‘चोपड़ा साहिब… मैं महाभारत लिखूंगा। मैं गंगा का पुत्र हूं। मुझसे ज़्यादा भारत की सभ्यता और संस्कृति के बारे में कौन जानता है।’
साल १९९० के दौरान इंडिया टुडे पत्रिका को दिए साक्षात्कार में उनसे हिंदू कट्टरपंथियों के विरोध के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, ‘मुझे बहुत दुख हुआ… मैं हैरान था कि एक मुसलमान द्वारा पटकथा लेखन को लेकर इतना हंगामा क्यों किया जा रहा है, क्या मैं एक भारतीय नहीं हूं?’
इन्हें आप पहचान गए होंगे ना…
जी हां! सही पहचाना।
राही मासूम रजा
इनका जन्म १ सितंबर, १९२५ को गाजीपुर जिले के गंगौली गांव में हुआ था और प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा गंगा किनारे गाजीपुर शहर के एक मुहल्ले में ही हुई थी।
पेट की आग उन्हें १९६८ में बम्बई ले गई। वहां वे अपनी साहित्यिक अभिलाषाओं के साथ-साथ फिल्मों के लिए भी लिखने लगेे जो उनकी जीविका का साधन बन गया। राही स्पष्टतावादी व्यक्ति थे और अपने धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीय दृष्टिकोण के कारण अत्यन्त लोकप्रिय हो गए थे। यहीं रहते हुए राही ने आधा गांव, दिल एक सादा कागज, ओस की बूंद, हिम्मत जौनपुरी उपन्यास व १९६५ के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए वीर अब्दुल हमीद की जीवनी छोटे आदमी की बड़ी कहानी लिखी। उनकी ये सभी कृतियाँ हिंदी में थीं। इससे पहले वह उर्दू में एक महाकाव्य १८५७ जो बाद में हिन्दी में क्रांति कथा नाम से प्रकाशित हुआ तथा छोटी-बड़ी उर्दू नज़्में व गजलें लिख चुके थे।
महाभारत…
उन्होने शुरुआत में तो समय की कमी के कारण विश्वप्रसिद महाकाव्य महाभारत के टेलीविज़न रूपांतरण के लिए संवाद लिखने की प्रसिद्ध निर्माता बीआर चोपड़ा साहब की गुज़ारिश को भी ठुकरा दिया था। लेकिन, हिंदू धर्म के कुछ स्वयंभू संरक्षकों की ओर से उन पर टिप्पणी किए जाने के बाद उर्दू कवि राही मासूम रज़ा न केवल इस भव्य टीवी सीरियल से जुड़े बल्कि उन्होंने महाभारत के संवाद भी लिखे, और क्या खूब लिखे जो आज भी घर-घर में लोकप्रिय है।
ऐसे महान विभूति जन्म दिवस पर अश्विनी राय ‘अरूण’ का बारम्बार नमन।
धन्यवाद !