कुमार चंद्रक, उमास्नेहरश्मि पारितोषिक, साहित्य अकादमी पुरस्कार, रणजितराम सुवर्णचंद्रक, ज्ञानपीठ पुरस्कार आदि सम्मानों से अलंकृत एवम गुजरात विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक श्री रघुवीर चौधरी जी का जन्म ५ दिसम्बर, १९३८ को गुजरात में हुआ था। वे गुजराती भाषा के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कवि एवं आलोचक थे, साथ ही अनेकों समाचारपत्रों में वे स्तम्भलेखन भी करते रहे हैं। गुजराती भाषा के अलावा इन्होंने हिन्दी में भी अपने हांथ आजमाए। वर्ष १९७७ में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था। तथा वर्ष २०१५ में भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है ज्ञानपीठ पुरस्कार उन्हें प्रदान किया गया।
कुछ प्रमुख कृतियाँ…
श्री रघुवीर चौधरी जी की रचना संसार बेहद बृहद है। उनकी ‘रुद्र महालय’ को गुजराती साहित्य की अमूल्य धरोहर माना जाता है। उन्होंने अब तक ८० से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है। इनमें अमृता, सहवास, अंतर्वास, पूर्वरंग, वेणु वात्सल, तमाशा, त्रिलोगी उपर्वास, सोमतीर्थ और वृक्ष पतनमा आदि प्रमुख हैं। आपको बताते चलें कि श्री रघुवीर चौधरी जी ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले चौथे गुजराती भाषा के साहित्यकार हैं। उनसे पहले उमाशंकर जोशी, पन्नालाल पटेल और राजेंद्र शाह को ही यह सम्मान प्राप्त हो सका है।
(क) नवलकथा : पूर्वराग, अमृता, परस्पर, रुद्र महालय, प्रेमअंश, इच्छावर आदि।
(ख) वार्ता संग्रह : आकस्मिक स्पर्श, गेरसमज, बहार कोई छे, नंदीघर, अतिथिगृह आदि।
(ग) एकांकी : डिमलाइट, त्रीजो पुरुष आदि।
(घ) कविता : तमसा, वहेतां वृक्ष पवनमां, उपरवासयत्री आदि।
(ड.) नाटक : अशोकवन, झुलता मिनारा, सिकंदरसानी, नजीक आदि।