर कीथ अश्वघोष का समय १०० ई. के लगभग मानते हैं। कनिष्क का राज्यकाल ७८ ई. से १२५ ई. तक मान लेने पर महाकवि अश्वघोष का स्थितिकाल भी प्रथम शताब्दी माना जा सकता है।
बौद्ध धर्म के ग्रन्थों में भी ऐसे अनेक प्रमाण मिलते हैं, जिनके आधार पर अश्वघोष, कनिष्क के समकालीन सिद्ध होते हैं। चीनी परम्परा के अनुसार कनिष्क के द्वारा काश्मीर के कुण्डलव में आयोजित अनेक अन्त:साक्ष्य भी अश्वघोष को कनिष्क का समकालीन सिद्ध करते हैं।
अश्वघोष कृत ‘बुद्धचरित’ का चीनी अनुवाद ईसा की पांचवीं शताब्दी का उपलब्ध होता है। इससे विदित होता है कि भारत में पर्याप्त रूपेण प्रचारित होने के बाद ही इसका चीनी अनुवाद हुआ होगा।
अशोक का राज्यकाल ई.पू. २६९ से २३२ ई. पू. है, यह तथ्य पूर्णत: इतिहास-सिद्ध है। ‘बुद्धचरित’ के अन्त में अशोक का उल्लेख होने के कारण यह निश्चित होता है कि अश्वघोष अशोक के परवर्ती थे।
चीनी परम्परा अश्वघोष को कनिष्क का दीक्षा-गुरु मानने के पक्ष में है। अश्वघोष कृत ‘अभिधर्मपिटक’ की विभाषा नाम्नी एक व्याख्या भी प्राप्त होती है जो कनिष्क के ही समय में रची गयी थी।
अश्वघोष रचित ‘शारिपुत्रप्रकरण’ के आधार पर प्रो ल्यूडर्स ने इसका रचनाकाल हुविष्क का शासनकाल स्वीकार किया है। हुविष्क के राज्यकाल में अश्वघोष की विद्यमानता ऐतिहासिक दृष्टि से अप्रमाणिक है। इनका राज्यारोहणकाल कनिष्क की मृत्यु के बीस वर्ष के बाद है। हुविष्क के प्राप्त सिक्कों पर कहीं भी बुद्ध का नाम नहीं मिलता, किन्तु कनिष्क के सिक्कों पर बुद्ध का नाम अंकित है। कनिष्क बौद्धधर्मावलम्बी था और हुविष्क ब्राह्मण धर्म का अनुयायी थे। अत: अश्वघोष का उनके दरबार में विद्यमान होना सिद्ध नहीं होता।

कालिदास का प्रभाव…

कालिदास तथा अश्वघोष की रचनाओं का तुलनात्मक अध्ययन करने के पश्चात् यह निष्कर्ष निकलता है कि अश्वघोष कालिदास के परवर्ती थे। कालिदास की तिथि प्रथम शताब्दी ई. पू. स्वीकार करने से यह मानना पड़ता है कि दोनों रचनाओं में जो साम्य परिलक्षित होता है उससे कालिदास की रचनाओं का प्रभाव अश्वघोष की रचनाओं पर सिद्ध होता है। अश्वघोष के ऊपर कालिदास का प्रभूत प्रभाव पड़ा था, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि कालिदास ने कुमारसंभव और रघुवंश में जिन श्लोंकों को लिखा, उन्हीं का अनुकरण अश्वघोष ने बुद्धचरित में किया है। कालिदास ने विवाह के बाद प्रत्यागत शिव-पार्वती को देखने के लिए उत्सुक कैलास की ललनाओं का तथा स्वयंवर के अनन्तर अज और इन्दुमती को देखने के लिए उत्सुक विदर्भ की रमणियों का क्रमश: कुमारसंभव तथा रघुवंश में जिन श्लोकों द्वारा वर्णन किया है, उन्हीं के भावों के माध्यम से अश्वघोष ने भी राजकुमार सिद्धार्थ को देखने के लिए उत्सुक कपिलवस्तु की सुन्दरियों का वर्णन किया है।

बुद्धचरित का निम्नश्लोक…
वातायनेभ्यस्तु विनि:सृतानि परस्परायासितकुण्डलानि।
स्त्रीणां विरेजुर्मुखपङकजानि सक्तानि हर्म्येष्विव पङकजानि॥

कुमारसंभव तथा रघुवंश के निम्नश्लोक…
तासां मुखैरासवगन्धगर्भैर्व्याप्तान्तरा सान्द्रकुतूहलानाम्।
विलोलनेत्रभ्रमरैर्गवाक्षा: सहस्रपत्राभरणा इवासन्।

उपर्युक्त श्लोकद्वय के तुलनात्मक अध्ययन से यह सिद्ध होता है कि अश्वघोष महाकवि कालिदास के ऋणी थे, क्योंकि जो मूल कवि होता है वह अपने सुन्दर भाव को अनेकत्र व्यक्त करता है। उस भाव का प्रचार-प्रसार चाहता है इसीलिए कालिदास ने कुमारसंभव और रधुवंश में अपने भाव को दुहराया है। परन्तु अश्वघोष ने कालिदास का अनुकरण किया है। अत: उन्होंने एक ही बार इस भाव को लिया है। फलत: अश्वघोष कालिदास से परवर्ती हैं।

रचनाएँ…

इनके नाम से प्रख्यात अनेक ग्रन्थ हैं, परंतु प्रामाणिक रूप से अश्वघोष की साहित्यिक कृतियाँ केवल चार हैं :

(१) बुद्धचरितम्
(२) सौन्दरानंदकाव्यम्
(३) गंडीस्तोत्रगाथा
(४) शारिपुत्रप्रकरणम्
(५) सूत्रालङ्कारशास्त्रम् के रचयिता संभवतः ये नहीं हैं।

चीनी तथा तिब्बती अनुवादों बुद्धचरित पूरे २८ सर्गों में उपलब्ध है, परंतु मूल संस्कृत में केवल १४ सर्गों में ही मिलता है। इसमें तथागत का जीवनचरित और उपदेश बड़ी ही रोचक वैदर्भी रीति में नाना छन्दों में निबद्ध किया गया है। सौन्दरानन्द (१८ सर्ग) सिद्धार्थ के भ्राता नन्द को उद्दाम काम से हटाकर संघ में दीक्षित होने का भव्य वर्णन करता है। काव्यदृष्टि से बुद्धचरित की अपेक्षा यह कहीं अधिक स्निग्ध तथा सुन्दर है। गंडोस्तोत्रगाथा गीतकाव्य की सुषमा से मण्डित है। शरिपुत्रप्रकरण अधूरा होने पर भी महनीय रूपक का रम्य प्रतिनिधि है। विद्वानों की पूरी मंडली अश्वघोष को कालिदास की काव्यकला का प्रेरक मानते हैं।

अश्विनी राय
अश्विनी रायhttp://shoot2pen.in
माताजी :- श्रीमती इंदु राय पिताजी :- श्री गिरिजा राय पता :- ग्राम - मांगोडेहरी, डाक- खीरी, जिला - बक्सर (बिहार) पिन - ८०२१२८ शिक्षा :- वाणिज्य स्नातक, एम.ए. संप्रत्ति :- किसान, लेखक पुस्तकें :- १. एकल प्रकाशित पुस्तक... बिहार - एक आईने की नजर से प्रकाशन के इंतजार में... ये उन दिनों की बात है, आर्यन, राम मंदिर, आपातकाल, जीवननामा - 12 खंड, दक्षिण भारत की यात्रा, महाभारत- वैज्ञानिक शोध, आदि। २. प्रकाशित साझा संग्रह... पेनिंग थॉट्स, अंजुली रंग भरी, ब्लौस्सौम ऑफ वर्ड्स, उजेस, हिन्दी साहित्य और राष्ट्रवाद, गंगा गीत माला (भोजपुरी), राम कथा के विविध आयाम, अलविदा कोरोना, एकाक्ष आदि। साथ ही पत्र पत्रिकाओं, ब्लॉग आदि में लिखना। सम्मान/पुरस्कार :- १. सितम्बर, २०१८ में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा विश्व भर के विद्वतजनों के साथ तीन दिनों तक चलने वाले साहित्योत्त्सव में सम्मान। २. २५ नवम्बर २०१८ को The Indian Awaz 100 inspiring authors of India की तरफ से सम्मानित। ३. २६ जनवरी, २०१९ को The Sprit Mania के द्वारा सम्मानित। ४. ०३ फरवरी, २०१९, Literoma Publishing Services की तरफ से हिन्दी के विकास के लिए सम्मानित। ५. १८ फरवरी २०१९, भोजपुरी विकास न्यास द्वारा सम्मानित। ६. ३१ मार्च, २०१९, स्वामी विवेकानन्द एक्सिलेन्सि अवार्ड (खेल एवं युवा मंत्रालय भारत सरकार), कोलकाता। ७. २३ नवंबर, २०१९ को अयोध्या शोध संस्थान, संस्कृति विभाग, अयोध्या, उत्तरप्रदेश एवं साहित्य संचय फाउंडेशन, दिल्ली के साझा आयोजन में सम्मानित। ८. The Spirit Mania द्वारा TSM POPULAR AUTHOR AWARD 2K19 के लिए सम्मानित। ९. २२ दिसंबर, २०१९ को बक्सर हिन्दी साहित्य सम्मेलन, बक्सर द्वारा सम्मानित। १०. अक्टूबर, २०२० में श्री नर्मदा प्रकाशन द्वारा काव्य शिरोमणि सम्मान। आदि। हिन्दी एवं भोजपुरी भाषा के प्रति समर्पित कार्यों के लिए छोटे बड़े विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सम्मानित। संस्थाओं से जुड़ाव :- १. जिला अर्थ मंत्री, बक्सर हिंदी साहित्य सम्मेलन, बक्सर बिहार। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना से सम्बद्ध। २. राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य सह न्यासी, भोजपुरी विकास न्यास, बक्सर। ३. जिला कमिटी सदस्य, बक्सर। भोजपुरी साहित्य विकास मंच, कलकत्ता। ४. सदस्य, राष्ट्रवादी लेखक संघ ५. जिला महामंत्री, बक्सर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद। ६. सदस्य, राष्ट्रीय संचार माध्यम परिषद। ईमेल :- ashwinirai1980@gmail.com ब्लॉग :- shoot2pen.in
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