
तमस जैसा उपन्यास हानूश जैसा नाटक और बाँगचू, अमृतसर आ गया, चीफ़ की दावत जैसी कहानियां लिखने वाले भीष्म साहनी जी का जन्म ८ अगस्त, १९१५ को रावलपिंडी में हुआ था।
परिचय…
श्री साहनी ने भारत विभाजन की त्रासद घटनाओं का सजीव और सरल भाषा में चित्रण किया है। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से कभी चमत्कार पैदा करने और चौंकाने की कोशिश नहीं की, लेकिन भंगिमा रहित साधारण भाषा में उन्होंने असाधारण कहानियां, उपन्यास और नाटकों को लिखा जरूर। उनके द्वारा अनुदित तोलस्तोय के पुनरुत्थान तथा चिंगिज एत्मातोव के पहला अध्यापक उपन्यास सहित अन्य रूसी पुस्तकों के अनुवादों में भी उनका चेहरा आप देख सकते हैं। वैसे अपनी लेखनी की तरह ही उनका व्यक्तित्व भी सहज और सुंदर था।
जीवनी…
वर्ष १९३७ में लाहौर गवर्मेंट कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में साहनी जी ने एम.ए. किया तथा भारत पाकिस्तान विभाजन के पूर्व तक वहीं पर अवैतनिक शिक्षक होने के साथ-साथ व्यापार भी करते रहे। विभाजन के बाद उन्होंने भारत आकर वर्ष १९५८ में पंजाब विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की और समाचारपत्रों में लिखने का काम किया। बाद में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से जा मिले। इसके पश्चात अंबाला और अमृतसर में भी अध्यापक रहने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन दिल्ली महाविद्यालय में साहित्य के प्रोफेसर बने। वर्ष १९५७ से वर्ष १९६३ तक मास्को में विदेशी भाषा प्रकाशन गृह (फॉरेन लॅग्वेजेस पब्लिकेशन हाउस) में अनुवादक के काम में कार्यरत रहे। यहां उन्होंने करीब दो दर्जन रूसी किताबें जैसे टालस्टॉय आस्ट्रोवस्की इत्यादि लेखकों की किताबों का हिंदी में रूपांतर किया। वर्ष १९६५ से वर्ष १९६७ तक दो सालों में उन्होंने नयी कहानियां नामक पत्रिका का सम्पादन किया। वे प्रगतिशील लेखक संघ और अफ्रो-एशियायी लेखक संघ (एफ्रो एशियन राइटर्स असोसिएशन) से भी जुड़े रहे। वर्ष १९९३ से वर्ष १९९७ तक वे साहित्य अकादमी के कार्यकारी समिति के सदस्य भी रहे।
भीष्म साहनी को हिन्दी साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा का अग्रणी लेखक माना जाता है। वे मानवीय मूल्यों के लिए हिमायती रहे। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भीष्म साहनी जी हिन्दी फ़िल्मों के महान अभिनेता श्री बलराज साहनी जी के छोटे भाई थे। उन्हें वर्ष १९७५ में तमस के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, शिरोमणि लेखक अवार्ड (पंजाब सरकार), वर्ष १९८० में एफ्रो एशियन राइटर्स असोसिएशन का लोटस अवार्ड, वर्ष १९८३ में सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड तथा वर्ष १९९८ में भारत सरकार के पद्मभूषण अलंकरण से विभूषित किया गया। उनके उपन्यास तमस पर वर्ष १९८६ में एक फिल्म का निर्माण भी किया गया था।
प्रमुख रचनाएँ…
१. उपन्यास – झरोखे, तमस, बसंती, मय्यादास की माडी़, कुन्तो, नीलू निलिमा नीलोफर।
२. कहानी संग्रह – मेरी प्रिय कहानियां, भाग्यरेखा, वांगचू, निशाचर।
३. नाटक – हानूश (१९७७), माधवी (१९८४), कबिरा खड़ा बजार में (१९८५), मुआवज़े (१९९३)
४. आत्मकथा – बलराज माय ब्रदर
५. बालकथा- गुलेल का खेल।
अपनी बात…
वर्ष १९८८ में प्रलेसं भोपाल ने फैज़ पर केंद्रित “यादे फ़ैज़” आयोजन किया था। उस आयोजन में त्रिलोचन, कैफ़ भोपाली, मज़रूह सुल्तानपुरी, शिवमंगल सिंह सुमन जैसे अनेक हिंदी – उर्दू के साहित्यकारों का मेला लगा था। भोपाल के पत्रकार भवन की सीढ़ियों के ऊपर ही वे उत्साही छात्रों से वे मिले थे। छात्रों से बात करते समय भीष्म जी के चेहरे पर स्नेहिल भाव था। वे जब भी किसी के पास से गुजरते तो दोनों हाथ जोड़कर उनसे नमस्कार करते। उनका वह मुस्कुराता हुआ चेहरा हर किसी को अपना बना लेता। इस आयोजन के मुख्य अतिथि श्री इंद्र कुमार गुजराल जी थे परन्तु वे किसी कारण से नहीं आ पाए थे तो भीष्म जी ने ही कार्यक्रम का उद्घाटन भाषण दिया था। उसके बाद हर सत्र में उन्हें नीचे फर्श पर बैठे, अहंकार रहित मुस्कुराता हुआ मासूम चेहरा।
इसके एक वर्ष १९८९ में गुना में प्रलेसं का पांचवां राज्य सम्मेलन हुआ तो भीष्म जी ने ही इस सम्मेलन का उद्घाटन किया था। तमस धारावाहिक के प्रदर्शन के बाद देशभर में भीष्म जी के नाम की धूम थी। भीष्म जी वहां एक दिन रुककर चले गए थे।
निधन…
’आम आदमी नहीं चाहता कि किसी भी तरह के फ़साद हों, हिंसा हो, आम आदमी तो चैन से जीना चाहता है’ जैसे अमृत वचन कहने वाले प्रख्यात साहित्यकार श्री भीष्म साहनी जी का निधन शुक्रवार ११ जुलाई, २००३ को दिल्ली में हुआ। वे हिंदू-मुस्लिम वैमनस्यता के सख्त विरोधी थे, इसलिए वे वामपंथी थे वर्ना उनका सारा जीवन तो साधना में ही गुजरा था।