विषय : निरादर
दिनांक : 03/10/19
ईश्वर ने कहा, माँग!
जो चहिए…
धूप, शीत और जल
उसने दिए
जीवन, प्रकृत और स्थल
उसने दिए
कल, आज और कल
भी उसने दिए
अब क्या मांगू उससे
किसी से भी मांगना
आदर नहीं देता
फिर ईश्वर ने तो सब दिए हैं
उससे कैसे मांगू
माँग कर कैसे
उसे अनादर करूं
तुम्हें तो याद ही होगा
जब मैंने उससे मांगे थे
जिंदगी के कुछ रंग
अपने शब्दों को
और सुंदर बनाने को
और उसने मोल में
मांगी थी पूरी पुस्तक
और उस दिन
मैं कर्जदार बन गया
मेरी आदर बदल गई
अनादर में, क्यूंकि
जिसने मांगा वो
वह तिरस्कृत
और जिसने न दिया
वो भी तिरस्कृत
यही तो भाव हैं
अनादर के
अश्विनी राय ‘अरूण’
