📜 व्यास की अमरता: लघु गद्य खंड
जब हम कहते हैं कि “व्यास एक ही रहेंगे,” तो यह किसी एक भौतिक शरीर या ऐतिहासिक व्यक्तित्व की स्तुति नहीं है। यह कथन उस विशाल बौद्धिक ऊर्जा को समर्पित है, जिसने मानव सभ्यता के मूलभूत ज्ञान को व्यवस्थित किया।
व्यास का सिंहासन, न तो किसी राजमहल में है और न ही किसी देवलोक में। उनका सिंहासन है—वह सनातन ज्ञान जो वेद, पुराण और महाभारत के रूप में सदियों से प्रवाहमान है। व्यास की अमरता उनके जन्म या निधन की तिथियों में नहीं है, बल्कि उस क्षण में है जब कोई पाठक गीता का पृष्ठ खोलता है, या महाभारत के किसी पात्र के द्वंद्व में अपना प्रतिबिंब देखता है।
व्यास को वेदव्यास कहा गया, क्योंकि उन्होंने ज्ञान के बिखरे हुए अंशों को समेटा, उन्हें सुव्यवस्थित किया, और उन्हें एक सार्वभौमिक संहिता में बदल दिया। उन्होंने सिद्ध किया कि ज्ञान का संकलन, उसका लोकतंत्रीकरण, और उसकी प्रस्तुति—इन सब का कार्य सृजन जितना ही महत्वपूर्ण है।
व्यास हमारे साथ इसलिए ‘एक ही रहेंगे’, क्योंकि जब तक मनुष्य धर्म, नीति, प्रेम, युद्ध और मोक्ष के प्रश्न पूछता रहेगा, तब तक उसे व्यास की कृतियों में उत्तर मिलते रहेंगे। व्यास केवल लेखक नहीं थे; वह ज्ञान के संरक्षक थे, समय के स्तंभ थे। देह नश्वर है, लेकिन वह महासागर जिसे व्यास ने संकलित किया, वह कालातीत है। और यही कालातीत सत्य है—जो हमेशा एक ही रहेगा।
विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’