April 30, 2025

भारत माता मन्दिर, काशी के राजघाट पर स्थित अपने ढंग का अनोखा मंन्दिर है। यह मंदिर सिर्फ और सिर्फ ‘भारत माता’ को समर्पित है। यह मंदिर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के परिसर में अवस्थित है। इस मंदिर का निर्माण बाबू शिवप्रसाद गुप्त द्वारा करवाया गया था, जबकि इसका उद्घाटन वर्ष १९३६ में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा हुआ था। मंदिर में किसी भी देवी-देवता की प्रतिमा नहीं है, सिर्फ भारत का भू मानचित्र है, जो संगमरमर के टुकड़ों पर उकेरा गया है।

निर्माण कथा…

राष्ट्र रत्न बाबू शिवप्रसाद गुप्त जी वर्ष १९१३ में करांची कांग्रेस से लौटते हुए मुम्बई गए थे। वहाँ से वे पुणे गये और धोंडो केशव कर्वे का विधवा आश्रम देखा। आश्रम में ज़मीन पर ‘भारत माता’ का एक मानचित्र बना हुआ था, जिसमें मिट्टी से पहाड़ एवं नदियां बनी हुई थीं। वहाँ से लौटने के बाद श्री गुप्त जी ने इसी तरह का संगमरमर का भारत माता का मंदिर बनाने का विचार किया। उन्होंने इसके लिये अपने मित्रों से विचार-विमर्श किया। उस समय के प्रख्यात इंजीनियर दुर्गा प्रसाद जी मंदिर को बनवाने के लिये तैयार हो गये और उनकी देखरेख में काम शुरू हुआ।

उद्घाटन…

वर्ष १९२६ के शारदीय नवरात्र में महात्मा गांधी ने पहले दर्शक के रूप में मंदिर का अवलोकन किया। पांच दिन बाद यानी ‘विजयादशमी’ को उन्होंने मंदिर का उद्घाटन किया। भू मानचित्र तैयार करने में २० शिल्पी लगे थे, जबकि मंदिर का बाहरी कलेवर २५ शिल्पियों ने लगभग पांच वर्ष में तैयार किया। मंदिर में मंदिर के संस्थापक राष्ट्र रत्न शिवप्रसाद गुप्त जी ने अपना नाम कहीं भी नहीं दिया है।

गाँधीजी का कथन…

वर्तमान में ‘महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ’ के परिसर में दुनिया के इस अनोखे मंदिर का निर्माण हुआ है। इसका उद्घाटन करने के बाद महात्मा गांधी ने अपने सम्बोधन में कहा था, “इस मंदिर में किसी देवी-देवता की मूर्ति नहीं है। मुझे आशा है कि यह मंदिर सभी धर्मों, सभी जातियों के लोगों के लिये एक सार्वदेशिक मंच का रूप ग्रहण कर लेगा और इस देश में पारस्परिक धार्मिक एकता, शांति तथा प्रेम की भावना को बढ़ाने में योगदान देगा।”

मानचित्र…

भारत भूमि की समुद्र तल से उंचाई और गहराई आदि के मद्देनज़र संगमरमर बहुत ही सावधानी से तराशे गये हैं। मानचित्र को मापने के लिये धरातल का मान एक इंच बराबर ६.४ मील जबकि ऊंचाई एक इंच में दो हजार फीट दिखायी गयी है। एवरेस्ट की ऊंचाई दिखाने के लिये पौने १५ इंच ऊँचा संगमरमर का एक टुकड़ा लगाया गया है। मानचित्र में हिमालय समेत ४५० चोटियां, ८०० छोटी व बड़ी नदियां उकेरी गयी हैं। बडे़ शहर सुप्रसिद्ध तीर्थ स्थल भी भौगोलिक स्थिति के मुताबिक़ दर्शाये गये हैं। बाबू शिवप्रसाद गुप्त जी ने इस मानचित्र को ही जननी जन्मभूमि के रूप में प्रतिष्ठा दी। मंदिर की दीवार पर बंकिमचंद्र चटर्जी की कविता ‘वन्दे मातरम’ और उद्घाटन के समय सभा स्थल पर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखी गयी कविता ‘भारत माता का यह मंदिर’ समता का संवाद है।

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