November 21, 2024

अपनी बात रखने से पूर्व एक संयोग की बात करते हैं, जब देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी ने शपथ ग्रहण की थी, तब एक शख्स उस समय भवन के उसी कक्ष में मौजूद थे, जहां शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया जा रहा था। उस समय किसने सोचा होगा कि ठीक ३५ वर्ष बाद इस इतिहास को दोहराने वाला वो शख्स उस घड़ी वहीं मौजूद है।

जी हां! हम बात कर रहे हैं, भारत के ८वें राष्ट्रपति महामहिम श्री रामस्वामी वेंकटरमण जी की, जिनका जन्म ४ दिसंबर १९१० को मद्रास के तंजावुर जिला अंतर्गत राजारदम नामक गाँव में हुआ था। जो की अब तमिलनाडु में आता है। इनके पिता का नाम रामास्वामी अय्यर था, जो वकालत करते थे।

शिक्षा…

रामास्वामी वेंकटरमण की प्राथमिक शिक्षा तंजावुर में सम्पन्न हुई। तत्पश्चात् उन्होंने अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि मद्रास विश्वविद्यालय, मद्रास से प्राप्त की। शिक्षा प्राप्ति के उपरांत उनके सामने दो विकल्प मौजूद थे, ब्रिटिश हुकूमत की नौकरी करें अथवा स्वतंत्र रूप से वकालत करें। ब्रिटिश हुकूमत की नौकरी मन को नहीं भाया अतः इन्होंने दूसरा विकल्प चुना और वर्ष १९३५ ई. में मद्रास उच्च न्यायालय में नामांकन करवा लिया।

परिवार…

श्री रामास्वामी वेंकटरमण का विवाह वर्ष १९३८ में जानकी देवी के साथ सम्पन्न हुआ। जिनसे इन्हें तीन पुत्रियां तथा एक पुत्र प्राप्त हुए। परंतु ईश्वर को और ही मंजूर था, इनकी तीनों बेटियाँ पद्मा, लक्ष्मी एवं विजया तो सकुशल तो रहीं परंतु पुत्र के सम्बन्ध में वेंकटरमण बड़े दुर्भाग्यशाली रहे। इनके पुत्र की १७ वर्ष की आयु में भगवान को प्यारे हो गए। यह परिवार के लिए एक बड़ी त्रासदी थी और इस शोक से मुक्त हो पाना आसान नहीं था। परंतु उसके आगे किया भी क्या जा सकता था? वक्त गुजरता गया , जख्म शायद लोगों की नजरों में भर गया। परंतु क्या कोई यह नहीं जानता कि कुछ जख्मों के निशान अमिट रहते हैं? पुत्र की मौत भी ऐसा ही जख्म था।

जीवनयापन…

शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने मद्रास उच्च न्यायालय में वर्ष १९३५ से वकालत शुरू की और वर्ष अपनी काबिलियत के दम पर वर्ष १९५१ से उन्होंने उच्चतम न्यायालय में वकालत शुरू की।

विधि व्यवसाय में स्वयं को स्थापित करने वाले रामास्वामी वेंकटरमण अप्रतिम काबिलियत रखते थे। इनकी काबिलियत को प्रदर्शित करने के लिए हत्या के एक मुकदमें को उदाहरण स्वरूप आपके सम्मुख एक प्रस्तुत कर रहे हैं। एक समय की बात है कि तमिलनाडु के युवा लड़कों के झुण्ड ने आवेश में आकर एक ब्रिटिश अधिकारी की हत्या कर दी। उन युवाओं को फाँसी की सज़ा सुनाई गई। सी. राजगोपालाचारी उनकी कम उम्र को आधार बनाकर फाँसी की सज़ा बख्शवाने के लिए अपील कर चुके थे, लेकिन उन्हें सफलता हांथ नहीं लगी थी। फाँसी की सज़ा का दिन भी निर्धारित कर दिया गया। लेकिन रामास्वामी वेंकटरमण ने ब्रिटिश वकील की सहायता से इंग्लैण्ड की पुनरीक्षण कौंसिल के समक्ष प्रार्थना पेश करने में सफलता प्राप्त कर ली। चूंकि मामला इंग्लैण्ड की प्रिवी कौंसिल के समक्ष विचाराधीन था, इस कारण भारत सरकार अपने विधिक आदेशों की पूर्ति नहीं कर सकती थी, अतः सज़ा पर रोक लगा दी गई। उस समय सी. राजगोपालाचारी भारत के श्रेष्ठतम वकीलों में से एक माने जाते थे और वे भी ऐसा नहीं कर पाये थे। तब सी. राजगोपालाचारी ने रामास्वामी वेंकटरमण की खुले मंच से प्रशंसा की थी। इन्हें वर्ष १९४६ में भारत सरकार द्वारा वकीलों के उस पैनल में भी स्थान दिया गया, जो मलाया और सिंगापुर में सुभाष चन्द्र बोस एवं भारतीय स्वतंत्रता सैनानियों के बचाव हेतु नियुक्त किया गया था। इन स्वतंत्रता सैनानियों पर यह आरोप था कि उन्होंने दोनों स्थानों पर जापानियों की मदद की थी। इससे यह साबित हो जाता है कि वेंकटरमण काफ़ी प्रतिभाशाली थे। कुशल अधिवक्ता होने के साथ ही वे ट्रेड यूनियन में भी सक्रिय रूप से भाग लेते थे। तमिलनाडु में लोग इन्हें श्रम एवं क़ानून के दोहरे ज्ञाता के रूप में जानते हैं। वहाँ के लोगों का यह भी मानना था कि रामास्वामी वेंकटरमण ग़रीबों के सहायक एवं मित्र हैं। वह कई यूनियनों के साथ गहरे से जुड़े हुए थे। किसानों, रियासत के कर्मचारियों, बंदरगाह कर्मियों, रेलवे कर्मचारियों और कार्यशील पत्रकारों की यूनियन के साथ भी इनके आत्मीय सम्बन्ध थे।

राजनीतिक जीवन…

कानून की जानकारी और छात्र राजनीति में सक्रिय होने के कारण वे जल्द ही राजनीति में आ गए। वर्ष १९५० में उन्हें आजाद भारत की अस्थायी संसद के लिए चुना गया। उसके बाद वर्ष १९५२ से १९५७ तक वे देश की पहली संसद के सदस्य रहे। वे वर्ष १९५३ से १९५४ तक कांग्रेस पार्टी में सचिव पद पर भी रहे।
वर्ष १९५७ में संसद के लिए चुने जाने के बावजूद रामस्वामी वेंकटरमन ने लोक सभा सीट से इस्तीफा देकर मद्रास सरकार में एक मंत्री का पद भार ग्रहण किया। इस दौरान उन्होंने उद्योगों, समाज, यातायात, अर्थव्यस्था व जनता की भलाई के लिए कई विकासपूर्ण कार्य किए। वर्ष १९६७ में उन्हें योजना आयोग का सदस्य नियुक्त किया गया और उन्हें उद्योग, यातायात व रेलवे जैसे प्रमुख विभागों का उत्तरदायित्व भी सौंपा गया। वर्ष १९७७ में दक्षिण मद्रास की सीट से उन्हें लोकसभा का सदस्य चुना गया, जिसमें उन्होंने विपक्षी नेता की भूमिका निभाई। वर्ष १९८० में लोकसभा का सदस्य चुने जाने के बाद इंदिरा गांधी की सरकार में उन्हें वित्त मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया और उसके बाद उन्हें रक्षा मंत्री बनाया गया। उन्होंने पश्चिमी और पूर्वी यूरोप के साथ ही सोवियत यूनियन, अमेरिका, कनाडा, दक्षिण पश्चिमी एशिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, यूगोस्लाविया और मॉरिशस की आधिकारिक यात्राएँ कीं

उपराष्ट्रपति…

इसके पश्चात् कांग्रेस द्वारा श्री रामास्वामी वेंकटरमण को देश का उपराष्ट्रपति नियुक्त करने का निर्णय लिया गया। २२ अगस्त, १९८४ को उन्होंने उपराष्ट्रपति का पदभार सम्भाल लिया। साथ ही उपराष्ट्रपति के रूप में राज्यसभा के सभापति भी बने। राज्यसभा के पदेन सभापति के रूप में इनके कार्य की सराहना विपक्ष सहित समस्त देश द्वारा की गई।

राष्ट्रपति…

उपराष्ट्रपति बनने के लगभग २५ माह बाद ही कांग्रेस को देश का राष्ट्रपति निर्वाचित करना था। ज्ञानी जैल सिंह का कार्यकाल समाप्त होने वाला था। इसी के तहत १५ जुलाई, १९८७ को वह भारतीय गणराज्य के आठवें निर्वाचित राष्ट्रपति घोषित किये गए। २४ जुलाई, १९८७ को इन्होंने उपराष्ट्रपति पद से त्यागपत्र दे दिया और २५ जुलाई, १९८७ को संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आर.एस. पाठक ने इन्हें राष्ट्रपति के पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई।

शपथ ग्रहण करने के तुरन्त बाद श्री वेंकटरमण ने कहा, “मैं इस उच्चतम कार्यालय के कर्तव्यों की पूर्ति में कोई त्रुटि नहीं करूंगा और न ही संविधान निर्माताओं द्वारा प्रदत्त राष्ट्रपति की शक्तियों का दुरुपयोग करूंगा। पूर्व राष्ट्रपतियों, यथा-डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, डॉक्टर राधाकृष्णन और डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन ने जो चमकदार परम्परा स्थापित की है, मैं उसका निर्वहन करूंगा।” जब इनसे सूचना तंत्र के व्यक्ति ने पूछा कि आप राष्ट्रपति के रूप में किस प्रकार कार्य करने वाले हैं, तो इन्होंने बेहद सन्तुलित जवाब दिया, “यह जनता ही तय करेगी कि मेरा कार्यकाल कैसा रहा।”

कठिनाइयाँ…

१. वर्ष १९९० में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार अल्पमत में आई और उसका पतन हुआ, जिसे उन्होंने सफलता पूर्वक सामना किया।

२. मई-जून १९९१ में राजीव गांधी की हत्या के समय भी देश चुनौतियों से घिरा हुआ था। तब भी उन्होंने बुद्धिमानी और राजनीतिक दूरदर्शिता का परिचय दिया।

अपनी बात…

अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने यह साबित कर दिया कि उन परिस्थितियों में उनसे बेहतर कोई अन्य राष्ट्रपति नहीं हो सकता था। यदि उनके जीवन की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों पर दृष्टिपात किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि श्री वेंकटरमण ने प्रत्येक ज़िम्मेदारी का निष्ठा से निर्वहन किया और कभी भी अति महत्त्वकांक्षा अथवा पद की लालसा नहीं दिखाई। उपराष्ट्रपति रहते हुए भी इन्होंने कई ज़िम्मेदारियों का पालन किया।

सम्मान…

श्री वेंकटरमण को कई विश्वविद्यालयों ने अकादमी पुरस्कार भी प्रदान किए। स्वतंत्रता संग्राम में योगदान हेतु इन्हें ताम्रपत्र देकर भी सम्मानित किया गया। समाजवादी देशों की यात्रा का वृत्तान्त लिखने के लिए इन्हें ‘सोवियत लैंड पुरस्कार’ दिया गया।

अंतिम समय…

श्री वेंकटरमण ने अच्छी उम्र पाई थी, उन्होंने अपने जीवन के ९८ बसन्त देखने का सौभाग्य प्राप्त किया था। परंतु २६ जनवरी, २००९ को इस संसार को छोड़ने से पूर्व और राष्ट्रपति पद से मुक्त होने के बाद उन्होंने एक पुस्तक ‘माई प्रेसिडेंशियल ईयर्स’ शीर्षक से लिखी। इस पुस्तक में उन्होंने अपने राष्ट्रपतित्व काल के पाँच वर्ष की घटनाओं का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक ६७१ पृष्ठों की थी। इसके बाद इन्होंने श्रम क़ानून पर भी उपयोगी लेखन कार्य किया। वेंकटरमण अंतर्राष्ट्रीय समझ एवं सद्भाव हेतु दिये जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार ‘जवाहरलाल नेहरू अवार्ड’ की ज्यूरी के सदस्य भी रहे। विकास, शान्ति एवं निशस्त्रीकरण के क्षेत्र में दिये जाने वाले ‘इंदिरा गांधी पुरस्कार’ की चयन समिति में भी थे। वह ‘जवाहरलाल स्मृति कोष’ के उपाध्यक्ष और ‘इंदिरा गांधी स्मृति कोष’ के न्यासी भी रहे। यह गांधीनगर खरवा इंस्टीट्यूट, दिल्ली विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय रूरल इंस्टीट्यूट तथा दिल्ली विश्वविद्यालय एवं पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे।

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