राजस्थान के जैसलमेर से करीब १४० कि.मी. दूर लोहारकी गांव के पास मलका गांव में १८ मई, १९७४ को भारत ने दुनिया में अपनी परमाणु शक्ति का लोहा मनवाया था। अब विस्तार से…
परिचय…
१८ मई, १९७४ की सुबह आकाशवाणी के दिल्ली केंद्र पर चल रहे फिल्मी गीतों के प्रोग्राम को अचानक ही बीच में रोककर उद्घोषणा हुई…कृपया एक महत्त्वपूर्ण प्रसारण की प्रतीक्षा करें। कुछ ही क्षण पश्चात् उद्घोषक का स्वर गूँज उठा… “आज सुबह ८.०५ पर पश्चिमी भारत के एक अज्ञात स्थान पर शांतिपूर्ण कार्यों के लिये भारत ने एक भूमिगत परमाणु परीक्षण किया है।” इस परीक्षण से पाँच दिन पहले १३ मई को परमाणु ऊर्जा आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष होमी सेठना की देखरेख में भारत के परमाणु वैज्ञानिकों ने परमाणु डिवाइस को असेंबल करना शुरू किया था और १४ मई की रात डिवाइस को अंग्रेज़ी अक्षर एल की शक्ल में बने शाफ्ट में पहुँचा दिया गया था। यह था भारत का पहला परमाणु परीक्षण जो थार मरुस्थल में जैसलमेर से ११० कि.मी. दूर पोखरण के निकट बुद्ध पूर्णिमा के दिन १८ मई को निर्जन क्षेत्र में किया गया था। शायद इसीलिये पोखरण-१ को ‘बुद्ध की मुस्कान’ कोड नाम दिया गया था। परीक्षण के लिये पोखरण को इसलिये चुना गया था क्योंकि यहाँ से मानव बस्ती बहुत दूर थी।
बुद्ध मुस्कराए…
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बड़ी बेचैनी से फोन कॉल का इंतजार कर रही थीं, तभी उनके फोन की घंटी बजी। उठाने पर संदेश मिला- “बुद्ध मुस्कराए”। पीएम इंदिरा गांधी उसके बाद बोलीं – “The Budda has finally smiled.”
इन दोनों ही संदेश का मतलब था कि भारत ने पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। इसके साथ ही भारत दुनिया में पहला ऐसा देश बन गया था जिसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य न होते हुए भी परमाणु परीक्षण करने का साहस किया और सफल रहा। यह देखकर पूरी दुनिया चौंक गई थी। १९७० के दशक की शुरुआत में ही बांग्लादेश निर्माण के बाद इंदिरा गांधी ने दुनिया को भारत को लोहा मनवाया था। उसके ढाई साल बाद ही फिर से दुनिया उनका साहस देखकर दंग थी।
परमाणु बम का परिचय…
परमाणु बम का व्यास १.२५ मीटर और वजन १४०० किलो था। सेना इसको बालू में छिपाकर लाई थी। जानकारी के मुताबिक विस्फोट से ८ से १० किलोमीटर के इलाके में धरती हिल गई थी।
अभियान…
पूरे अभियान को सफल बनाने में नेतृत्व की भूमिका संभालने वाले भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) के निदेशक वैज्ञानिक राजा रमन्ना ने अपनी आत्मकथा ‘इयर्स ऑफ पिलग्रिमिज’ में इसके बारे में लिखा है, ‘इस पूरे ऑपरेशन के बारे में पीएम इंदिरा गांधी के अलावा, मुख्य सचिव पीएन हक्सर, पीएन धर, वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. नाग चौधरी और एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन एच.एन. सेठना और खुद उनको ही जानकारी थी। कुछ लोगों का दावा है कि तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम को भी ऑपरेशन सफल होने के बाद ही जानकारी मिली थी।
बाधा…
इस परीक्षण से पहले इसकी राह में कई रोड़े भी आए। पहले तो IAEC के चेयरमैन और देश के सबसे बड़े वैज्ञानिक विक्रम साराभाई का निधन हो गया। उनकी जगह होमी सेठना को लाया गया। एक बाधा और आ गई। भारत ने PTBT नाम के एक समझौते पर हस्ताक्षर कर रखा था जिसके मुताबिक कोई भी देश इस समझौते के तहत वातावरण में परमाणु परीक्षण नहीं कर सकता था। समझौते में वातावरण का मतलब आसमान, पानी के अंदर, समुद्र शामिल था। तब भारत ने इस परीक्षण को जमीन के अंदर करने का निर्णय लिया।
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