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अभ्युदय पत्रिका
पिता विशेषांक

कभी पाबंदियों का
फरमान तो कभी
नए नए कानूनों से
भरा संविधान थे पिता

स्कूलों में हमारी गलती की
सजा के हकदार तो कभी
हमारी तरक्की के
पहचान थे पिता

हर दुख में आगे तो कभी
हर खुशी के पीछे थे पिता
हमारे होठों के पीछे छिपे
शब्दों को पहचान
अपनी मजबूरियों को
छुपा ले जाते थे पिता

कभी अभिमान तो कभी
स्वाभिमान है पिता
कभी धरती तो कभी
आसमान है पिता

देख कभी उन्हें
रुक जाती थी हंसी
मगर हंसी के पीछे का
शान है पिता

अकेलेपन का मेला है पिता
सर पर छत बन कर मेरे
दूर तलक फैला है पिता

कभी उनसे बेहद डरते थे
छाया में उनकी हर किसी से
लड़ पड़ते थे

कभी डरावने तो
कभी जिद्दी तो
कभी बेहद गुस्सैल थे पिता

सुरक्षित, शिक्षित, संस्कारी
और स्वाभिमानी बना
आज अपने आप से जूझता
कितना अकेला हो गया है पिता

पिता

विद्या वाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’
ग्राम : मांगोडेहरी, डाक : खीरी
जिला : बक्सर, बिहार
पिन कोड : ८९२१२८

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