कछा चुडामणी पुरस्कार, शिरोमणी पुरस्कार, हिन्दी अकादमी अवार्ड, शलाका पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी फेलोशिप एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार (भारतीय साहित्य का सर्वोच्च सम्मान ) प्राप्त साहित्यकारा कृष्णा सोबती जी का जन्म १८ फरवरी, १९२५ को गुजरात में हुआ था, मगर भारत विभाजन पश्चात गुजरात का वह हिस्सा पाकिस्तान में चला गया।
विभाजन के बाद वे दिल्ली आकर बस गयीं और तब से यहीं रहकर साहित्य-सेवा करती रहीं। उन्हें १९८० में ‘ज़िन्दगीनामा’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। १९९६ में उन्हें साहित्य अकादमी का फेलो बनाया गया जो अकादमी का सर्वोच्च सम्मान है। २०१७ में भारतीय साहित्य का सर्वोच्च सम्मान “ज्ञानपीठ पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।
इनकी कहानियाँ ‘बादलों के घेरे’ नामक संग्रह में संकलित हैं। इन कहानियों के अतिरिक्त इन्होंने आख्यायिका (फिक्शन) की एक विशिष्ट शैली के रूप में विशेष प्रकार की लंबी कहानियों का सृजन किया है जो औपन्यासिक प्रभाव उत्पन्न करती हैं। ऐ लड़की, डार से बिछुड़ी, यारों के यार, तिन पहाड़ जैसी कथाकृतियाँ अपने इस विशिष्ट आकार प्रकार के कारण उपन्यास के रूप में प्रकाशित भी हैं।