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विषय : विश्वास
दिनाँक : ०४/१०/१९

माना आपने जैसा चाहा
मैं वैसा नहीं
माना मैं इस योग्य नहीं
हैसियत में आपके जोड़ नहीं
बराबर दौड़ सकता नहीं

मगर विश्वास है
मैं चल सकता हूँ
नुकीली पत्थरों पर
जहरीली काँटों पर
फिसलती घाटो पर
बिक सकता हूँ हाटों पर
सच कहता हूँ
मैं चल सकता हूँ

माना मैं अपने गीतों को
सिक्कों में बदल नहीं सकता
मगर विश्वास है
मेरे ये जज्बात
गीत बन गुनगुनाते रहेंगे
फिजाओं में घुलकर
बहारों में इठलाते रहेंगे
सच कहता हूँ
ये गीत लोग गाते रहेंगे

माना मैं कोई सुरीला सुर नहीं
ना तो कोई राग हूँ
मगर मुझे विश्वास है
मेरे ये तान जिस दिन
आपके हृदय द्वार को छू जाएँगे
आपको हम भी यूँ ही भा जाएँगे

शायद उस दिन मैं ना रहूँ
शायद ये हसीन वादियां ना रहें
शायद चेहरे की ये चमकीली
रौशनी, साजों श्रृंगार ना रहें

ढलती तरूणई की शाम में
हमें याद कर आप भी
बहुत पछताएंगी
मुझे विश्वास है
वो सुबह कभी तो आयेगी

ढलती शाम की
सुनहरी सुबह में
हमें यूँ ही पाएंगी
सच कहता हूँ
वो सुबह जल्द ही आयेगी

अश्विनी राय ‘अरूण’

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