UBI Contest ९९
कभी मन बहलाने को जो लिखे थे
देखे तो वो खत बन गए थे
सोचा था पढ़ कर तुझे सुनाऊंगा
गीत बना उसे तेरे सामने गाऊंगा
कुछ प्यार के मोती बिखरे थे
कुछ कहे सुने शब्द सुनहरे थे
कुछ राज की बातें थी उसमें, तो
कुछ अंदाज की बातें थी उसमें
कुछ रूठने मनाने की बाते थीं
कुछ गिले सिकवों की गाठें थीं
कुछ पुरे दिन बिखरे थे खत में, तो
कुछ ठहरी हुई सी ठंडी रातें थीं
ढेर सारे प्यार भरे थे हमने उसमें
शब्दों से ही दुलार भरे थे उसमें
कुछ रिश्तों की दुहाई दी थी, तो
कुछ यारों के भी यार भरे थे उसमें
खत खुला न रह जाए सोचा तो,
तह कर बड़े प्यार से सहलाया था
लिफाफे पर फर भी लगाया था
खत अंदर रख उसे चिपकाया था
बस पता लिखना ही रह गया
जाने कैसे यह मैं चूक गया
जिसे लिखा था बड़े नाजों से, वो
खत बिना तुझसे मिले ही रह गया
विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’