November 21, 2024

चलिए आज गणित के कुछ मजेदार खेल को जाने जो गणित को आसान बनाती है और मान्यताओं को फिर से साबित करती हैं…

पहले कोई भी चार अंक की संख्या लीजिये जिसके दो अंक भिन्न और दो अंक समान हों। संख्या के अंको को आरोही और अवरोही क्रम में लिखें। इससे आपको दो संख्यायें मिलेंगी। अब बड़ी संख्या को छोटी संख्या से घटायें। जो भी संख्या मिलेगी उस पर उसी प्रक्रिया को दोहराएँ। इस प्रक्रिया को कापरेकर व्यवहार कहते हैं। लगातार करने पर कुछ निश्चित चरणों के बाद आपको ६१७४ की संख्या प्राप्त होगी। इसके साथ भी पुनः वही प्रक्रिया लगातार अपनाने पर हर बार ६१७४ की संख्या ही प्राप्त होगी। इसीलिये इसे कापरेकर स्थिरांक कहते हैं।

अब इसे उदाहरण से समझते हैं…

कोई भी एक संख्या, “२१४१”

४२११ – ११२४ = ३०८७
८७३० – ०३७८ = ८३५२
८५३२ – २३५८ = ६१७४

अब हम ६१७४ को भी आरोही और अवरोही क्रम में लिख कर इस प्रक्रिया को अपनाएंगे तो…एक बार फिर से ६१७४ की संख्या ही आएगी। आप चाहें तो एक बार कोशिश अवश्य कर लें। ६१७४ की आरोही और अवरोही प्रक्रिया…
७६४१ – १४६७ = ६१७४

अब आप यह सोच रहेंगे की, आज हम यह क्या लेकर बैठ गए तो मित्रों कापरेकर स्थिरांक के जनक हैं…

श्री दत्तात्रय रामचंद्र कापरेकर

एक भारतीय गणितज्ञ थे, जिनका जन्म १७ जनवरी १९०५ को महाराष्ट्र के डहाणु में हुआ था। श्री कापरेकर जी नासिक के एक स्कूल में शिक्षक थे, और जैसा कि हमेशा से हमारे देश में होता रहा है, ये भी देश में भारी उपेक्षा के शिकार रहे। प्रारम्भिक शिक्षा थाने और पुणे में तथा स्नातक मुंबई विश्वविद्यालय से प्राप्त करने वाले श्री कापरेकर को भारत में उनको वह मान सम्मान उस समय जा कर मिला जब मार्टिन गार्डनर जो अमेरिकी गणितज्ञ थे, ने १९७५ में “साईंटिफिक अमेरिकन” में एक आलेख लिखा था जिसमे उन्होने उनके बारे में लिखा था, गणित पढ़ना और पढ़ाना दो अलग विधा है और उस पर से पढ़ाने की विधा मनोरंजक और आसान हो तो उसे कापरेकर विधा कहना कहीं से गलत नहीं होगा।

कापरेकर जी ने संख्या सिद्धान्त के क्षेत्र में अनेक योगदान दिया, जिनमें से कापरेकर स्थिरांक के अलावा कापरेकर संख्या और डेमलो संख्या की खोज की हैं। इसके अलावा भी उन्होने कई मनोरंजक गणित की खोज की हैं जिनमे हर्षद संख्या मुख्य है।हर्षद संख्याओ का एक मजेदार गुण होता है, ये संख्याये अपने अंको के योग से भाज्य होती है। उन्होने इन्हे हर्षद संख्या अर्थात् आनंददायक संख्या कहते थे।

मगर अफसोस देश ने उन्हें कभी वो मान्यता नहीं दी तथा उच्च शिक्षा न प्राप्त करने के कारण भारत के गणितज्ञों ने भी उन्हें वह सम्मान नहीं दिया जो उन्हें मिलना चाहिये था। उनके पेपर भी निम्न श्रेणी के गणित की पत्रिकाओं में छपते थे। वे गणित के सम्मेलनों में भी अपने पैसे से जाते थे और अंको पर व्याख्यान देते थे। उन्हें कहीं से पैसों की मदद नहीं मिल पाती थी। यहां एक बार फिर हम यही कहेंगे की हमसे कहीं अच्छे विदेशी हैं जिन्होंने हमेशा से ही प्रतिभा की कद्र की है।

ऐसे महान विभूतियों में से एक श्री दत्तात्रय रामचंद्र कापरेकर जी के जन्मदिवस पर Ashwini Rai ‘अरुण’ का कोटि कोटि नमन ! वंदन!

धन्यवाद !

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