तीन_नाटक :- करवट, रसातल, दुश्मन।
स्थान : रादुका प्रकाशन, मास्को, सोवियत संघ।
लेखक : मक्सिम गोर्की
अनुवादक : डॉ. मधु
पुस्तकों के सफाई के क्रम में मेरी नजर मक्सिम गोर्की की एक पुस्तक पर पड़ी। “तीन नाटक”, जी हां! तीन नाटक।यह पुस्तक अभी भी अच्छी अवस्था में है मगर कवर संग छोड़ने लगे हैं। पुस्तक के कवर पर जो कुछ लिखा है सोचा उसे सम्हाल लिया जाए तो आप को साथ लिए निकल पड़ा एक कृति के कुछ बिखरे मोती चुनने। कवर पर लिखे वाक्यों के कुछ शब्द फट गए हैं तो उन्हें आप स्वयम अपने आप समझ लीजिएगा और हमें भी समझाइयेगा।लेओनीद लेओनोव के अनुसार, “आज किसी में भी गोर्की के समान जीवन के …….. और मानवजाति के वास्तविक “स्वर्ण-……” को व्यावहारिक रूप देने की संभावना में इतना अधिक विश्वास नहीं था! जीवन की करुणा और जटिलता को भी कोई गोर्की की भांति नहीं समझता था। इसीलिए गोर्की लोगों से वीरतापूर्ण कृत्यों की माँग करते थे, उन्हें वीर कृत्यों की शिक्षा देते थे और स्वयं इसके उदाहरण थे।”कोन्स्तान्तिन फेदिन के अनुसार, “जब हम गोर्की की मेधा की सशक्त ईश्वरीय दें के सबसे महत्वपूर्ण, सबसे प्रभावपूर्ण लक्षण का उल्लेख करना चाहते हैं तो यह कहे बिना नहीं रह सकते कि यह देन हर रूप में एक विशेष आंतरिक प्रकाश से देदीप्यमान है। हम गोर्की से कलाकार, चिन्तक, क्रान्तिकारी, मानवतावादी और जीवन शिक्षक के रूप में परिचित हैं। उनकी महान प्रतिभा ने इनमें से जिस क्षेत्र को छुआ, उसी में माणवीय विवेक की विजय में उनके विश्वास का आंतरिक प्रकाश जगमगा उठा। मुझे लगता है कि विवेक की विजय में उनका अमिट विश्वास ही उनकी मेधा का मुख्य लक्षण था।”अब हम जानते हैं नाटक के बारे में, और नाटक सम्राट गोर्की से बेहतर इस विषय पर शायद ही कोई हमें पूरे विश्व में बता पाए, तो आईए हम उन्हीं के शब्दों को जानते और समझते हैं, नाटक से मूलभूत मांग यह की जा सकती है कि वह किसी महत्वपूर्ण समस्या को उठाए, उसमें विषय की गहनता हो और वह प्रभावपूर्ण हो… ऐसा होने पर ही वह प्रेरक प्रबोधक हो सकता है जिनकी हमारे समय में, जबकि जुझारू और जोशीले शब्दों की अपेक्षा की जाती है, इतनी अधिक आवश्यकता है….बाकी फिर कभी…धन्यवाद !