January 14, 2025

बचपन में गाया करते थे 

जय कन्हैयालाल की

मदन गोपाल की

लइकन के हाथी घोड़ा

बूढ़वन के पालकी

 

मगर क्या बात है कि 

अब पालकी नहीं दिखती

क्या आज बूढ़े नहीं रहे 

या पालकी ही नहीं रही

 

लेकिन बूढ़े तो हैं,

हर घर के बरामदे में दिखते हैं

शायद अब पालकी ही नहीं रही

 

मगर आज ये पालकी में कौन है 

और क्यों कोई है इस पालकी में

 

जान पड़ता कोई दूल्हा आया था 

ले चला अपनी दुल्हन बिदाई में

 

अरे भाई सम्हाल कर ले चलो

बड़ी नाजों से सम्हाला है 

पालकी बच्चे की तरह पाला है

 

दुल्हन तो आज की है

मोटर कार से चली जाएगी

बूढ़े ताले बने लटके रहेंगे

अपने घरों में घिरे रहेंगे

 

मगर ये पालकी फिर से 

अब नजर नहीं आएगी

घर के किसी कोने में पड़ी

अपने भाग्य पर इठलाएगी

इतराएगी या उसपर पछताएगी

 

 

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