November 22, 2024

आज हम बात करने वाले हैं, असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन आदि भारतीय स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख नायकों में से एक यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त के बारे में, जिन्होंने कामगारों, मजदूरों आदि के हित के लिए सदैव कार्य किया था। यह उनकी तेजाश्वियता थी अथवा उन गरीब मजदूरों का विश्वास कि वे पाँच बार कलकत्ता के मेयर चुने गए। इतना ही नहीं इन्होंने एक अंग्रेज़ युवती नेली से विवाह किया था और उसके मन में भी भारत की आजादी का ऐसा अलख जगाया कि उसने भी अपने पति के देश को ही अपना देश मानकर, उसे स्वाधीन कराने के लिए अपने पति के समान ही जेल की अनगिनत सजाएँ भोगीं। अब विस्तार से…

परिचय…

यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त का जन्म २२ फरवरी, १८८५ को चटगांव, (जो अब बांग्लादेश में है) के सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित सेनगुप्ता परिवार में हुआ था। उनके पिता जात्रमोहन सेनगुप्त बड़े लोकप्रिय व्यक्ति तथा बंगाल विधान परिषद के सदस्य थे। यतीन्द्र मोहन बंगाल में शिक्षा पूरी करने के बाद वर्ष १९०४ में इंग्लैंड गए और वर्ष १९०९ में बैरिस्टर बनकर स्वदेश वापस आए। भारत आने से पहले उन्होंने ‘नेल्ली ग्रे’ नाम की एक अंग्रेज़ लड़की से विवाह कर लिया था। समय आने पर श्रीमती नेल्ली सेनगुप्त ने भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुखता से भाग लिया। यतीन्द्र मोहन ने अपना व्यावसायिक जीवन एक वकील के रूप में प्रारम्भ किया।

व्यावसायिक जीवन…

यतीन्द्र मोहन ने कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत और रिपन लॉ कॉलेज में अध्यापक के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन आरम्भ किया। वर्ष १९११ में वे कांग्रेस में सम्मिलित हुए। वर्ष १९२० में कलकत्ता कांग्रेस में उन्होंने प्रमुखता से भाग लिया। किसानों और मज़दूरों को संगठित करने की ओर उनका ध्यान विशेष रूप से था।

जेल यात्रा…

वर्ष १९२१ में सिलहट के चाय बागानों के मजदूरों के शोषण के विरुद्ध यतीन्द्र मोहन के प्रयत्न से बागानों के साथ-साथ रेलवे और जहाज़ों में भी हड़ताल हो गई थी। इस पर उन्हें गिररफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया। स्वराज पार्टी बनने पर यतीन्द्र उसकी ओर से बंगाल विधान परिषद के सदस्य चुने गए। वर्ष १९२५ में उन्होंने कलकत्ता के मेयर का पद सम्भाला। अपने जनहित के कार्यों से वे इतने लोकप्रिय बन गये थे कि उन्हें पांच बार कलकत्ता का मेयर चुना गया। पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए वर्ष १९२८ के कलकत्ता अधिवेशन के स्वागताध्यक्ष यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त ही थे। रंगून (अब यांगून) में उन्होंने बर्मा (अब म्यांमार) को भारत से अलग करने के सरकारी प्रस्ताव के विरोध में एक भाषण दिया तो राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें फिर से गिरफ़्तार कर लिया गया।

कांग्रेस अध्यक्ष…

वर्ष १९३० में कांग्रेस को सरकार ने गैर-कानूनी घोषित कर दिया। यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष चुने गए। लेकिन सरकार ने उन्हें पहले ही गिरफ्तार कर लिया। उनकी पत्नी नेली सेनगुप्त को भी सहयोग करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया। वर्ष १९३१ में उनका नाम पुन: अध्यक्ष पद के लिए लिया गया था, किन्तु उन्होंने सरदार पटेल के पक्ष में कराची कांग्रेस की अध्यक्षता से अपना नाम वापस ले लिया। वर्ष १९३१ में वे स्वास्थ्य सुधार के लिए विदेश गए, परंतु वर्ष १९३२ में स्वदेश लौटते ही पुन: गिरफ्तार कर लिये गए।

वर्ष १९३३ में कलकत्ता में कांग्रेस का अधिवेशन प्रस्तावित था, जिसकी अध्यक्षता महामना मदन मोहन मालवीय जी को करनी थी, लेकिन अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें मार्ग में ही गिरफ्तार कर लिया और कलकत्ता जाने से रोक दिया। इसके बाद पुलिस के सारे बन्धनों को तोड़ते हुए श्रीमती नेल्ली सेनगुप्त ने इस अधिवेशन की अध्यक्षता की। परन्तु वे अपने भाषण के कुछ शब्द ही बोल पाई थीं कि उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया।

निधन…

यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त को अस्वस्थ अवस्था में ही जेल में बन्द रखा गया था अतः उनकी हालत बिगड़ती गई और फिर २२ जुलाई, १९३३ को रांची में उनका निधन हो गया। परंतु नेली सेनगुप्त ने अपने पति की लड़ाई को उनके जाने के बाद भी लड़ा। वर्ष १९४० और वर्ष १९४६ में वे निर्विरोध ‘बंगाल असेम्बली’ की सदस्य चुनी गईं। वर्ष १९४७ के बाद वे पूर्वी बंगाल में ही रहीं और वर्ष १९५४ में निर्विरोध पूर्वी पाकिस्तान असेम्बली की सदस्य भी बनीं। उनकी देश सेवा के लिए वर्ष १९७३ में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया।

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