November 21, 2024

“मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुर्नजन्म लेने जा रहा हूँ।” आप जानते हैं इस अमर वाक्य को किसने कहा था???

९ अगस्त, १९२५ की बात है, लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी ‘आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन’ की चेन खींच कर कान में ट्रेन का भोंपू और दिलमें क्रांतिकारियों के आगमन की धमक को पहुंचाने वाले राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने मरने से पहले, ऊपर दिए जा रहे इस अमर वाक्य को कहा था।राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी जी को दो ही काम पसंद थे अध्ययन और व्यायाम जिसमें वे अपना सारा समय व्यतीत करते थे। ६ अप्रैल, १९२७ को फाँसी के फैसले के बाद सभी क्रांतिकारियों को अलग कर दिया गया था, परन्तु लाहिड़ी ने अपनी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं किया। आईए आज यानी २३ जून, १९०१ को बंगाल के पाबना ज़िला अन्तर्गत भूमि भड़गा गाँव के रहने वाल श्रीे क्षिति मोहन शर्मा एवं श्रीमती बसंत कुमारी के यहाँ जन्में श्री लाहिड़ी को याद करें…

वर्ष १९०९ लाहिड़ी जी का परिवार बंगाल से वाराणसी चला आया था, अत: राजेन्द्रनाथ की शिक्षा-दीक्षा वाराणसी से ही हुई। राजेन्द्रनाथ के जन्म के समय पिता क्षिति मोहन लाहिड़ी व बड़े भाई बंगाल में चल रही अनुशीलन दल की गुप्त गतिविधियों में योगदान देने के आरोप में कारावास की सलाखों के पीछे कैद थे। काकोरी काण्ड के दौरान लाहिड़ी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में इतिहास विषय में एमए प्रथम वर्ष के छात्र थे और उसी समय क्रांतिकारियों से उनका सम्पर्क हुआ था। जिसमे से प्रथम भेंट शचीन्द्रनाथ सान्याल से हुआ था। सान्याल बंगाल के क्रांतिकारी युगांतर दल से संबद्ध थे। वहाँ एक दूसरे दल अनुशीलन में वे काम करने लगे। राजेन्द्रनाथ संघ की प्रांतीय समिति के सदस्य थे। उसके अन्य सदस्यों में रामप्रसाद बिस्मिल जी भी सम्मिलित थे। ‘काकोरी ट्रेन कांड’ में जिन क्रांतिकारियों ने प्रत्यक्ष भाग लिया, उनमें राजेन्द्रनाथ भी थे। बाद में वे बम बनाने की शिक्षा प्राप्त करने और बंगाल के क्रांतिकारी दलों से संपर्क बढाने के उद्देश्य से कोलकाता गए। वहाँ दक्षिणेश्वर बम फैक्ट्री कांड में पकड़े गए और इस मामले में दस वर्ष की सज़ा हुई।

काकोरी कांड के उपरांत अंग्रेज़ी हुकूमत ने उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल ४० क्रान्तिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया, जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु दण्ड (फाँसी की सज़ा) सुनायी गयी। इस मुकदमें में १६ अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम चार वर्ष की सज़ा से लेकर अधिकतम काला पानी तक का दण्ड दिया गया था। काकोरी काण्ड में लखनऊ की विशेष अदालत ने ६ अप्रैल, १९२७ को जलियांवाला बाग़ दिवस पर रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह तथा अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ को एक साथ फाँसी देने का निर्णय लेते हुए सज़ा सुनाई।

एक मजेदार वाकया…

काकोरी काण्ड की विशेष अदालत आज के मुख्य डाकघर में लगायी गयी थी। काकोरी काण्ड में संलिप्तता साबित होने पर लाहिड़ी को कलकत्ता से लखनऊ लाया गया। बेड़ियों में ही सारे अभियोगी आते-जाते थे। आते-जाते सभी मिलकर गीत गाते। एक दिन अदालत से निकलते समय सभी क्रांतिकारी सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है गाने लगे। सूबेदार बरबण्ड सिंह ने इन्हे चुप रहने को कहा, लेकिन क्रांतिकारी सामूहिक गीत गाते रहे। बरबण्ड सिंह ने सबसे आगे चल रहे राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का गला पकड़ लिया। अब क्या था लाहिड़ी जी का एक भरपूर तमाचा उसकी गाल पर पड़ा, उसके बाद जब उसे होश आया तो अन्य साथी क्रांतिकारियों की तन चुकी भुजाओं से बरबण्ड सिंह के होश उड़ा गए। बात कुछ आगे बढ़ती इससे पहले जज को बाहर आना पड़ा। इसका अभियोग भी पुलिस ने चलाया परन्तु उन्हें इसे वापस लेना पड़ा।

लाहिड़ी-जेलर संवाद…

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी जी को दो ही काम पसंद था अध्ययन और व्यायाम और वे उसी में अपना सारा समय व्यतीत करते थे। फाँसी के फैसले के बाद सभी को अलग कर दिया गया, परन्तु लाहिड़ी जी ने अपनी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं किया। जब जेलर ने उनसे एकबार पूछा कि, “प्रार्थना तो ठीक है, परन्तु अन्तिम समय इतनी भारी कसरत क्यो?” राजेन्द्रनाथ ने उत्तर दिया, ‘व्यायाम मेरा नित्य का नियम है। मृत्यु के भय से मैं नियम क्यों छोड़ दूँ? दूसरा और महत्वपूर्ण कारण यह है कि हम पुर्नजन्म में विश्वास रखते हैं। व्यायाम इसलिए किया कि दूसरे जन्म में भी बलिष्ठ शरीर मिले, जो ब्रिटिश साम्राज्य के ख़िलाफ़ युद्ध में काम आ सके। अंग्रेज़ सरकार ने डर से राजेन्द्रनाथ को गोण्डा कारागार भेजकर अन्य क्रांतिकारियों से दो दिन पूर्व ही यानी १७ दिसम्बर, १९२७ को फाँसी दे दी। शहीद राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने हंसते-हंसते फाँसी का फन्दा चूमने के पहले वन्देमातरम की जोरदार जयघोष करते हुए कहा, ‘मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुर्नजन्म लेने जा रहा हूँ।’

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