November 24, 2024

कल हमने यूट्यूब पर एक फिल्म देखी, इरादा। इस फिल्म में धाकड़ अभिनेता नसीरुद्दीन शाह और अरशद वारसी ने बेहतरीन काम किया है, साथ ही बाकी के कलाकारों ने भी अपने काम को ठीक ही किया है मगर फिल्म का लेखन और डायरेक्शन दोनों ही बेहद ढीला है जिसके कारण फिल्म झूलती हुई आगे बढ़ती है। एक रिवर्स बोरिंग जैसी शानदार कॉन्सेप्ट को यूं ही जाया जाने दिया गया है। फिल्म के लेखक के पास और उसके सोच में जो फिल्म की कहानी थी वह लिखते लिखते कहीं खो गई और जो बची थी उसपर निर्देशक कुछ तो कर ही सकता था मगर वह भी फुस्स। वैसे यह फिल्म निर्देशक अपर्णा शर्मा का डेब्यू था अतः उनकी कोशिश के लिए उन्हें पूरे नंबर दिए जा सकते हैं क्योंकि इस तरह की फिल्म बनाना अपने आप में एक चैलेंज है। विज्ञान पर आधारित चीज़ें बॉलीवुड का हिस्सा नहीं होती हैं मगर इस फिल्म में है। रिवर्स बोरिंग पर आधारित इस फिल्म को देखने से साफ दिखता है कि फिल्म आधी अधूरी ही पकी है, जिसे अधकच्चे ही दर्शकों के सामने परोस दी गई है अथवा एक अच्छे आईडिया को ठीक से उतारा ही नहीं गया है। फिल्म में ना सस्पेंस है और ना ही दर्शकों को बांधे रखने का (विषय के अलावा) कोई और साधन।

कहानी…

परबजीत वालिया (नसीरूद्दीन शाह) एक सैनिक अधिकारी था और अब लेखक है। उसकी बेटी को कैंसर होता है और वो मर जाती है। मगर वह उसकी मौत पर रोने की बजाय मरने का कारण ढूंढने की कोशिश करता है। ढूंढने पर उसे चीफ मिनिस्टर (दिव्या दत्ता) और एक बिज़नेसमैन (शरद केलकर) की करप्ट हरकतो के साथ कुछ ऐसे राज़ के करीब लेकर जाता है, जिसका खात्मा उसका मकसद बन जाता है। इस बीच फिल्म में एंट्री होती है एक NIA ऑफिसर अर्जुन मिश्रा (अरशद वारसी) की जिसे सीएम वालिया नियुक्त करती हैं केस को बंद करने के लिए। वहीं फिल्म में एक ज्रर्नलिस्ट है सागरिका घटके के तौर पर जो अपने बॉयफ्रेंड की मौत का बदला लेना चाहती है। ये तीनों किरदार मिलकर समाज को करप्शन और कुछ बुरी बीमारियों से बचाने की कोशिश करते हैं।

रिवर्स बोरिंग…

बोरिंग भूजल को निकालने के लिए किया जाता है, लेकिन रिवर्स बोरिंग की शुरुआत पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई जी ने भूजल को संतुलित रखने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग योजना चलाई थी। जिसमें वर्षा ऋतु में जाया जाने वाले जल को बचाया जा सके और यह जल जमीन के भीतर पहुंचा कर भूजल स्तर को कायम रखा जा सके। उन्होंने सभी इंडस्ट्रियल यूनिट्स को यह सिस्टम अपने यूनिट्स में स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया।

मगर कुछ लालची उद्योगपतियों ने इस प्रणाली को अपने इंडस्ट्रियल कचरे को खपाने का जरिया बना लिया। जिन पाईपो के ज़रिये वर्षा का साफ़ पानी भूगर्भ में जाता था उन्हीं के ज़रिये भूगर्भ में फैक्ट्री का प्रदूषित केमिकल युक्त प्रदूषित गन्दा पानी भूगर्भ में पहुँचाया जा रहा है। आने वाले समय में यही दूषित जल हमें पीने के पानी के रूप में मिलेगा। शहरों के सीवरेज सिस्टम और उद्योगिक कचरा निरंतर नदियों और जलाशयों में गिरने के कारण, गंगा यमुना आदि जैसी अन्य पवित्र नदियों का पानी भी ‘गंदानाला‘ हो गया है। ज्यों ज्यों सरकार स्वच्छता अभियान के अंतर्गत नदी जल को प्रदूषण को रोकने का उपाय कर रही है (अथवा इस फिल्म की भांति दिखावा कर रही है) और प्रदूषण के लिए जिम्मेदार इकाइयों पर कड़ाई कर रही है, त्यों त्यों उद्योगिक इकाईयां अपने कचरे को ठिकाने लगाने के लिए अब रिवर्स बोरिंग जैसे आसान और खतरनाक जुगाड़ कर रही हैं।

सत्तर के दशक में पंजाब को हरित क्रांति के लिए चुना गया था। अधिक पैदावार का ऐसा चक्र चला कि कीटनाशक का छिड़काव अधिक से अधिक करने की होड़ सी लग गई। दूसरी तरफ उद्योग, अपना प्रदूषित गन्दा पानी निकट के जलाशयों में बहाकर इस कदर क्षेत्रो को विषैला बना देते हैं कि वह जगह धीरे धीरे कैंसर रोग के चपेट में आ जाते हैं। इस फिल्म में दिखाया गया है उसके अनुसार बठिंडा से बीकानेर राजस्थान के लिए १२ कोच की एक विशेष ट्रेन चलाई गई है, पंजाब के कैंसर रोगियों के लिए। उस ट्रेन से रोज़ लगभग १०० कैंसर मरीज़ बीकानेर अस्पताल के लिए सवार होते हैं। पंजाब का मालवा रीज़न जो कपास के लिए जाना जाता है। यहाँ लगभग १५ प्रकार के पेस्टीसाईड्ज़ का प्रयोग होता है। लहलहाती फसलों के बीच कैंसर पीड़ित किसान परिवारों का दर्द किसी को दिखाई नहीं देता। उद्योगीकरण के साथ साथ इनके द्वारा विसर्जित कचरा बहुत बड़ी समस्या बनता जा रहा है। प्रदूषण रोकने के लिए प्रशासन की सख्ती के चलते उद्योग इस कचरे को ठिकाने लगाने के सस्ते और सुलभ जुगाड़ लगा रहे हैं, उन्हें रिवर्स बोरिंग का जुगाड़ सबसे आसान लगता है। जबकि यह इतना ख़तरनाक है कि यह पृथ्वी के गर्भ में जा कर जल और मिट्टी को जहरीला करता जा रहा है। समय रहते यदि इस जुगाड़ पर नकेल न कसी गयी तो वह दिन दूर नहीं जब देश के हरेक नगर से एक ‘कैंसर पीड़ित‘ ट्रेन लबा लब भर कर जाएगी। और यह कहां जाएगी भगवान जाने।

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