मैं फूल टाँक रहा हूँ तुम्हारे जूड़े में,
तुम्हारी आँख मुसर्रत से झुकती जाती है।
न जाने आज मैं क्या बात कहने वाला हूँ,
ज़बान खुश्क है आवाज़ रुकती जाती है…
परछाईयाँ नामक कविता में कवि ने अपने प्रेमी के जीवन का चित्रण किया है, कवि के जीवन में दो प्रेम असफल हुए थे। पहला प्रेम कॉलेज के दिनों में अमृता प्रीतम से हुआ था। अमृता के घरवालों ने कवि को नकार दिया। वे बिखर गए थे तभी उनके जीवन में सुधा मल्होत्रा आई, मगर वो भी असफल रही। अतः वे आजीवन अविवाहित रहे तथा उनसठ वर्ष की उम्र में निधन तक उनकी कलम जीवन की तल्ख़ियां कागज पर उकेरती रही। उनके लिखे शेर इस बात की गवाही देते हैं…
वे लमहे कितने दिलकश थे
वे घड़ियाँ कितनी प्यारी थीं,
वे सहरे कितने नाज़ुक थे
वे लड़ियाँ कितनी प्यारी थीं।
चलिए बात को आगे बढ़ाते हैं, कवि अथवा यूँ कहें इस दिलजले आशिक से आप का परिचय कराते हैं… आपने साहिर लुधियानवी का नाम तो सुना ही होगा, उनका असली नाम अब्दुल हयी साहिर है। ८ मार्च,१९२१ को लुधियाना के एक जागीरदार घराने में जन्में साहिर के पिता बहुत धनी थे, मगर ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था। जब साहिर छोटे थे उनके माता-पिता में अलगाव हो गाया, जिस कारण उन्हें अपनी माँ के साथ रहना पड़ा और गरीबी में गुज़र बसर करना पड़ा। साहिर की शिक्षा लुधियाना के ही खा़लसा हाई स्कूल से हुई थी। जब वे गव्हर्नमेंट कालेज के विद्यार्थी थे तभी अमृता प्रीतम से उनका प्रेम हुआ था। कॉलेज़ के दिनों में ही वे अपने शेरों शायरी के लिए मशहूर हो गए थे तभी अमृता इनकी प्रशंसक बनी थीं। बाद में अमृता के पिता के कहने पर उन्हें कालेज से निकाल दिया गया।
ज़िन्दगी से उन्स है, हुस्न से लगाव है
धड़कनों में आज भी इश्क़ का अलाव है
दिल अभी बुझा नहीं, रंग भर रहा हूँ मैं
ख़ाक-ए-हयात में, आज भी हूँ मुनहमिक
फ़िक्र-ए-कायनात में ग़म अभी लुटा नहीं
हर्फ़-ए-हक़ अज़ीज़ है, ज़ुल्म नागवार है
अहद-ए-नौ से आज भी अहद उसतवार है
मैं अभी मरा नहीं
साहिर लाहौर आ गये और उसी वर्ष उन्होंने अपनी पहली कविता संग्रह ‘तल्खियाँ’ छपवायी। तल्खियाँ के प्रकाशन के बाद से ही उन्हें जबरदस्त ख्याति प्राप्त होने लगी। वे प्रसिद्ध उर्दू पत्र अदब-ए-लतीफ़ और शाहकार के तथा बाद में द्वैमासिक पत्रिका सवेरा के भी सम्पादक बने। पत्रिका में उनकी किसी रचना को सरकार के विरुद्ध समझा गया।इसके लिए पाकिस्तान सरकार ने उनके खिलाफ वारण्ट जारी कर दिया। वे दिल्ली आ गये। कुछ दिनों दिल्ली में रहकर वे बंबई आ गये जहाँ पर व उर्दू पत्रिका शाहराह और प्रीतलड़ी के सम्पादक बने।
१९४९ में शुरू हुई उनके जीवन की दूसरी पारी, फिल्म आजादी की राह पर के लिये उन्होंने पहली बार गीत लिखे मगर प्रसिद्धि उन्हें फिल्म नौजवान के लिये लिखे गीतों से मिली…
ठंडी हवाएँ, लहरा के आयें
रुत है जवां
तुमको यहाँ, कैसे बुलाएँ
ठंडी हवाएँ…
चाँद और तारे, हँसते नज़ारे
मिल के सभी, दिल में सखी, जादू जगाये
ठंडी हवाएँ…
कहा भी न जाए, रहा भी न जाए
तुमसे अगर, मिले भी नज़र, हम झेंप जाए
ठंडी हवाएँ…
दिल के फ़साने, दिल भी न जाने
तुमको सजन, दिल की लगन, कैसे बताएँ
ठंडी हवाएँ…
ये गीत बेहद लोकप्रिय हुआ और आज तक है। बाद में साहिर लुधियानवी ने बाजी, प्यासा, फिर सुबह होगी, कभी कभी जैसे लोकप्रिय फिल्मों के लिये गीत लिखे। उस जमाने सभी बड़े संगीतकार जैसे; सचिनदेव बर्मन, एन. दत्ता, शंकर जयकिशन, खय्याम आदि ने उनके गीतों के लिए खूबसूरत धुनें बनाई।
उनके कुछ प्रसिद्ध गीत…
‘आना है तो आ’ – नया दौर,
‘अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम’ – हम दोनो,
‘चलो एक बार फिर से अजनबी बन जायें’ – गुमराह,
‘मन रे तु काहे न धीर धरे’ – चित्रलेखा,
‘मैं पल दो पल का शायर हूं’ – कभी कभी,
‘यह दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है’ – प्यासा,
‘ईश्वर अल्लाह तेरे नाम’ – नया रास्ता, आदि।