असमिया भाषा एवं साहित्य के अगुआ श्री ज्योति प्रसाद अग्रवाल का जन्म १७ जून, १९०३ को असम राज्य, डिब्रूगढ़ ज़िले में स्थित तामुलबारी नामक चाय बागान में हुआ था। इनका परिवार वर्ष १८११ में राजस्थान के मारवाड़ से असम में आकर बस गया था। इनके पिताजी का नाम श्री परमानंद अग्रवाल तथा माताजी का नाम श्रीमती किरनमोई अग्रवाल था। वे प्रसिद्ध साहित्यकार, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा फ़िल्म निर्माता थे। बहुआयामी और विलक्षण प्रतिभा के स्वामी श्री ज्योति प्रसाद अग्रवाल का शुभ आगमन ऐसे समय में हुआ, जब असमिया संस्कृति तथा सभ्यता अपने मूल रूप से विछिन्न होती जा रही थी। बहुमुखी प्रतिभा के धनी ज्योति प्रसाद अग्रवाल एक नाटककार, कथाकार, गीतकार, पत्र संपादक, संगीतकार तथा गायक सभी कुछ थे। मात्र १४ वर्ष की अल्प आयु में ही उन्होंने ‘शोणित कुंवरी’ नामक प्रसिद्ध नाटक की रचना कर असमिया साहित्य और भाषा को समृद्ध कर दिया था।
शिक्षा…
उन्होने अपनी शिक्षा असम तथा कोलकाता में पाई थी। ज्योति प्रसाद जी ने वर्ष १९२१ में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। यद्यपि इस दौरान असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ हो चुका था, तो उन्होने भी अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दी थी, लेकिन आन्दोलन रुक जाने पर कोलकाता के नेशनल कॉलेज में दुबारा से प्रवेश ले लिया। इसके बाद १९२६ में वे इकॉनोमिक्स की पढ़ाई के लिए इंग्लैण्ड चले गए और फिर शिक्षा पूर्ण कर १९३० में स्वदेश लौट आए। इंग्लैण्ड में शिक्षा पूरी करने के बाद ज्योति प्रसाद अग्रवाल कुछ समय के लिए जर्मनी चले गए थे, जहाँ उनका संपर्क हिमांशु राय से हुआ। हिमांशु राय से उन्हें सिनेमा निर्माण की कला सीखने का अवसर प्राप्त हुआ। १९३० में भारत आते ही ज्योति प्रसाद फिर से असहयोग आंदोलन में सम्मिलित हो गए अतः उन्हें १५ महीने की कैद की सज़ा मिली।
असमिया सामाज में बदलाव…
जर्मनी मे सीखी फ़िल्म-निर्माण कला का उपयोग करके ज्योति प्रसाद अग्रवाल ने वर्ष १९३५ में असमिया साहित्यकार लक्ष्मीकांत बेजबरूआ के ऐतिहासिक नाटक ज्योमति कुंवारी को आधार मानकर असमिया भाषा की पहली फ़िल्म बनाई। वे इस फ़िल्म के निर्माता, निर्देशक, पटकथाकार, सेट डिजाइनर, संगीत तथा नृत्य निर्देशक सभी थे यानी ‘जूता सिलाई से लेकर चंडी पाठ’ तक उन्होने ही किए। कालांतर में ज्योति प्रसाद ने अपने दो सहयोगियों बोडो कला गुरु विष्णु प्रसाद सभा और फणि शर्मा के साथ मिलकर असमिया जन-संस्कृति को एक नई चेतना दी। यहीं से शुरू हुआ था, असमिया जातिय इतिहास का स्वर्ण युग।
कृतियाँ…
ज्योति प्रसाद अग्रवाल की संपूर्ण रचनाएं असम की सरकारी प्रकाशन संस्था ने चार खंडों में प्रकाशित की हैं। उनमें १० नाटक और लगभग अतनी ही कहानियां, एक उपन्यास, २० से ऊपर निबंध तथा ३५९ गीतों का संकल्न है, जिनमें प्रायः सभी असमिया भाषा में ही लिखे गये हैं। तीन-चार गीत हिन्दी में और कुछ अंग्रेज़ी में नाटक भी उन्होने लिखे हैं। असम सरकार प्रत्येक वर्ष १७ जनवरी को ज्योति प्रसाद की पुण्यतिथि को शिल्पी दिवस के रूप में मनाती है। इस दिन पूरे असम प्रदेश में सार्वजनिक छुट्टी रहती है। सरकारी प्रायोजनों के अतिरिक्त शिक्षण संस्थाओं में बड़े उत्साह से कार्यक्रम पेश किये जाते हैं। जगह-जगह प्रभात फेरियां निकाली जाती हैं, साहित्यिक गोष्ठियां आयोजित की जाती हैं।
१७ जनवरी, १९५१ को ज्योति प्रसाद अग्रवाल का देहांत हो गया। उनके द्वारा लिखे गए अनेक नाटक बहुत प्रसिद्ध हुए थे। उन्होंने लोक कलाओं को भी बहुत प्रोत्साहित किया था।