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साप्ताहिक प्रतियोगिता : ०.५
विषय : दो दिलों की कहानी
दिनाँक : ११/०२/२०
दो दिल कब मिले; कैसे बतलाऊं,
धड़कते दिल की आहट कैसे सुनाऊँ।
बोलो! क्या बतलाऊँ; क्या सुनाऊँ,
कैसे मिलन के अपने गीत गाऊँ।
उस दिन मैं सोया था,
मिलने जब भाई आया था।
मेरी शादी वाली ही बात है,
साथ में फोटो लेकर आया था।
इसने देखा; उसने देखा,
उस फोटो को सबने देखा।
शायद मेरी ही ग़लती थी,
बस एक झलक; मैने देखा।
पहली बार जब उसको देखा,
पहली बार ही दिल धड़का था।
लगता था रो-रोकर मर जाऊँ,
हालात पर फिर, मैं हँसता था।
उसको मैं कैसे पाऊंगा,
दिल लगाना कभी नहीं आया।
मगर आज प्यार के सागर में,
अपने को गहरे तक डूबा पाया।
इक फूल को कंटक का साथ
क्या बगिया को ठीक लगेगा?
उसके दर पर बारात लाना
क्या उस परी को ठीक लगेगा?
बिन उसके अंतर्मन सूना,
कैसे उसको यह बतलाऊं?
क्षणभंगुर-सी है पीर हमारी,
कैसे उसतक हाल पहुँचाऊ?
दिल को हाँथ में लेकर मैं,
डर को भी साथ में लेकर मैं,
शादी करके ले आया उसको,
कब तक झूठों-सा मुस्काऊँ मैं।
इस प्रश्न को रोज़ लिए मैं,
आज भी दिल ही दिल में लड़ता हूँ।
अगर और कुरेदोगे तुम इसको,
आज भी मैं उसपर जीता मरता हूँ।
अश्विनी राय ‘अरूण’
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