क्या आप जानते हैं कि हिंदी का पहला समाचार पत्र कौन सा है अथवा था? नहीं! उदन्त मार्तण्ड हिंदी का पहला समाचार पत्र था। जिसका शाब्दिक अर्थ ‘समाचार सूर्य’ होता है। अब विस्तार से…
परिचय…
उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन ३० मई, १८२६ को कलकत्ता के कोलू टोला नामक मोहल्ले की ३७ नंबर आमड़तल्ला गली से पं. जुगलकिशोर शुक्ल जी ने शुरू किया था। उस दिनों अंग्रेज़ी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकलते थे परंतु हिंदी में एक भी पत्र नहीं निकलता था। इसलिए “उदंत मार्तड” का प्रकाशन शुरू किया गया। प्रकाशन के समय श्री शुक्ल जी ने प्रकाशक के साथ साथ संपादन की भी जिम्मेदारी उठाई।
जैसा की हमने ऊपर ही कहा है कि उदन्त मार्तण्ड का शाब्दिक अर्थ ‘समाचार-सूर्य‘ है। अपने नाम के अनुरूप ही उदन्त मार्तण्ड हिंदी की समाचार दुनिया के सूर्य के समान ही था। यह पत्र ऐसे समय में प्रकाशित हुआ था जब हिंदी भाषियों को अपनी भाषा के पत्र की आवश्यकता महसूस हो रही थी। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर ‘उदन्त मार्तण्ड‘ का प्रकाशन किया गया था।
उद्देश्य…
उदन्त मार्तण्ड के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए जुगलकिशोर शुक्ल जी ने जो लिखा था, उसे हम यहां यथावत प्रस्तुत कर रहे हैं, ‘‘यह उदन्त मार्तण्ड अब पहले पहल हिंदुस्तानियों के हेत जो, आज तक किसी ने नहीं चलाया पर अंग्रेज़ी ओ पारसी ओ बंगाली में जो समाचार का कागज छपता है उसका उन बोलियों को जान्ने ओ समझने वालों को ही होता है। और सब लोग पराए सुख सुखी होते हैं। जैसे पराए धन धनी होना और अपनी रहते परायी आंख देखना वैसे ही जिस गुण में जिसकी पैठ न हो उसको उसके रस का मिलना कठिन ही है और हिंदुस्तानियों में बहुतेरे ऐसे हैं‘‘
समाज के विरोधाभासों पर तीखे कटाक्ष…
हिंदी के पहले समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड ने समाज के विरोधाभासों पर तीखे कटाक्ष किए थे। जिसका उदाहरण उदन्त मार्तण्ड में प्रकाशित यह गहरा व्यंग्य है, ‘‘एक यशी वकील अदालत का काम करते-करते बुड्ढा होकर अपने दामाद को वह सौंप के आप सुचित हुआ। दामाद कई दिन वह काम करके एक दिन आया ओ प्रसन्न होकर बोला हे महाराज आपने जो फलाने का पुराना ओ संगीन मोकद्दमा हमें सौंपा था सो आज फैसला हुआ यह सुनकर वकील पछता करके बोला कि तुमने सत्यानाश किया। उस मोकद्दमे से हमारे बाप बड़े थे तिस पीछे हमारे बाप मरती समय हमें हाथ उठा के दे गए ओ हमने भी उसको बना रखा ओ अब तक भली-भांति अपना दिन काटा ओ वही मोकद्दमा तुमको सौंप करके समझा था कि तुम भी अपने बेटे पोते तक पालोगे पर तुम थोड़े से दिनों में उसको खो बैठे‘‘
और अंत में…
उदन्त मार्तण्ड ने समाज में चल रहे विरोधाभासों एवं अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध आम जन की आवाज़ को उठाने का कार्य किया था। क़ानूनी कारणों एवं ग्राहकों के पर्याप्त सहयोग न देने के कारण १९ दिसंबर, १८२७ को युगल किशोर शुक्ल को उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन बंद कर देना पड़ा। उदन्त मार्तण्ड के अंतिम अंक में एक नोट प्रकाशित हुआ था जिसमें उसके बंद होने की पीड़ा झलकती है। जो इस प्रकार था, ‘‘आज दिवस लौ उग चुक्यों मार्तण्ड उदन्त। अस्ताचल को जाता है दिनकर दिन अब अंत।।‘‘ उदन्त मार्तण्ड बंद हो गया, लेकिन उससे पहले वह हिंदी पत्रकारिता का प्रस्थान बिंदु तो बन ही चुका था।