April 11, 2025

 

खिड़की से जब बाहर झांकता हूँ,
यादे पास चली आती हैं।
कुछ पुराने दोस्त तो कुछ अपने दोष॥

खिड़की के बाहर अच्छे प्रसंग हैं,
तो कुछ भयावह भी हैं।

खिड़की के बाहर देखना भाता है।
जैसे जीवन में प्रवेश कर कोई,
उससे बाहर झांकता है।

बाहर प्राणवायु सी खुली हवा है,
तो खिली है जीवन की धूप।
जहां फैली है आजाद रौशनी,
बाहर ही खड़े हैं, उन्हें लूटने बड़े बड़े भूप।

बाहर दूर तलक फैली है उम्र वाली जमीन।
उसे भटकाने को या समेटने को,
फैला है आकांक्षाओं का आकाश।

जहां उम्र के साथ उम्मीद भटकती है,
और भटक जाते हैं समय के कुछ तार।

डर जाता हूं तो कभी उद्वेलित हो जाता हूँ,
और झटके से खिड़की बंद कर देता हूँ।

सोचता हूँ समय थम गया, फिर जोर से,
हँस कर खिड़की खोल देता हूँ।

बाहर देखता हूँ जिंदगी जो ना रुकी थी,
वो एक बार फिर से चलचित्र कि भांति,
खिड़की के बाहर चलने लगती है।

अश्विनी राय ‘अरुण’

About Author

Leave a Reply

RocketplayRocketplay casinoCasibom GirişJojobet GirişCasibom Giriş GüncelCasibom Giriş AdresiCandySpinzDafabet AppJeetwinRedbet SverigeViggoslotsCrazyBuzzer casinoCasibomJettbetKmsauto DownloadKmspico ActivatorSweet BonanzaCrazy TimeCrazy Time AppPlinko AppSugar rush